मूत्राशय में चोट लगने, मूत्र-नली सिकुड़ जाने, सूजाक आदि कारणों से मूत्राशय में प्रदाह उत्पन्न हो जाता है । इस रोग में मूत्राशय में सूजन, दर्द, अकड़न, भार-सा अनुभव होना, मूत्र-त्याग में जलन, कॅपकॅपी आदि लक्षण प्रकट होते हैं ।
कैन्थरिस 30- यह नये और पुराने- दोनों ही प्रकार के रोगों में लाभप्रद है । बार-बार मूत्र-त्याग की इच्छा, मूत्र-त्याग के समय जलन होना, मूत्राशय में मरोड़, सूजन आदि लक्षणों में दें ।
एपिस मेल 30- बार-बार मूत्र-त्याग की इच्छा, जलन होना, मूत्राशय में भयंकर दर्द, कभी-कभी थोड़ा रक्तयुक्त गरम मूत्र होना और कभी बिल्कुल ही न होना- इन लक्षणों में लाभप्रद है ।
बबॅरिस वल्गैरिस Q- बार-बार मूत्र-त्याग की इच्छा, मूत्र-त्याग के समय और बाद में मूत्र-नली में जलन, काटता हुआ-सा दर्द होना, गुर्दे में पथरी के से लक्षण होना- इन लक्षणों में देनी चाहिये ।
एकोनाइट 30, 3x- सूखी ठण्ड लगने के कारण रोग होना, मूत्र-त्याग से पूर्व रोगी का चिल्लाना, चोट के कारण मूत्र का रुक जाना- इन लक्षणों में लाभ करती हैं ।
सॉलिडेगो वर्ज Q- मूत्र-त्याग के लिये कैथेटर लगाना पड़ता हो तो इस दवा की देने से कैथेटर लगाने की आवश्यकता नहीं पड़ती और मूत्र सरलता से होने लगता है ।
टेरिबिन्थिना 6- दर्द के साथ बूंद-बूंद मूत्र आना, मूत्र के साथ रक्त भी आना, थोड़ा मूत्र होकर मूत्र की मरोड़ बनी रहे- इन लक्षणों में दें ।
मर्ककॉर 30- मूत्र का वृंद-बूंद करके आना, मूत्र-त्याग करते समय अत्यधिक जलन हो तो लाभ करती है ।
डल्कामारा 30– वर्षा में भीग जाने के कारण रोग हो जाये तो प्रयोग करनी चाहिये ।
नाइट्रिक एसिड 6- मूत्र से घोड़े के मूत्र जैसी बदबू आती हो तो यह दवा देनी चाहिये ।
चिमाफिला Q- रोग की पुरानी अवस्था में यह दवा लाभ करती है ।