विद्युत अपघट्य (Electrolytes) ऐसी वस्तुओं को कहा जाता है जिनको पानी में घोलकर बार-बार पिलाने से शरीर में बिजली जैसी लहरें और प्रभाव पैदा करके रक्त और शरीर में निर्जलीकरण को दूर कर देती है। सोडियम, पोटाशियम और क्लोराइड के पानी में ये गुण होते हैं ।
उबाल कर ठंडे किये गये एक गिलास पानी में चुटकी भर नमक और दो छोटे चम्मच चीनी डालकर मिला लें। (यदि उपलब्ध हो तो 4-6 बूंद नीबू का रस भी निचोड़ कर डाल दें ।) तरलाभाव के रोगी को बार-बार यही पानी पिलायें ! बच्चे को यह पानी 2-3 चम्मच भर प्रत्येक 5-10 मिनट बाद थोड़ा-थोड़ा पिलाते रहने से रक्त व शरीर के तरलाभाव यानि (डीहाइड्रेशन) की सुगमतापूर्वक पूर्ति हो जाती है।
एक लीटर उबालकर ठण्डे किये पानी में सोडियम क्लोराइड (नमक) डेढ़ ग्राम, सोडा बाई कार्ब ढाई ग्राम, पोटाशियम क्लोराइड डेढ़ ग्राम, ग्लूकोज 50 ग्राम को मिलाकर रख लें । थोड़ी-थोड़ी मात्रा में यह पानी तरलाभाव में पिलाना भी गुणकारी है।
नोट – एक बार उबालकर ठण्डा किया हुआ पानी मात्र 12 घण्टे तक ही उपयोग में लें । शेष बचे रहने पर फेंक दें तथा आवश्यकतानुसार पुन: (ताजा) घोल कर तैयार कर उपयोग में लें । बड़ी-बड़ी औषधि निर्माता कम्पनी विभिन्न पेटेण्ट नामों से इसी प्रकार के तरलाभाव को दूर करने वाले योग (इलेक्ट्राल पाउडर आदि) बनाकर बाजार में बिक्री कर रही हैं ।
जिन बच्चों को दस्त आ रहे हों उनको गाय या डिब्बे का दूध बन्द करके माँ का दूध और ऊपर लिखा गया घोल पिलाते रहने से दस्त आने भी रुक जाते हैं और तरलाभाव भी दूर होने में सहायता मिल जाती है। अत्यधिक दस्त आने पर 24 घण्टे के लिए दूध पिलाना बन्द कर दें। चावलों को पानी में उबालकर उस पानी को कपड़े से छानकर मधु मिलाकर बार-बार पिलाने से भी दस्त आना रुक जाते हैं और बच्चा कमजोर भी नहीं होने पाता हैं ।
यदि बच्चे को अत्यधिक दस्त आ चुके हों तो उसको ऊपर लिखा गया इलेक्ट्रोलाइट 2-3 दिन तक निरन्तर पिलाते रहना आवश्यक है । मीठे सेब को आग में भून अथवा भाप में पकाकर कूटकर तथा छलनी से छान कर दूध के स्थान पर यह नरम लुगदी चम्मच से थोड़ी मात्रा में खिलाते रहने से भी बच्चों के दस्त रुक जाते हैं। बच्चों के दस्त रुक जाने पर दूध में पानी मिलाकर और उबालकर (यह पतला) दूध थोड़ी चीनी मिलाकर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पिलाना शुरू करें। तदुपरान्त धीरे-धीरे इसकी मात्रा बढ़ायें।
अतिसारों की तीव्रावस्था में रोगी बच्चे को बिस्तर पर आराम से लिटाकर इसकी गुदा को नरम सूती कपड़े अथवा शुद्ध रुई से हल्के गुनगुने पानी से साफ करें । गुदा स्थान डस्टिंग पाउडर लगाकर सूखा बनाये रखें। गुदा के चारों ओर किसी अच्छी वैसलीन को लगाना लाभकारी है। यदि पेट में मरोड़ उठकर पीड़ा हो रही हो तो सिकाई करना कल्याणकारी है । ऐसे रोगी बच्चे की सतर्कता पूर्वक देखभाल आवश्यक है क्योंकि इस दौरान प्राय: न्यूमोनिया हो जाने का भय रहता है ।
अतिसार की तीव्रावस्था में सल्फा ग्वानीड़िन, सल्फाथाला जोल और सल्फा एक्सीडिन का प्रयोग लाभदायक है। बच्चों को अत्यधिक एण्टी बायोटिक तथा सल्फा औषधियाँ लम्बे समय तक सेवन नहीं करानी चाहिए। जहाँ तक सम्भव हो सके यह औषधियाँ देनी ही नहीं चाहिए । सल्फा औषधियों के प्रयोग काल में पर्याप्त मात्रा में रोगी को पानी पिलाना आवश्यक है ।
यदि किसी संक्रमण के कारण अतिसार हो तो एण्टी बायोटिक तथा सल्फा औषधियाँ ही दें । यदि खान-पान के कारण अतिसार हो तो आँतों की सफाई करनी उचित है । नर्वस अतिसार में ओपियम का प्रयोग लाभदायक है ।
यदि टाइफायड ज्वर के कारण अतिसार हो तो सबसे पहले रोगी का आहार (जो दिया जा रहा था) उसको एकदम रोक दें अथवा फिर उसमें रोग तथा रोगी की दशा के अनुसार परिवर्तन कर दें। आन्त्रिक ज्वर के दस्तों को एकाएक बन्द करना खतरनाक हो सकता है। इससे रोगी के पेट में अफारा तथा आँतों में छेद हो जाने से गम्भीर कष्ट उत्पन्न हो सकते हैं । अधिक दस्तों में रक्तस्राव भी हो सकता है। टायफायड ज्वर में 2-3 बार दस्त होना उचित है ।
अजीर्ण एवं अफारा की स्थिति में दीपन, पाचन तथा अवरोधक औषधियों के मिश्रण देने से अतिसारों में विशेष लाभ होता है। रोगी की यदि नस (शिरा) नहीं मिल रही हो और जीभ, गला तथा त्वचा खुश्क हो गई हो । बच्चा रोगी की खोपड़ी का गड्ढा सतह से नीचे हो गया हो, आँखें निस्तेज हो गई हों तो शीघ्रातिशीघ्र सैलाइन का घोल मुखमार्ग तथा गुदामार्ग से देना चाहिए । डेक्सट्रोज देने से पानी की पूर्ति हो जाने पर रोगी मृत्यु के मुख से बच जाता है ।