विवरण – मासिक-धर्म, रजःस्राव, ऋतुस्राव, महावारी, महीना होना, मासिक स्राव, ऋतुधर्म-ये सब एक दूसरे के पर्यायवाची शब्द हैं । हमारे देश में प्राय: 12 से 13 वर्ष की आयु में लड़कियों को मासिक-धर्म होना आरम्भ हो जाता है तथा प्राय: 40-50 की उम्र तक होता रहता है । तत्पश्चात् बन्द हो जाता है।
एक स्वस्थ-महिला को हर 28वें दिन मासिक-धर्म होना चाहिए । सामान्यत: मासिक-स्राव 3 से 5 दिन होता रहता है । इसका सामान्य परिमाण 8 औंस से 15 औंस तक होना चाहिए। मासिक-स्राव में निकलने वाले रक्त का रंग खरगोश के खून जैसा होना उत्तम माना गया है । मासिक-स्राव के समय अत्यन्त सामान्य कष्ट तो होता ही है, परन्तु अधिक कष्ट होना बीमारी का लक्षण है ।
मासिक-स्राव का जल्दी अथवा देर से होना, अधिक दिनों तक, अधिक परिमाण में अथवा अधिक कष्ट के साथ होना, अधिक गाढ़ा, पतला तथा बदले हुए रंग का होना-ये सब गड़बड़ी के लक्षण हैं । स्त्रियों के 80 प्रतिशत रोग प्राय: मासिक-स्राव की गड़बड़ी के ही कारण होते हैं। अत: मासिक-स्राव की अनियमितता एवं औचित्य पर ध्यान देना आवश्यक है । मासिक स्राव की गड़बड़ी ही प्राय: गर्भपात एवं बन्ध्यत्व को भी जन्म देने का कारण बन जाती है । ऋतुकाल में स्त्री को स्नान तथा मैथुन करना वर्जित है ।
विशेष टिप्पणी – ऋतुमयी होने के कुछ समय (प्राय: एक दिन) पूर्व तथा ऋतुकाल में (मासिक-स्राव जारी रहते समय) होम्योपैथिक औषध का सेवन करना वर्जित है, परन्तु ऋतुस्राव सम्बन्धी रोगों में ऋतुस्राव बन्द होने के बाद ही (यदि किसी रोग के कारण ऋतुस्राव बन्द हो रहा हो तो दूसरी बात है) होम्यों-औषधियों का सेवन करना चाहिए तथा आवश्यकता हो तो अगला ऋतुस्राव होने तक औषध सेवन करते रहना चाहिए ।
ऋतुस्राव सम्बन्धी विभिन्न रोगों में निम्नलिखित होम्यो-उपचार हितकर है:-
प्रथम पीरियड में विलम्ब (Delayed Menstruation)
विवरण – यदि किसी लड़की के वयस्क हो जाने पर भी ऋतुस्राव आरम्भ न हुआ हो अथवा एक बार पीरियड होने के बाद फिर होना बन्द हो गया हो तो उसे ‘प्रथम पीरियड में विलम्ब’ की संज्ञा दी जाती है । स्नायविक-दुर्बलता, बहुत दिनों तक किसी बीमारी को भोगने के कारण शारीरिक-अशक्तता, रक्ताल्पता अथवा योनि-मुख की आवरक-झिल्ली के न फटने आदि से होता है। इसके कारण सिर में भारीपन, सिर-दर्द, श्वास-कष्ट, छाती का धड़कना, कमर तथा टाँगों में दर्द, नाक अथवा मल-द्वार से रक्त-स्राव, कमर तथा उसमें भार का अनुभव एवं तलपेट में दर्द आदि उपसर्ग प्रकट होते हैं ।
इस दोष के लिए निम्नलिखित होम्योपैथिक औषधियों का उपयोग करें :-
पल्सेटिला 3x, 30 – प्रायः मोटी ताजी, थुलथुल शरीर, उष्णता-प्रधान एवं श्यामवर्ण, स्त्रियों की बीमारी में यह अधिक लाभ करती है । मासिक-स्राव न होने के कारण पेट, पीठ, कमर तथा सिर में दर्द, दिल का धड़कना, आलस्य, टाँगों का भारी होना, साँस में भारीपन तथा रक्त की कमी आदि लक्षणों में इसे देना चाहिए । इस औषध की रुग्णा को गर्मी सहन नहीं होती और वह खुली हवा को पसन्द नहीं करती है।
सीपिया 200 – यह पतली-दुबली, गौर-वर्णा, शीत-प्रधान स्त्रियों के ऋतुस्राव में विलम्ब की श्रेष्ठ औषध है । ‘पल्स’ के लक्षणों के साथ ही श्वेत-प्रदर की शिकायत भी हो तो यह औषध विशेष लाभ करती है ।
ऐकोनाइट 3x, 30 – प्रथम बार रज:स्राव होने के बाद सर्दी लग जाने अथवा भय आदि किसी मानसिक-उद्वेग के कारण पुन: ऋतुस्राव होना बन्द हो जाने पर इस औषध के प्रयोग से लाभ होता है ।
सिनेशियो Q – प्रथम बार के रज: स्राव में विलम्ब होने अथवा एक-दो बार रज:स्राव होने के बाद मासिक-धर्म बन्द हो जाना अथवा कष्टकर थोड़ा या अनियमित रज:स्राव होना – इन लक्षणों में हितकर है ।
सिमिसिफ्यूगा 6x – डिम्बकोष की स्नायविक कमजोरी के कारण रज:स्राव न होने के कारण सिर-दर्द, रक्ताल्पता एवं बाएं अंग, विशेष कर बाँयें स्तन में दर्द होने के लक्षणों में हितकर है ।
सल्फर 30 – कमर में दर्द, सिर में टनक, चक्कर आना, भूख न लगना, स्वभाव में चिड़चिड़ापन, अजीर्ण तथा बवासीर के साथ कब्ज होना – इन लक्षणों वाले विलम्बित रज:स्राव में हितकर है ।
नेट्रम-म्यूर 12x वि० – पतली-दुबली रोगिणी को नींद न आना, ठण्ड लगना पांवों में ठण्डक तथा कब्ज के लक्षणों में लाभकारी है ।
ब्रायोनिया 3, 30 – योनि से रज:स्राव होने की अपेक्षा नाक अथवा मुँह से खून निकलना, सूखी खाँसी तथा छाती में सुई चुभने जैसा दर्द के साथ कब्ज के लक्षणों में हितकर है ।
वेरेट्रम-ऐल्बम 3, 30 – हाथ, पाँव तथा नाक पर ठण्डक, चेहरे का बदरंग होना, वमन, मिचली अथवा पतले दस्त, स्नायविक सिर-दर्द, कमजोरी के साथ बेहोशी अथवा हिस्टीरिया के लक्षणों में लाभकर है ।
कमजोरी अथवा रक्त की कमी के कारण रजोरोध में – चायना 6, नेट्रमम्यूर 30 तथा फेरम 6 ।
अजीर्ण के कारण रजोरोध में – लाइकोपोडियम 12, पल्सेटिला 6, नक्स वोमिका 6 तथा सल्फर 30 ।
धातुदोष के कारण रजोरोध में – कैल्केरिया-फॉस 6, सीपिया 30, लाइकोपोडियम 12, फेरम-फॉस 6, सल्फर 30 तथा साइक्लेमेन 6 ।
यक्ष्मा आदि क्षय-रोग के कारण रजोरोध में – वेसिलिनम 200, आयोड 6 तथा कैल्केरिया-फॉस 12x वि० ।
- ठण्डे पानी में स्नान, सर्दी, अधिक पढ़ना-लिखना, आलस्य तथा गरम एवं उत्तेजक पदाथों का सेवन वर्जित है ।
- सामान्य गरम पानी के टब में कमर तक डुबोकर बैठना, पेट पर कपड़ा बाँधे रखना तथा स्वास्थ्य के सामान्य नियमों का पालन करना आवश्यक है ।