व्यापक-लक्षण तथा मुख्य-रोग
(1) नाड़ी का अत्यन्त मन्द पड़ जाना
(2) तीसरा, पांचवा, सातवां स्पन्दन छोड़कर नाड़ी का चलना
(3) मन्द-नाड़ी के साथ पेट में कलेजा बैठने जैसा अनुभव होना
(4) शोकातुरता के कारण हृदय का धड़कना
(5) हृदय-रोग के कारण पीलिया की बीमारी में इसका प्रयोग
(6) हृदय-रोग के कारण श्वास में कठिनाई की बीमारी में डिजिटेलिस का प्रयोग
(7) हृदय की मन्द-गति के कारण, सोते हुए श्वास रुक-सा जाना
(1) नाड़ी का अत्यन्त मन्द पड़ जाना – हृदय एक मांस-पेशी है। इसके दो काम हैं। एक काम है – रुधिर को जो शरीर में चक्कर काट कर और फेफड़ों से शुद्ध होकर हृदय की तरफ आ रहा है उसे लेना; दूसरा काम है – रुधिर को शरीर के पोषण के लिये धमनियों द्वारा शरीर को देना। इस दोहरे काम के लिये हृदय गति कर रहा है। यह गति हृदय के उक्त दोनों कामों की दृष्टि में रखते हुए दो तरह की होती है। जब हृदय सिकुड़ता है तब इसमें से रुधिर धमनी में चला जाता है, जब यह फैलता है तब फेफड़ों द्वारा शुद्ध किया हुआ रुधिर फेफड़ों से हृदय में आ जाता है। हृदय के सिकुड़ने को ‘सिस्टोल’ (Systole) कहते हैं, ‘सिस्टोल-गति’ द्वारा हृदय से रुधिर बाहर धमनियों द्वारा शरीर में पहुँचने के लिये जाता है; हृदय के फैलने को ‘डायस्टोल’ (Disastole) कहते हैं, “डायस्टोल’-गति से फेफड़ों में शुद्ध हुआ रुधिर हृदय में आ इकट्ठा होता है। ऐलोपैथिक मत के अनुसार डिजिटेलिस का प्रभाव हृदय के ‘संकोचन’ (Systole) तथा ‘विमोचन’ (Disastole) की गति को बल देकर हृदय की मांस-पेशी को बल देना है। उनके मत से डिजिटेलिस हृदय को टोन देता है – हृदय का टौनिक है।
होम्योपैथिक मत के अनुसार टौनिक नाम की कोई चीज नहीं है। संपूर्ण शरीर को जो वस्तु स्वस्थ कर दे वही टौनिक है, और प्रत्येक व्यक्ति के शरीर की रचना पर भिन्न-भिन्न औषधियों का भिन्न-भिन्न प्रभाव पड़ता है। किसी व्यक्ति की ‘धातुगत-औषधि’ (Constitutional drug) फॉसफोरस हो सकती है, किसी की सल्फर, किसी की कैल्केरिया कार्ब। जिस व्यक्ति की जो ‘धातुगत-औषधि’ होगी उसके लिये वही टौनिक होगी, दूसरी औषधि नहीं।
डिजिटेलिस का मुख्य लक्षण अत्यन्त धीमी नाड़ी का होना है। कभी-कभी नाड़ी 48 स्पन्दन तक चली जाती है। अत्यनत धीमी का यह अर्थ नहीं है कि जिस समय चिकित्सक रोगी का निरीक्षण कर रहा है उसी समय नाड़ी अत्यन्त धीमी हो। इस समय नाड़ी बिजली की तरह तेज हो सकती है, परन्तु रोग की प्रारंभिक अवस्था में नाड़ी की क्या हालत थी-यह जानना आवश्यक है। डिजिटेलिस के रोगी की नाड़ी शुरू-शुरू में, जब वह बीमार पड़ा, अत्यन्त मन्द हो जाती है। अगर रोगी इस समय है, तब तो इसका यह अर्थ है कि रोग बहुत आगे बढ़ चुका है, परन्तु इस अवस्था में भी डॉ० कैन्ट के अनुसार डिजिटेलिस देने से पहले यह जान लेना आवश्यक है कि रोगी का शुरू में क्या हालत थी। क्या उस की नाड़ी शुरू में 48 या इसके आस-पास चल रही थी? अगर ऐसा है, तो यह रोगी डिजिटेलिस का रोगी है, परन्तु अगर शुरू में नाड़ी तेज थी, तब यह रोगी इस दवा का नहीं-ऐसा समझना चाहिये। इस औषधि की नाड़ी शुरू में ही मन्द होती है, और कई दिन तक मन्द रहती है, अन्त में प्रतिक्रिया के रूप में हृदय अनियमित चाल से चलने लगता है। ऐलोपैथ लोग डिजिटेलिस तब देते हैं जब नाड़ी बहुत तेज चलने लगे ताकि उसे धीमा किया जा सके, होम्योपैथ डिजिटेलिस तब देते हैं जब नाड़ी अत्यन्त मन्द गति से चल रही हो। ऐलोपैथी में इस औषधि के कुछ बूंद अत्यन्त तेज गति से चल रहे हृदय को शान्त करने के लिये दिये जाते हैं, होम्योपैथी में जब हृदय की अत्यन्त मन्द गति हो, तब इसका प्रयोग किया जाता है। अगर हृदय की तीव्र-गति है, तब भी इसके प्रयोग के लिये यह जान लेना आवश्यक है कि शुरू-शुरू में हृदय की अत्यन्त मन्द गति थी या नहीं? इसीलिये हमने कहा कि इसका मुख्य लक्षण नाड़ी का अत्यन्त धीमा होना है।
(2) तीसरा, पांचवा, सातवां स्पन्दन छोड़कर नाड़ी का चलना – जब नाड़ी धीमी चलती है, तब तो इस औषधि का क्षेत्र है ही, परन्तु जब कभी तेज कभी धीमी चले, तब बीच-बीच में अनियमित चलने लगती है – तीसरा, पांचवां, सातवां स्पन्द छोड़ देती है। इस अनियमित-स्पन्दन की हालत में भी औषधि को स्मरण रखना चाहिये।
(3) मन्द-नाड़ी के साथ पेट में कलेजा बैठने का-सा अनुभव – इस रोगी की नाड़ी की गति इतनी मन्द पड़ जाती है कि कभी-कभी 40 स्पन्दन तक चली जाती है। रोगी को पेट में कलेजा बैठने का-सा अनुभव होता है। ऐसा अनुभव होता है कि बस अब गये, तब गये। खाने से भी पेट में आराम नहीं मिलता। बेचैनी, बेहोशी-सी, असमर्थता, अत्यन्त क्षीणता, बलहीनता का अनुभव पेट तथा तल-पेट में होता है।
(4) शोकातुरता के कारण हृदय का धड़कना – किसी शोक का रोगी के हृदय पर ऐसा प्रभाव पड़ता है कि हृदय धक-धक करने लगता है। रोगी अनुभव करता है कि हृदय की गति समाप्त हो गई है, हृदय ठहर गया है, हृदय में फड़फड़ाहट होती है। जरा-से भी परिश्रम से हृदय पर जोर पड़ता अनुभव होता है। हरकत से हृदय की धड़कन और घबराहट बढ़ जाती है। रोगी की नाड़ी 40 तक पहुंच जाती है, और अगर वह करवट भी बदलता है तो नाड़ी फड़फड़ाने लगती है, उसकी गति तेज हो जाती है, सारे शरीर में नाड़ी की थिरकन अनुभव होने लगती है।
(5) हृदय-रोग के कारण पीलिया की बीमारी में डिजिटेलिस का प्रयोग – पीलिया रोग के दो कारण हो सकते हैं एक तो जिगर की (Hepatic) तथा दूसरी हृदय की (Cardiac) बीमारी। जब हृदय-रोग के कारण कय होने लगे, रोगी का सारा शरीर पीला पड़ने लगे, आँख की श्वेतिमा सोने जैसे रंग के समान पीली पड़ जाय, नाखून तक पीले हो जायें, मल रंग रहित हो जाय, पेशाब बीयर के रंग सा हो जाय, नाड़ी की गति अत्यन्त मन्द पड़ जाय, 40 तक चली जाय, तब समझ लेना चाहिये कि रोग हृदय की मन्द-गति के कारण है, और तब डिजिटेलिस लाभप्रद होगा।
(6) हृदय-रोग के कारण श्वास में कठिनाई की बीमारी में डिजिटेलिस – हृदय की कमजोरी के कारण रोगी चलते-फिरते, ऊंचाई पर चढ़ते समय हाँफने लगता है, सांस लेने में तकलीफ होती है। डॉ० नैश एक ऐसे रोगी का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि एक दिन एक हट्टा-कट्टा, तगड़ा आदमी सड़क पार कर इनके आफिस की तरफ आ रहा था। वह चलते हुए डगमगा रहा था। उन्होंने समझा कि वह शराब पिये हुए है, परन्तु निकट से देखने पर पता चला कि उसका चेहरा, होंठ नीले पड़ गये थे। उसे सहारा देकर इन्होंने कमरे के अन्दर ला बिठाया। कुछ मिनट तक तो बेचारा बैठा हांफता रहा, उसके मुंह से आवाज तक नहीं निकली। उसकी नाड़ी बड़ी अनियमित चल रही थी, बीच-बीच में एक स्पन्दन गायब हो जाता था। कुछ देर दम लेने के बाद वह कहने लगा कि कई बार उसे इस प्रकार की श्वास की कठिनाई हो जाती है, वह चलते-चलते रास्ते में दम लेने के लिये बैठ जाता है। डॉ० नैश ने उसकी नाड़ी की मन्द गति को देखकर डिजिटेलिस 2 शक्ति की कुछ बूंदे पानी में डालकर पिलायीं। कुछ दिन बाद क्या देखते हैं कि वह फावड़ा लेकर अपने घर के सामने की बर्फ साफ कर रहा था। डाक्टर नैश को देखकर कहने लगा। उस दवा लेने के बाद से उसके सांस के दौर खत्म हो गये और हृदय की जो बीमारी थी वह भी जाती रही।
(7) हृदय की मन्द गति के कारण सोते हुए श्वास रुक जाने की कठिनाई – हृदय की बीमारी में सांस लेने में कठिनाई होने लगती है। रोगी हर समय गहरा सांस लेने का प्रयत्न करता है। जब वह सोने लगता है तब उसे ऐसा प्रतीत होता है कि सांस रुक गया। वह गहरा सांस भर कर उठ बैठता है। लैकेसिस, फॉसफोरस और कार्बो वेज में भी ऐसा लक्षण है। रोगी स्वप्न में देखता है कि वह नीचे गिर रहा है। निद्रा के समय मस्तिष्क में रक्त का संचार कम होता है, और अगर हृदय कमजोर हो, नाड़ी मन्द हो, तो सिर में पर्याप्त रुधिर न पहुंचने के कारण रोगी सेाते से चौंक उठता है, भयानक स्वप्न आते हैं, अंगों का स्फुरण होता है। जागते हुए भी शरीर में बिजली का शौक लगता-सा अनुभव होता है, बेहोशी आती है, कमजोरी हो जाती है।
डिजिटेलिस औषधि के अन्य लक्षण
(i) रोगी इतना दुर्बल होता है कि जरा-सा भी हिलने-डोलने से ऐसा लगता है कि हृदय की क्रिया बन्द हो जायगी। जेलसीमियम का रोगी अगर हिले-डुले नहीं, तो उसे लगता है कि हृदय की क्रिया बन्द हो जायगी।
(ii) डॉ० कैन्ट कहते हैं कि प्रोस्टेट ग्लैंड की यह अमूल्य औषधि है। उनका कहना है कि अगर डिजिटेलिस का उन्हें ज्ञान न होता, तो वें नहीं जानते कि प्रोस्टेट के रोगियों का इलाज वे कैसे कर सकते थे।
(iii) हृदय की दुर्बलता के कारण खांसी में यह औषधि उपयोगी है।
(iv) हृदय-रोग के कारण पांव आदि की शोथ में भी यह लाभप्रद है।
(v) डिजेटेलीन स्वप्नदोष की एक बहुत बढ़िया दवा है। डिजेटेलीन डिजिटेलिस का ही एक क्षार है।
(9) शक्ति – मूल अर्क, 3, 30, 200