गाय के दूध में सोना (Gold) – गाय की रीढ़ की हड्डी में सूर्यकेतु नाड़ी होती है। सूर्य की किरणें जब गाय के शरीर को छूती हैं, तब सूर्यकेतु नाड़ी सूर्य की किरणों से सोना बनाती है। इसी कारण गाय के दूध और मक्खन में पीलापन होता है, इसमें विषनाशक तत्व होते हैं। नाग (साँप) के काटने पर गाय का घी पिलाना चाहिए, इससे विष उतर जाता है। जीवनभर गाय का दूध-पीने वाले व्यक्ति कैंसर जैसे भयानक रोगों से बचे रहते हैं। गाय का दूध पीने से शुद्ध सोना शरीर में जाता है।
शिशु का भोजन – शिशुओं के लिए गाय का दूध माता के दूध के समान गुणकारी है।
गाय का दूध सर्वोतम है। दूध को अधिक देर तक गर्म नहीं करना चाहिए। पतले लोगों को मलाईदार दूध और मोटों को मक्खन निकला हुआ दूध पीना चाहिए। आधा किलो दूध अपने विशेष गुणों से एक पाव माँस और तीन अण्डों से अधिक मूल्यवान है। दूध पूर्ण भोजन है। दूध में जीवनोपयोगी सभी पदार्थ होते हैं।
दूध की सफेदी का क्या कारण है?
एक गिलास ठण्डा मलाईदार दूध पीने के बाद आपके होंठों पर जो सफेद मूंछे दिखने लगती हैं, वह दूध में उपस्थित प्रोटीन ‘केसीन’ है। पौष्टिक कैल्शियम से भरपूर केसीन के कारण दूध सफेद नजर आता है। दूध में उपस्थित क्रीम या मलाई भी इसे सफेद रंग प्रदान करती है। बिना मलाई का दूध सफेद के बजाय स्लेटी नजर आता है। दूध के सफेद नजर आने का एक और कारण है। कुछ वस्तुएँ प्रकाश को सोखने के बजाय इसे परिवर्तित करती हैं। लाल दिखने वाली वस्तुएँ सिर्फ लाल प्रकाश को ही परावर्तित करती हैं। दूध का केसीन प्रोटीन प्रकाश को पूर्ण रूप से परावर्तित करता है, इसलिए दूध सफेद नजर आता है। दूध के सबसे पौष्टिक तत्व हैं कैल्शियम और विटामिन डी। कैल्शियम हमारी हड्डियों और दाँतों को मजबूत बनाता है और विटामिन ‘डी’ कैल्शियम को सोखने में मदद करता है।
दूध पीने का समय – दूध प्रात: पीना लाभदायक है। दूध का पाचन सूर्य की गर्मी से होता है। अत: रात को दूध नहीं पीना चाहिए। साधारणतया दूध सोने से तीन घण्टे पहले पीना चाहिए। दूध पीकर तुरन्त नहीं सोना चाहिए। रात्रि को ज्यादा गर्म दूध पीने से स्वप्नदोष होने की सम्भावना रहती है।
दूध कैसा पियें? – ताजा धारोष्ण दूध पीना अच्छा है। यदि यह सम्भव नहीं हो तो दूध गर्म करके पियें। गर्म इतना ही करें जितना गर्म पिया जा सके। दूध को अधिक उबालने से जीवनोपयोगी अंश नष्ट हो जाते हैं। दूध को बहुत उलट-पुलट कर झाग पैदा करके धीरे-धीरे पियें। दूध के झाग बहुत लाभदायक होते हैं। झागों का स्वाद लेकर चूसें। जितने ज्यादा झाग दूध में होंगे, वह दूध उतना ही लाभदायक होगा। दूध का सेवन करते समय किसी प्रकार का खट्टा पदार्थ न लें। दही भी प्रात: और दोपहर को ही लें। रात्रि में दही का सेवन न करें।
दूध में मिठास – चीनी मिला दूध कफकारक होता है। प्राय: दूध में चीनी मिलाकर मीठा करके पीते हैं। चीनी मिलाने से दूध में जो कैल्शियम होता है, नष्ट हो जाता है। अत: चीनी मिलाना उचित नहीं है। दूध में प्राकृतिक मिठास होती है। फीके दूध का अभ्यास करने से थोड़े दिन में ही उसकी प्राकृतिक मिठास का भान होने लगता है और बाह्य मिठास की आवश्यकता नहीं होती। जहाँ तक हो इसमें चीनी न मिलायें। यदि मिठास की आवश्यकता हो तो शहद, मीठे फलों का रस, मुनक्का को भिगोकर इसका पानी, गन्ने का रस, ग्लूकोज मिलायें। बूरा या मिश्री मिला हुआ दूध वीर्यवर्धक, त्रिदोष नाशक होता है।
दूध का शीघ्र पाचन – किसी-किसी को दूध नहीं पचता, अच्छा नहीं लगता। इसके लिए दूध में एक पीपल डालकर, उबालकर पियें। इससे वायु नहीं बनती। दूध में शहद मिलाकर पीने से गैस नहीं बनती। दूध शीघ्र पचता है, दूध के साथ नारंगी, मौसमी का रस मिलाकर पीने, सूखे मेवे डालकर पीने से या ऊपर से नारंगी खाने से दूध शीघ्र पचता है। दूध पीने के बाद नीबू चूसने से भी शीघ्र पचता है। दूध बादी करता हो, गैस बनाता हो तो अदरक के टुकड़े या सोंठ का चूर्ण और किशमिश मिलाकर सेवन करें।
दूध किन-किन रोगों में हानिकारक है – खाँसी, दमा, दस्त, पेचिश, पेट दर्द और अपच आदि रोगों में दूध नहीं पीना चाहिए। इनमें ताजा छाछ (मट्ठा) पीना चाहिए। घी भी इनमें नहीं लेना चाहिए।
शिशु-आहार – माँ का आहार ही शिशु का आहार है। माँ को पौष्टिक भोजन घी, दूध लेना चाहिए। चटपटी और मसालेदार चीजें नहीं खानी चाहिए। इससे माँ शिशु को भरपेट दूध पिलायेगी। प्रसव के बाद घुट्टी आदि शिशुओं के लिए संक्रमण का ही कार्य करती है जबकि नवजात शिशु को माँ के दूध के अतिरिक्त पानी भी नहीं पिलाया जाना चाहिए।
स्तनपान – डिब्बाबंद दूध से बच्चों का मस्तिष्क प्रदूषित होता है तथा बच्चा आजीवन किसी-न-किसी बीमारी से ग्रस्त रहने लगता है। माँ का दूध अधिक पीने वाले बच्चों के मुकाबले उनके भीतर शांति व न्याय की भावना कम होती है। दूसरी ओर स्तनपान कराने वाली माताएँ प्राय: स्तन कैंसर से बची रहती हैं तथा उनका सैक्स भी लाजवाब बना रहता है। स्तनपान कराने वाली महिलाएँ, स्तनपान न कराने वाली महिलाओं की अपेक्षा अधिक खूबसूरत बनी रहती हैं।
धारोष्ण दूध – दूध निकलवाकर, छानकर ताजा, बिना गर्म किए मिश्री या शहद, भिगोई हुई किशमिश का पानी मिलाकर चालीस दिन पीने से वीर्य शुद्ध होता है। नेत्रज्योति, स्मरण-शक्ति बढ़ती है। खुजली, स्नायुदौर्बल्य, बच्चों का सूखा रोग, क्षय रोग (टी. बी.), हिस्टीरिया, हृदय की धड़कन आदि में उपयोगी है। यह छोटे और दुर्बल बालकों को अधिक लाभ करता है। इसे धीरे-धीरे चुस्की लेकर पियें।
मोटापा – एक गिलास दूध में 15 मुनक्का बीज निकालकर डाल दें। फिर उबालकर पीने जैसा ठण्डा होने पर एक चम्मच देशी घी और तीन चम्मच शहद डालकर पियें। इससे शरीर का वजन बढ़ेगा।
शिशु शक्तिवर्धक – बच्चे बड़े होने पर भी दुर्बल हों, सूखा रोग हो तो उन्हें दूध में बादाम मिलाकर पिलायें।
शक्तिवर्धक – (1) आधा किलो दूध में पाव भर गाजर कद्दूकस से छोटे-छोटे टुकड़े करके उबालकर सेवन करने से दूध जल्दी पचता है, दस्त साफ आता है और दूध में लोहा की मात्रा बढ़ जाती है। (2) एक गिलास दूध में एक चम्मच देशी घी तथा तीन चम्मच शहद मिलाकर नित्य रात को दो माह तक पियें। बुढ़ापा शीघ्र नहीं आयेगा। बल, वीर्य और सौंदर्य में वृद्धि होती रहेगी।
उच्च रक्तचाप को दूध कम करता है। दूध में विटामिन ‘बी’ अधिक मात्रा में पाया जाता है जो शरीर को स्वस्थ रखता है।
हृदयाघात – पिछले 28 साल में चार लाख वयस्कों पर किये अध्ययन में पाया कि जो लोग अधिक दूध पीते थे उन्हें हृदय संबंधी अटैक और स्ट्रॉक की संभावना 17 प्रतिशत तक कम हो गई।
बुढ़ापा – बाल सफेद होना और दाँत गिरने लगना, घुटनों में शक्ति कम होना, त्वचा में झुर्रियाँ पड़ना, आँखों में ज्योति कम होना, कानों से कम सुनाई देना बुढ़ापे के चिह्न हैं। दूध पीते रहने से आयु बढ़ती है। बुढ़ापा अपना प्रभाव नहीं जमा पाता। जो अनाज हम खाते हैं, उसका तीस प्रतिशत प्रोटीन ही पचकर शरीर के काम आता है लेकिन यदि भोजन के साथ दूध लिया जाये तो इससे दुगुनी मात्रा में प्रोटीन शरीर में पचकर शक्ति देता है।
स्त्री संग के बाद एक गिलास दूध में पाँच बादाम पीसकर मिलायें। एक चम्मच देशी घी डालें। इसे पीने से बल मिलता है। नामदीं दूर करने के लिए सर्दी के दिनों में दो रत्ती केसर डालकर पियें।
खुजली – दूध में पानी मिलाकर रुई के फोहे से शरीर पर मलें। थोड़ी देर बाद स्नान कर लें। खुजली मिट जायेगी।
चक्कर (Vertigo) – 250 ग्राम दूध में सात मुनक्का उबालकर रात को नित्य पीने से चक्कर आना ठीक हो जाते हैं।
होंठों का सौंदर्य – एक चम्मच कच्चे दूध में जरा-सी केसर पीसकर होंठों पर मालिश करने से होंठों का कालापन दूर हो जाता है और कान्ति बढ़ती है।
चेहरे का सौंदर्य – चेहरे पर झाँई, कील, मुँहासे, दाग-धब्बे दूर करने के लिए पहले गर्म दूध चेहरे पर मलें, चेहरा धोयें। आधा घण्टे बाद साफ पानी से चेहरा धोयें। इससे चेहरे का सौंदर्य बढ़ेगा। चेहरे के धब्बों पर धारोष्ण दूध के झाग मलने से धब्बे मिट जाते हैं। सोते समय चेहरे पर दूध की मलाई लगाने से भी कील, झाँइयाँ मिट जाती हैं।
सौंदर्यवर्धक – बतासे पीसकर रख लें। आधा चम्मच इस पाउडर में जरा-सा दूध मिलाकर गूंध लें। गाढ़ा-गाढ़ा चेहरे पर लगायें। इससे चेहरे के दाग, धब्बे, चकत्ते, चेचक और मुँहासों के निशान मिट जाते हैं।
मुख सौंदर्य – सूखी त्वचा पर दूध की मलाई मलें। जहाँ झुर्रियाँ पड़ गई हों वहाँ गर्म दूध की मालिश करें। सारे शरीर की दूध से मालिश करना भी लाभदायक है। दूध में नीबू निचोड़कर, फाड़कर, जमे हुए दूध के टुकड़ों से मालिश करने से रूप, रंग निखर जाता है। चेहरे के दाग-धब्बे मिटाने के लिए दूध से 10 मिनट तक चेहरे की मालिश करें। मुँहासों के दाग होने पर कच्चा दूध और पानी समान मात्रा में मिलाकर लस्सी बनाकर पीने से लाभ होता है।
मुँहासे – चार चम्मच बेसन दूध में गूँधकर एक नीबू निचोड़कर चेहरे पर नित्य एक महीने मलें। चेहरा साफ हो जायेगा।
बाल काले करना – दो किलो दूध उबालकर उसमें सौ ग्राम नील मिलाकर दही जमायें। उसे बिलोकर घी निकालकर लोहे के इमामदस्ते में लोहे की मूसली से इतना रगड़े कि सारा घी काला हो जाये। इस घी को बालों पर लगाने से बाल काले हो जाते हैं।
चेहरे पर अनावश्यक बाल – (1) औरतों के चेहरे पर भी बाल उग आते हैं, जिनसे उन्हें शर्म आती है। पाँच-पाँच चम्मच बिना छिलके वाली चने और मसूर की दाल तथा एक चम्मच पिसी हुई हल्दी डालकर दूध में भिगो दें। प्रात: इस दाल को पीसकर नित्य चेहरे पर मलें। (2) यदि रक्तविकार हो तो कच्चे दूध की लस्सी नित्य पियें। कुछ दिनों में चेहरे के बाल उड़ जायेंगे।
फरास, बाल गिरते हों, गंज आ गई हो तो पोस्त के दाने (खस-खस) छ: चम्मच, दूध में भिगोकर पीसकर सिर पर लेप करें। आधे घण्टे बाद सिर धोयें।
जलना – जलने पर घी लगायें तथा एक गिलास दूध में एक चम्मच घी डालकर रोजाना पियें।
अाँखों के रोग – अाँखों में चोट लगी हो, जल गई हो, मिर्च-मसाला गिरा हो, कोई कीड़ा गिर गया हो या डंक मारा हो, आँख लाल हो, दुखती हो, कीचड़ आती हो, प्रकाश सहन न होता हो तो रुई का फोहा दूध में भिगोकर अाँखों पर रखने से लाभ होता है। रात भर फोहा बँधा रखें तो ज्यादा लाभदायक है। दो बूंद दूध की आँख में भी डालें।
नेत्रों में जलन – (1) रात को सोते समय अाँखों की पलकों पर दूध की मलाई रखकर सोयें। जलन मिट जायेगी। (2) एक गिलास ठण्डे पानी में चौथाई कप दूध डालकर अाँखों पर छोटे मारें। जलन दूर हो जायेगी। गर्मी से अाँखों में सूजन हो तो वह भी ठीक हो जायेगी।
नेत्रों में सूजन – यकृत खराब होने पर नेत्रों में सूजन आ जाती है। आधा गिलास दूध में एक गिलास पानी, चौथाई चम्मच पिसी हुई सोंठ डालकर इतना उबालें कि पानी जल जाये और दूध रह जाये। इसमें स्वादानुसार शहद मिलाकर घूंट-घूंट पियें।
अाँख में अवांछित वस्तु गिरना – अाँख में तिनका या अन्य कोई चीज गिर जाए और निकलती न हो तो आँख में दूध की तीन बूंदें डालें। दूध की चिकनाहट से वह अाँख से निकल जायेगी। श्वास में घरघराहट होने पर एक कप दूध, दो कप पानी, एक चम्मच पिसी हुई सोंठ, बीस पिसी हुई कालीमिर्च डालकर उबालें। उबालते-उबालते आधा भाग रहने पर ठण्डा होने दें। हल्का-सा गर्म रहने पर इसमें दो चम्मच शहद मिलाकर नित्य सुबह-शाम पियें। श्वास को घरघराहट दूर हो जायेगी।
श्वास नली के रोग, शक्तिवर्धक – एक गिलास पानी + एक गिलास दूध में 5 पीपल डालकर इतना गर्म करें कि केवल दूध ही बचे, पानी जल जाये फिर शक्कर डालकर नित्य सुबह-शाम पियें। इससे जीर्ण ज्वर, जुकाम, खाँसी, दमा, फेफड़े की कमजोरी, आरम्भिक टी. बी. वीर्य की कमी एवं कमजोरी दूर होती है। यह कुछ महीने करें।
दमा – (1) 250 ग्राम दूध, 250 ग्राम पानी, 12 मुनक्का बीज निकालकर, पीसकर सबको मिलाकर उबालें। जब उबालते-उबालते आधा पानी रह जाये तब इसमें पिसी हुई दस कालीमिर्च, एक चम्मच मिश्री मिलाकर गर्मा-गर्म नित्य एक बार पिलायें। दमा में यह बहुत लाभकारी है। (2) काकड़ा सिंगी व बड़ी पीपल समान मात्रा में मिलाकर पीस लें। गाय के दूध में केवल चावल (एक किलो दूध + 100 ग्राम चावल) पकाकर खीर बनाकर काँसे के बर्तन में इसे डालकर उस पर यह पाउडर डालकर शरद पूर्णिमा की रात को खुले में रख दें। इसी रात्रि में प्रात: सूर्योदय के पहले यह खीर खिलायें। दमा में लाभदायक है। शरद पूर्णिमा को लोग दमा की यह खीर खाया करते हैं।
मूत्राशय (Bladder) के रोग – दूध में गुड़ मिलाकर पीने से लाभ होता है। मूत्र में रुकावट होने पर गर्म दूध में गुड़ डालकर पियें।
अपच – गरिष्ठ भोजन, जैसे-मिठाइयाँ, जीमन, पूरी आदि खाने से पेट खराब हो जाता है। अपच हो जाती है। एक गिलास दूध, आधा गिलास पानी, स्वादानुसार चीनी मिलाकर सबको उबालें। अच्छी तरह उबलने के बाद गर्म-गर्म धीरे-धीरे पियें। चार घण्टे बाद एक बार पुन: इसी प्रकार दूध बनाकर पियें। खाना नहीं खायें। प्यास लगने पर गर्म पानी पियें। गरिष्ठ भोजन से उत्पन्न सारी अपच ठीक हो जायेगी।
अम्लपित्त (Acidity) – (1) जिन्हें अम्लपित्त (पेट से कण्ठों तक जलन) हो, उन्हें दिन में तीन बार ठण्डा दूध पीना चाहिए। (2) एक कप गर्म दूध में नीबू निचोड़कर फाड़ लें। ठण्डा होने पर उसका पानी छानकर पियें तथा फटने से बना पनीर खायें। पानी से अम्लपित में लाभ होता है तथा इस पनीर को खाने से अम्लपित के घाव ठीक हो जाते हैं। यह प्रयोग कम-से-कम 15 दिन करें।
हिचकी – गर्म दूध पीने से हिचकी बन्द हो जाती है। थकान दूर करने के लिए एक गिलास गर्म दूध पियें।
बवासीर, कब्ज़ – गर्म दूध के साथ ईसबगोल की भूसी या गुलाब का गुलकन्द लेने से शौच खुलकर आता है। बवासीर वालों को भी इसे सेवन करना चाहिए। गाय का ताजा दूध तलुओं पर मलने, रगड़ते रहने से बवासीर में लाभ होता है।
गैस – (1) एक गिलास दूध में चार ग्राम पिसी हुई दालचीनी मिलाकर उबालें। फिर उलट-पुलट कर फेंटकर दो चम्मच शहद मिलाकर पियें। इस प्रकार दूध पीने से गैस नहीं बनती। (2) पोदीना और लहसुन की चटनी (बिना नमक व मसाले की) खाने से गैस बाहर निकलने लगेगी। (3) जवाखार (यवक्षार) और सोंठ समान मात्रा में पीसकर एक चम्मच, पानी के साथ फंकी लें। यह स्वादिष्ट चूर्ण है।
दस्त – छोटे बच्चों को दस्त हों तो गर्म दूध में चुटकी भर पिसी हुई दालचीनी डालकर पिलायें। बड़ों को दुगनी मात्रा में मिलाकर पिलायें।
दस्त गर्मी के – गर्म दूध में नीबू निचोड़कर तुरन्त पी जायें। गर्मी के दस्त, पेचिश, अॉव ठीक हो जायेंगे।
उल्टी – उबाले हुए गर्म दूध में स्वादानुसार मीठा मिलाकर बर्फ डालकर ठण्डा करके पीने से उल्टियाँ होना बन्द हो जाता है।
पक्षाघात होते ही गुनगुने (हल्का गर्म) दूध में स्वादानुसार शहद मिलाकर नित्य दो बार पीने से लाभ होता है।
पौष्टिक – दूध जितना पौष्टिंक है, दूध से बनी मिठाइयाँ उतनी पौष्टिक नहीं होतीं। बकरी का दूध, गाय, भैंस के दूध से अच्छा होता है।
पोषक – माँ का दूध अन्य सभी प्रकार के दूधों से उत्तम होता है। माँ का दूध रोगनिरोधक है एवं शक्ति बढ़ाता है तथा संक्रामक रोगों से बचाव करते हुए शरीर को सुन्दर रखता है।
कूकर खाँसी – एक कप दूध, एक कप पानी मिलाकर उबालें। आधी मात्रा में रहने पर इसमें आधा चम्मच घी मिलाकर पिला दें। इस प्रकार तीन बार रोजाना दो सप्ताह तक पिलायें। कूकर खाँसी ठीक हो जायेगी। स्वाद के लिए इलायची आदि कोई भी चीज मिला सकते हैं।
शिशु-नीरोगिता – माता का संयमी जीवन ही बच्चे को नीरोग रखता है। स्त्री को पुरुष-संग के तत्काल बाद बच्चे को शीघ्र ही दूध नहीं पिलाना चाहिए। इससे बच्चे के शरीर में गर्मी चली जाती है। इसी प्रकार जब क्रोध आया हुआ हो तो बच्चे को दूध न पिलायें। दूध में विटामिन ‘सी’ नहीं होता। अत: नारंगी-मौसमी का रस बच्चों को अवश्य पिलायें।
बच्चों को दूध से घृणा – यदि बच्चा दूध नहीं पीता है, घृणा करता है तो दूध न पिलायें। दूध के स्थान पर दही, छाछ, लस्सी, दूध से बनी अन्य चीजें, खीर, सूजी आदि दें। कुछ सप्ताह बाद बच्चा स्वयं दूध पीने लगेगा। बच्चे के भोजन में परिवर्तन करते रहना चाहिए। केले को पीसकर दूध में मिलाकर दे सकते हैं।
बच्चों के दाँत गलना – दूध पिलाने के बाद बच्चों को थोड़ा-सा पानी पिलायें, दाँत साफ करायें। कोई भी चीज खाने-पीने के बाद थोड़ा-सा पानी पिलायें और कुल्ले करायें।
लड़का होगा या लड़की – गर्भवती के दूध की कुछ बूंद चेहरा देखने के काँच पर डालें। फिर उसमें जूं डुबा दें। यदि जूं दूध में से जीवित निकलकर बाहर आ जाये तो लड़की होगी अन्यथा लड़का होगा।
वीर्य पुष्टि – प्रात: नाश्ते में केला, दस ग्राम देशी घी के साथ खाकर ऊपर से दूध पियें। दोपहर के बाद दो केले, आधा छटांक खजूर, एक चम्मच देशी घी खाकर ऊपर से दूध पियें।
(1) मर्दाना शक्ति बढ़ाने के लिए गर्म दूध में एक चम्मच घी मिलाकर नित्य सोते समय पियें। इससे उन्माद में भी लाभ होता है। (2) अण्डकोश प्रदाह -अण्डकोश में फुलाव, सूजन, दर्द किसी भी कारण से हो, दूध में एरण्ड की अण्डोली की गिरी बहुत बारीक पीसकर नित्य लेप करें। अण्डकोश ठीक हो जायेगा। यदि अण्डोली नहीं मिले तो अरण्ड का तेल (Castor Oil) और दूध मिलाकर लगायें।
दूध से यौनेच्छा – तीन माह तक लगातार रात्रि को दूध पीने से स्त्री व पुरुषों की यौनेच्छा और काम-शक्ति के साथ-साथ यौन-क्रिया की अवधि में भारी वृद्धि हो जाती है। दूध में शहद मिलाकर पीने से वीर्य बढ़ता है।
शुक्रवर्धक – दो छुहारे नित्य दूध में उबालकर खायें व दूध पियें। शुक्रों की संख्या बढ़ेगी।
चिड़चिड़ापन – कैल्शियम की कमी से स्त्रियों में मासिक धर्म से पहले चिड़चिड़ापन होता है। नित्य दिन भर में चार गिलास दूध पीने से मासिक धर्म के समय होने वाले मानसिक विकार- क्रोध, चिड़चिड़ापन दूर हो जाते हैं।
अतिरज – मासिक स्राव में रक्त अत्यधिक जाता हो तो एक गिलास दूध में एक चम्मच पिसा हुआ कतीरा स्वादानुसार पिसी हुई मिश्री मिलाकर नित्य तीन बार पीने से रक्तस्राव बन्द हो जाता है।
बाँझपन – पति-पत्नी नित्य दूध पियें और ब्रह्मचर्य से रहें। गर्भाधान के सहायक दिनों में ही सम्पर्क करें। इस तरह की दिनचर्या बाँझपन दूर करने में लाभदायक है। दूध बछड़े वाली गाय का अधिक उपयोगी है।
ऊपर का दूध पीने से दाँत जल्दी खराब – शैशवावस्था में ही बच्चों में दंत-रोगों का बीजारोपण हो जाता है। माँ का स्तनपान करने वाले शिशुओं की अपेक्षा ऊपर का दूध पीने वाले शिशुओं के दाँत आगे चलकर जल्दी खराब हो जाते हैं। बोतल से दूध पीने वाले शिशु शक्कर का सेवन करने से मीठे के आदी हो जाते हैं। शैशवावस्था में केवल जीभ ही नहीं अपितु होंठ और गले की स्वाद-ग्रंथियाँ भी अधिक संवेदनशील होने के कारण जल्दी प्रभावित हो जाती हैं इसलिए तीन-चार वर्ष के होने तक वे मीठी वस्तुएँ खाना ही अधिक पसन्द करते हैं जिससे आगे चलकर दाँत जल्दी खराब हो जाते हैं।
शिशुओं के लिए माँ का दूध ही उत्तम है। यदि उन्हें ऊपर का दूध पिलाया जाए तो उसमें चीनी नहीं मिलानी चाहिए। डिब्बे के दूध में मिली चीनी भी हानिकारक होती है। यदि पहले से ही इस दिशा में सावधानी बरती जाए तो बच्चों के दाँत अधिक मजबूत हो जायेंगे और उनके जल्दी खराब होने का डर भी नहीं रहेगा।
दूध में मिलाई जाने वाली चीनी ही दाँतों को खराब करती है।
त्वचा का कालापन – नित्य चेहरे पर दूध मलें। चेहरा सुन्दर दिखेगा, कालापन दूर हो जायेगा। यदि इच्छा हो तो सारे शरीर पर ही दूध मलें, ऐसा करने से रूखापन दूर होकर त्वचा मुलायम हो जायेगी और कालापन हट जायेगा।
मूत्रकृच्छ (Dysuria) – एक गिलास दूध में एक बूंद चन्दन का तेल डालकर पीने से मूत्रकृच्छ ठीक हो जाता है।
पेशाब की जलन – गर्मी के प्रभाव, गर्म प्रकृति की चीजें खाने से पेशाब में जलन हो तो कच्चे दूध में पानी मिलाकर, लस्सी बनाकर पीने से लाभ होता है।
पथरी – आधा कप दूध एक गिलास में डालें। इसमें खारा सोडा (सोडे की बोतल जो पीने के काम आती है) मिलाकर रोजाना तीन बार पियें। छोटी-छोटी पथरियाँ निकल जायेंगी।
अनिद्रा – (1) रात को सोते समय मावा या खोआ खाने से नींद अच्छी आती है। भैस का दूध निद्रा लाता है। अत: सोते समय भैंस का दूध पियें। (2) रात को दूध में केसर मिलाकर पीने से नींद अच्छी आती है।
सिरदर्द – 500 ग्राम दूध में साफ पानी से धुली हुई 50 ग्राम इमली डालकर एक घण्टा भीगने दें, फिर उस दूध को उबालें। जब दूध फट जाये तो छानकर पानी निकाल लें। इस पानी में पिसी हुई मिश्री स्वाद के अनुसार मिला लें और पियें। इस प्रकार एक सप्ताह नित्य लें। हर प्रकार के सिरदर्द में इससे लाभ होता है।
सिरदर्द आधे सिर में हो – (1) दर्द सूर्य के साथ घटता-बढ़ता हो तो सूर्योदय के पहले गर्म दूध के साथ जलेबी या रबड़ी खायें। (2) 250 ग्राम दूध में स्वाद के अनुसार चीनी डालकर उबालें। फिर दो चम्मच देशी घी डालकर सूर्योदय से पहले पियें। कुछ दिन प्रयोग करने से आधे सिर का दर्द ठीक हो जायेगा। अन्य प्रकार के आधे सिर के दर्द में भी इसे काम में ले सकते हैं।
परिणाम शूल (गैस्ट्रिक और इयूडोनल अल्सर) – रोगी को दूध पर ही रखें अर्थात् बार-बार दूध पीकर ही रहें, भोजन न करें। अनार का रस एवं आँवले का मुरब्बा खायें।
अफीम का नशा – गर्म दूध में घी मिलाकर पीने से अफीम का नशा उतर जाता है।
कान में दर्द होने पर गर्म दूध में एक चम्मच घी मिलाकर पिलाने से लाभ होता है।
कैंसर – अमेरिका की कार्नेल यूनिवर्सिटी के डॉ. डेल बाऊमैन ने गाय के दूध में कैंसर निरोधक तत्व सी.एल.ए. पाये जाने की पुष्टि की है।
सी.एल.ए. रसायन कोलन, प्रोस्टेट, गर्भाशय व स्तन के कैंसर को रोकने में सहायक है। गाय के दूध में इस रसायन के होने से यह कैंसर निरोध का सुलभ स्रोत है। कैंसर के रोगियों को दूध अधिक पीना चाहिए।
हर प्रकार के रोगी की दवा दूध – कोई भी रोग हो, दिन में अनेक बार अर्थात् 15-20 बार थोड़ा-थोड़ा दूध पीते रहने से रोग दूर हो जाते हैं।
विवर प्रदाह (sinusitis) – जुकाम में विवर प्रदाह (आधे सिर में दर्द) हो तो दूध में काढ़ा बनाकर पियें। एक गिलास दूध, एक गिलास पानी, तीन पीपल, चार लौंग, दालचीनी के छोटे-छोटे आठ टुकड़े सब मिलाकर उबालें। पानी जल जाने पर दूध छान लें। पीने लायक गर्म रहने पर मीठे के स्वादानुसार तीन चम्मच शहद मिलाकर पियें। चादर ओढ़कर सो जायें। इस प्रकार दूध का काढ़ा बनाकर दिन में तीन बार पियें। जुकाम से उत्पन्न आधे सिर का दर्द ठीक हो जायेगा।
यक्ष्मा – सात कली लहसुन को पीसकर दो चम्मच शहद में मिलाकर चाटें। इसके एक घण्टे बाद एक गिलास दूध, एक गिलास पानी, चार चमच पिसी हुई मिश्री, आठ पीपल (पंसारी के मिलती है), सब मिलाकर उबालें। आधा भाग रहने पर उतारकर इसमें एक चम्मच घी और तीन चम्मच शहद मिलाकर पाँच मिनट तक उलट-पुलट कर फेंटते रहें। इसके बाद इस दूध को पियें। यक्ष्मा रोग में बहुत लाभ होगा।
पित्ती – कच्चे दूध की लस्सी पीने से रक्त की गर्मी निकल जाती है और पित्ती में आराम आ जाता है।
पेशाब रुकना – गाजर का रस और दूध समान मात्रा में मिलाकर पीने से पेशाब खुलकर आता है।
मलेरिया – एक गिलास दूध में आठ मुनक्का, आधा चम्मच सोंठ डालकर उबालकर नित्य सुबह-शाम पियें। मलेरिया ठीक हो जायेगा।
रक्तस्रावी बवासीर (Bleeding Piles) – रात को सोते समय गुदा में दूध की मलाई मलें, अच्छी तरह नित्य लगायें। बवासीर से रक्त गिरना बन्द हो जायेगा।
हड्डियों का भुरभुरापन (ऑस्टियोपोरोसिस) – आधुनिक जीवन शैली, विटामिन ‘डी’ की कमी तथा कसरत न करने से ऑस्टियोपोरोसिस रोग तेजी से फैल रहा है। धूम्रपान करने, शीतल पेय, जंक फूड आदि के सेवन करने तथा असंतुलित भोजन लेने से भी यह रोग हो जाता है। इस रोग में हड्डियाँ कमजोर हो जाती हैं और उनका पता भी नहीं चलता।
उपचार – आप नित्य बीस मिनट धूप सेंकें और प्रतिदिन एक गिलास दूध पियें तो अपनी हड्डियों को मजबूत बना सकते हैं। एक गिलास चिकनाई रहित दूध में 300 मिग्रा. कैल्शियम होता है। अॉस्टियोपोरोसिस से बचने के लिए नित्य एक हजार मिग्रा. कैल्शियम शरीर को मिलना चाहिए।