यह दवा ब्राजील देश के एक प्रकार के विषधर सर्प के विष से तैयार होती है।
शरीर के किसी भी भाग से काले रंग का रक्तस्राव हो, तो इस औषधि का प्रयोग करना चाहिए, इस औषधि में सब कुछ यहां तक कि कान का मैल भी काला होता है। रोगी ठण्ड सहन नहीं कर सकता।
पाकस्थली में अम्ल इकट्ठा होना, भूख लगने पर खुछ न खाने से सिर में दर्द होने लगना, यक्ष्मा-रोगी शरीर क्षयकारी अतिसार, वमन, मिचली, पाकस्थली में सहसा दर्द होना, अन्ननली का आक्षेप और कोई चीज खाने पीने पर अन्ननली में कुछ देर तक अड़ी रहने के बाद एकाएक उसका पाकस्थली में उतर आना, इस औषधि के प्रधान लक्षण हैं, ‘इलैप्स’, शरीर के दाहिनी तरफ ज्यादा असर करती है, रोगी ठण्डी चीज खाना, पीना, फल खाना बिल्कुल पसन्द नही करता, ठण्डी चीज खाते पीते ही ऐसा मालूम होना जैसे पेट में बरफ जम गयी हो। इन बीमारियों के अलावा, इस औषधि का प्रयोग और भी बीमारी में किया जाता है।
फेफड़े की बीमारी – यक्ष्मा, निमोनिया, तेज खांसी के बाद फेफड़े से उक्त प्रकार का काले रंग का खून निकलना आदि अन्य बीमारी में दाहिने फेफड़े के ऊपरी अंश पर बीमारी का हमला हो और प्रत्येक बार खांसी आने पर छाती फट जाने जैसा दर्द हो, तो यह औषधि लाभ करती है।
नाक – नाक के अन्दर हरे रंग का मैल जमना और नाक से खून गिरना, सूखे हुए मैल के कारण नाक की राह रुक जाना, नाक की जड़ में दर्द और चारों और उदभेद निकलना, बहुत दिनों का पुराना बदबूदार नाक का स्राव, स्राव का रंग हरा-पीला होना आदि सारे लक्षण इस औषधि के अन्तर्गत आते हैं।
कान – कान में सो-सो की आवाज होना, कान में कटकट होना, कान का पुराना स्राव, कुछ सुनाई न देना, बहरा हो जाना, कान से पीब निकलना, रात में कान का बन्द हो जाना, किन्तु उसमें दर्द या तकलीफ न रहना। बगल में बार-बार गाँठ निकल कर पक जाना तथा शरीर की दांहिनी ओर का लकवा आदि में भी इस औषधि से रोगी आरोग्य हो जाता है।
सम्बन्ध – आर्सेनिक, लैकेसिस, कार्बो, क्रेटेलस, ऐल्यूमिना।
मात्रा – 6 से 200 शक्ति तक ।