व्यापक-लक्षण तथा मुख्य रोग
(1) मस्तिष्क की उत्तेजना ( मस्तिष्क की उत्तेजना में बेलाडोना, हायोसाएमस तथा स्ट्रैमोनियम की तुलना ) – यह औषधि मस्तिष्क की उत्तेजना में काम आती है। इसका एक बहुत मजेदार अनुभव डॉ० डब्लू० एस० मिल्स को हुआ। वे अपने एक रोगी को कुछ बूंद हायोसाएमस डाल कर दे रहे थे। उसे इसका जायका बहुत बुरा लगा। उसका उत्साह बढ़ाने के लिये डाक्टर मिल्स ने इस औषधि के मूल-अर्क के कुछ चम्मच रोगी के सामने पी लिये। इसका उनके मन पर अजीब प्रभाव हुआ। उन्हें ऐसा अनुभव हुआ कि उनमें कुछ भार नहीं है, मानो वे हवा में चल रहे हैं। सिर में हल्कापन आ गया। इच्छा हुई कि खूब हसें, खूब चिल्लायें। बेहूदगी की बातें और काम करने की प्रबल भावना होने लगी, अपने को काबू रखना कठिन हो गया। यह सोच कर कि उन पर कितनी भारी जिम्मेवारी है, वे अपने पर नियन्त्रण रखने की कोशिश करते रहे, परन्तु ऐसा करना उनके लिए बहुत मुश्किल साबित हुआ। उनका जी किया-खूब हसें, चिल्लायें और आनन्द मनाएं। अपने अधीन काम करने वालों के सामने ऐसी बेहूदगी करने से बचने के लिये वे बाथरूम में जा घुसे, और शीशे के सामने खड़े होकर तरह-तरह के मुंह बनाते रहे। इससे स्पष्ट होता है कि इस औषधि का मस्तिष्क की उत्तेजना पर कितना भारी प्रभाव पड़ता है। क्योंकि स्वस्थ व्यक्ति पर इसका प्रभाव मस्तिष्क को उत्तेजित कर देना है, मनोविकारों को उभार देना है, इसलिये होम्योपैथिक-दृष्टि से जहां ऐसे मनोविकार हों, वहां यह उन्हें शान्त कर देता है। इस प्रकार की मानसिक उत्तेजना में मुख्य रूप से तीन औषधियां हैं जिनकी पारस्परिक-तुलना करना उचित है, जिन्हें डॉ० नैश ने मानसिक-उत्तेजना का ‘त्रिक’ कहा है। ये तीन हैं बेलाडोना, हायोसाएमस तथा स्ट्रैमोनियम।
(i) बेलाडोना, हायोसाएमस तथा स्ट्रैमोनियम की मस्तिष्क की उत्तेजना में तुलना – ये तीनों औषधियां मानसिक-उन्माद (Delirium) में काम आती है, इसलिये इन्हें ‘उन्माद का त्रिक’ कहा जाता है। इन तीनों के उन्माद का वर्णन नीचे दिया जा रहा है।
बेलाडोना का उन्माद – किसी औषधि का इतना तेज उन्माद नहीं होता जितना बेलाडोना का। इसका मुख्य रूप मस्तिष्क में रक्त का संचय हो जाना, दिमाग में खून चढ़ जाना है। गर्दन की धमनी फड़कती है, चेहरा गर्मी से – तमतमाता है, लाल हो जाता है, आंखें लाल हो जाती है। जैसे ही मस्तिष्क में खून कम हो जाता है, ये लक्षण भी कम हो जाते हैं। पीला चेहरा होने पर भी इसका उन्माद हो सकता है, परन्तु मुख्य तौर पर चेहरा लाल और तमतमाता ही रहता है, ऊपर के होंठ तक सूज जाते हैं।
हायोसाएमस का उन्माद – इस औषधि का उन्माद इतना तेज नहीं होता जितना बेलाडोना का। अगर तेज उन्माद होता भी है, तो कुछ देर बाद ढीला पड़ जाता है। बेलाडोना में उन्माद की तेजी प्रधान है, उन्माद की कमी गौण हैं; हायोसाएमस में उन्माद की कमी मुख्य है, तेजी गौण है। शुरू-शुरू में अगर रोगी में प्रचंडता पायी भी जाय, तो धीरे-धीरे वह प्रचंडता कम होती जाती है, कमजेारी बढ़ती जाती है, बढ़ते-बढ़ते बेहोशी की-सी हालत आ जाती है। रोगी ऐसी अवस्था में पहुंच जाता है कि ओपियम तथा हायोसाएमस में भेद करना कठिन हो जाता है। बेलाडोना का चेहरा लाल, हायोसाएमस का पीला, धंसा हुआ होता है; बेलाडोना का रोगी बलिष्ठ और हायोसाएमस का रोगी कमजोर होता है। हायोसाएमस में हल्का प्रलाप होता है, रोगी बुदबुदाता है, तंद्रा में रहता है।
स्ट्रैमोनियम का उन्माद – यह भी उत्कट उन्माद की दवा है। रोगी गाता है, हंसता है, मुंह बनाता है, सीटी बजाता है, चिल्लाता है, कभी दीन-भाव से प्रार्थना करता है, कभी गाली बकने लगता है। इसका प्रधान-लक्षण बकना है, बोलता ही जाता है, बोलता ही जाता है, कविता बनाता है, बिस्तर से उठ कर भागता है।
(ii) बेलाडोना, हायोसाएमस तथा स्ट्रैमोनियम की उन्माद के समय ज्वर में तुलना – बेलाडोना में बहुत बुखार होता है; हायोसाएमस में या तो बुखार होता ही नहीं, या बहुत कम होता है; स्ट्रैमोनियम इन दोनों के बीच में है, न बहुत ज्यादा न बहुत कम।
(iii) बेलाडोना, हायोसाएमस तथा स्ट्रैमोनियम की उन्माद के समय हिंसात्मकता में तुलना – सब से ज्यादा हिसात्मकता स्ट्रैमोनियम में पायी जाती है, उसके बाद बेलाडोना में, और तीनों में सबसे कम हायोसाएमस में है। इन तीनों औषधियों की पागलपन में एक-दूसरे के सम्बन्ध में यह स्थिति है। ‘हिंसात्मकता’ (Violence) की दृष्टि से हायोसाएमस का स्थान तीनों में नीचे है। हायोसाएमस के पागलपन में हिंसात्मकता नहीं है। कभी-कभी रोगी हिंसात्मक-प्रवृत्ति का हो जाता है, परन्तु यह प्रवृत्ति दूसरे पर हमला करने के स्थान में आत्मघात करने का रूप धारण करती है। रोगी कभी-कभी अकेला बैठा अंट-संट बकता रहता है, और कभी-कभी बैठा रहता है, कुछ बोलता नहीं है।
(2) ऐंठन होना और हट जाना – डॉ० एच० एन० गुएरेन्सी का कथन है कि इस औषधि में शरीर की हर मांसपेशी में ऐंठन होती है, आंख से लेकर अंगूठे तक में फड़कन होती है। चाहे मिर्गी की ऐंठन हो, चाहे किसी अंग में बिना मिर्गी के फड़कन हो, सब प्रकार की ऐंठन में इस औषधि से लाभ होता है। इसकी ऐंठन इतनी प्रबल नहीं होती जैसी सिक्यूटा की होती है। बच्चों को डर से, प्रसूता को बच्चा जनने के समय ऐंठन पड़ने लगती है। क्योंकि इस औषधि से मस्तिष्क की उत्तेजना होती है इसीलिये मस्तिष्क की उत्तेजना से ऐंठन भी पड़ जाती है परन्तु वह ऐंठन स्थायी नहीं रहती, हल्के ढंग की ऐंठन-धकड़न होती है जिसमें इससे लाभ होता है।
(3) काल्पनिक वस्तुओं को देखना – रोगी अकेला बैठा-बैठा कुछ बुद-बुदाया करता है। कल्पना करता है कि कोई व्यक्ति उसके पास बैठा है, उससे वह बातें करता है। कभी-कभी जो लोग मर गये हैं उनसे बतियाता है। अपनी मृत बहन को, मृत पत्नी को पास बैठा कर उससे बात करने लगता है, ऐसे बात करता है जैसे वे जीवित हों। कल्पना में उन वस्तुओं और व्यक्तियों को देखता है जिनकी कोई सत्ता नहीं होती। अपने सम्बन्ध में भी आधारहीन बातों की कल्पना किया करता है।
(4) रोगी में ईर्ष्या होती है – रोगी ईष्यालु होता है। डॉ० टायलर ने एक बच्चे का उल्लेख किया है जो अत्यन्त ईष्यालु था। जिस व्यक्ति से उसकी बहन की सगाई हुई थी उसे देख कर वह जलता था। जब भी वह व्यक्ति घर आता था, तो वह शरारतों पर आमादा हो जाता था, यहां तक कि पैंट में पाखाना कर देता था। हायोसाएमस में यह लक्षण मौजूद है – मानसिक-उत्तेजना से अपने-आप पाखाना हो जाना। उसे हायोसाएमस C.M. की एक मात्रा दी गई, उसके बाद न उसमें ईर्ष्या रही, इस प्रकार पाखाना करना भी उसने छोड़ दिया।
(5) रोगी शंकाशील होता है (He is suspicious) – रोगी किसी पर विश्वास नहीं करता, हर-एक को सन्देह की दृष्टि से देखता है। दवा पीने से भी इन्कार कर देता है, कहता है, उसे मारने के लिये जहर दिया जा रहा है। बेटा, बेटी, स्त्री-सब को शंका की दृष्टि से देखता है। इस औषधि के पागलपन में यह इसका चरित्रगत-लक्षण है। कल्पना करता है कि लोग उसके पीछे पड़े हुए हैं, उसके विरुद्ध षड्यन्त्र रच रहे हैं, सब उसके विरुद्ध हो गये हैं, उसके मित्र-मित्र नहीं रहे।
(6) रोगी निर्लज्ज हो जाता है – रोगी नंगा हो जाता है, कपड़े उतार फेंकता है। डॉ० कैन्ट कहते हैं कि इस निर्लज्जता का कारण यह है कि उसकी त्वचा के ज्ञान-तंतु (Nerves) इतने संवेदनशील (Sensitive) हो जाते हैं कि शरीर कपड़े का स्पर्श सहन नहीं कर सकता, इसलिये वह कपड़ा उतार फेंकता है, नंगा हो जाता है। उन्माद तथा बेहोशी में वह ऐसा किया करता है, उसे इस बात का ज्ञान नहीं होता कि वह कपड़ा उतार कर नंगा हो गया है। ऐसा लगता है कि उसे किसी से शर्म नहीं, परन्तु उसे स्वयं इस बात का ज्ञान नहीं होता कि वह निर्लज्जता कर रहा है, न उसे इस बात का ज्ञान होता है कि वह कुछ आसाधारण काम कर रहा है, वह कपड़ा तो शरीर के ज्ञान-तंतुओं की संवेदन-शीलता के बढ़ जाने के कारण उतार कर फेंक रहा होता है। ज्वर में कपड़े को न सह सकना इसका विशेष-लक्षण है।
(7) रोगी को कामोन्माद होता है – रोगी के नंगा होने का एक कारण का तो हमने अभी उल्लेख किया, परन्तु यह नंगापन कामोन्माद के कारण भी हो सकता है। जो भी कोई उसके कमरे में आता है उसी को अपने गोपनीय अंग खोल कर दिखलता है। स्त्री हो, पुरुष हो-दोनों में यह कामोन्माद हो सकता है। यह बात उन्हीं लोगों के लिये कही जा रही है जो स्वस्थ अवस्था में निर्लज्ज न हों, रोगी की अवस्था में ऐसे लक्षण प्रकट होने लगें।
(8) टाइफॉयड में हायोसाएमस के लक्षण – अचेत परन्तु आंखें खोले रखता है, बिस्तर को अंगुलियों से कुरेदता है, बड़बड़ाता है – टाइफॉयड में हायोसाएमस के लक्षण प्रकट हुआ करते हैं। रोगी अचेत पड़ा रहता है, आंखें खोले रखता है, चारों तरफ ताकता है, परन्तु कुछ ज्ञान नहीं होता। हाथ उठा कर ऐसी हरकत करता है मानो कुछ पकड़ रहा है। बिस्तर को अंगुलियों से कुरेदता है, मुंह से कुछ बुदबुदता है, कभी-कभी चुप भी पड़ा रहता है। प्रश्न किये जाने पर उत्तर देता-देता सो जाता है या अचेत हो जाता है। दांतों पर मैल जमा हो जाती है, जैसा टाइफॉयड में हुआ करता है। खसरा या चेचक में इस प्रकार के टाइफॉयड के लक्षण मिलने पर इससे असीम लाभ होता है।
(9) लेटने से खांसी बढ़ना – रोगी के तालु की जिह्वा – (Uvula) सूज जाती है, इसलिये जब वह लेटता है तब इसे टेटवे के तालु में लगने से खुश्क खांसी उठने लगती है। लेटने से खांसी का बढ़ना इसका विशेष-लक्षण है। ड्रॉसरा में भी यह लक्षण है। उसमें ज्यों ही रोगी का सिर तकिये से लगता है, वह खांसना शुरू कर देता है। रोगी का गला देख लेना चाहिये, अगर तालु की जिह्वा (टेटवे) के सूजन के कारण उसके तालु को स्पर्श से खांसी उठती हो, तो हायोसाएमस लाभ देगा। फेरम मेट और मैगनम में लेटने से खांसी अच्छी होती है, बैठने से बढ़ जाती है।
(10) अनिद्रा – व्यापारी लोगों को व्यवसाय की परेशानियों से जब नींद नहीं आती तब इससे लाभ होता है। प्राय: ये परेशानियां कल्पित होती हैं। इस औषधि में काल्पनिक बातों के कारण रोग हो जाने के लक्षण पर हम पहले लिख आये हैं।
(11) शक्ति – 30, 200