लक्षण तथा मुख्य-रोग | लक्षणों में कमी |
रोगी हर समय खाता रहता है परन्तु दुबला होता जाता है (सूखा रोग) | ठंड या ठंडी हवा से रोग घटना |
भूख से तकलीफें बढ़ती और खाने से घटती हैं | हरकत से रोग घटना |
विश्राम से तकलीफे बढ़ती और हरकत या काम में लगे रहने से घटती हैं | खाना खाने से रोग में कमी |
शरीर सूखता जाता है, परन्तु गिल्टियां बढ़ती जाती हैं, और गिल्टियों में भी स्तन सूखते जाते हैं | |
त्वचा छील देने वाला स्राव; नाक से, आंख से तथा पुराने प्रदर का छील देने वाला स्राव | लक्षणों में वृद्धि |
भूख न लगना (Anorexia) | गर्मी से परेशान होना |
आत्म-हत्या या किसी को मार डालने का विचार | भूखा रहने से परेशान होना |
भोजन का गैस बन कर दिन-रात डकार आना | आराम से परेशान रहना |
(1) रोगी हर समय खाता रहता है परन्तु दुबला होता जाता है (सूखा रोग) – इस औषधि का मुख्य-लक्षण राक्षसी-भूख है। रोगी हर समय भूख महसूस करता है। साधारण तौर पर जितना और जितने समय हम लोग खाते हैं, उससे उसकी सन्तुष्टि नहीं होती। बीच-बीच में भी वह खाता रहता है, परन्तु विचित्र बात यह है कि इतना और इतनी बार खाने पर भी वह दुबला हो जाता है। मुँह पर झुर्रियां पड़ जाती हैं। पुष्टिकारक भोजन खाने पर भी बच्चा सूखता जाता है। दिन भर खाने के लिये मांगता है। पेट भर खाने के बाद नैट्रम म्यूर की तरह उसे थकावट नहीं, आराम अनुभव होता है। इसीलिये विशेष रूप से यह सूखे रोग की दवा है। आयोडियम, नैट्रम म्यूर और ऐब्रोटेनम – इन तीनों में शरीर की पोषण-क्रिया इतनी बिगड़ जाती है कि भोजन मिलने पर भी शरीर पर मांस नहीं चढ़ता, और रोगी दुर्बल होता जाता है।
(2) भूख से तकलीफें बढ़ती और खाने से घटती हैं – रोगी की चिंता, परेशानी, भय, या जो कोई भी तकलीफ हो, भूख के समय बढ़ जाती है। जब पेट खाली हो तब दर्द होने लगता है, उस दर्द को मिटाने के लिये वह खाने को विवश हो जाता है। खाते समय वह अपनी सब तकलीफों को भूल जाता है। तकलीफों को इस प्रकार भूल जाने का मुख्य कारण यह है कि उस समय वह किसी काम में लगा होता है। जब उसका मन किसी तरफ लग जाय या लगा दिया जाय, तब वह अपने कष्ट को भूल जाता है।
(3) विश्राम से तकलीफे बढ़ती और हरकत या काम में लगे रहने से घटती हैं – रोगी को नयी या पुरानी जो भी कोई शिकायत हो, उसमें उसे शरीर तथा मन में एक खास तरह की घबराहट, परेशानी बनी रहती है। छोटी-सी भी घबराहट में एक खास तरह की लहर-सी शरीर में दौड़ जाती है, जो बड़ी तकलीफदेह होती है: यह तभी होती है जब वह किसी काम में लगा नहीं होता, जब काम कर रहा होता है, हरकत कर रहा होता है, तब यह तकलीफ नहीं महसूस होती, शायद भूला रहता है, जहां उसने आराम से बैठने की कोशिश की, उसी समय यह परेशानी आ सवार होती है, जितना ही वह आराम से, बिना कुछ किये बैठने की कोशिश करता है उतनी ही परेशानी, घबराहट बढ़ती है।
आयोडियम तथा कैलि आयोडाइड दोनों आराम से नहीं बैठ सकते, दोनों को हरकत करनी पड़ती है, परन्तु इनमें भेद यह है कि कैलि आयोडाइड का रोगी पैदल दूर-दूर तक लम्बा सफर करता है और थकता नहीं, चलने से उसकी घबराहट ही दूर होती है, थकावट नहीं आती; आयोडियम में रोगी चलता तो है क्योंकि हरकत किये बगैर उसकी घबराहट दूर नहीं होती, परन्तु चलने-चलते वह थक जाता है और जरा से परिश्रम से पसीना-पसीना हो जाता है।
यह ऊष्णता-प्रधान है, ठंड चाहता है – इस औषधि का रोगी तथा आर्सेनिक का रोगी ये दोनों भी आराम से नहीं बैठ सकते, दोनों शारीरिक तथा मानसिक परिश्रम किये बगैर नहीं रह सकते, यहां तक कि मस्तिष्क के फेल होने की नौबत आ जाती है। अगर इन लोगों को कहा जाय कि अत्यधिक चिंता, अत्यधिक मानसिक-कार्य, अत्यधिक साहित्यिक-कार्य से दिमाग के फेल हो जाने का डर है, तो कहते हैं: डाक्टर, हम अगर काम न करें तो मर जायेंगे या पागल हो जायेंगे। काम करने से ही उन्हें राहत मिलती है। परन्तु इन दोनों औषधियों में भेद है। आयोडियम ‘ऊष्णता-प्रधान’ (Warm blooded) है, आर्सेनिक ‘शीत-प्रधान’ है, पहले को ठंड चाहिये, दूसरे को गर्मी चाहिये। अगर रोगी ‘ऊष्णता-प्रधान’ है तो हम कभी आर्सेनिक की तरफ ध्यान नहीं देंगे, अगर वह शीत-प्रधान है तो कभी आयोडियम को विचार में नहीं लायेंगे क्योंकि औषधि का निर्वाचन करते हुए ‘व्यापक-लक्षण’ तथा ‘प्रकृति’ (Generals and Modalities) को ध्यान में रखना आवश्यक है।
हरकत से आराम इसका व्यापक-लक्षण है, परन्तु सिर को विश्राम आराम इसका एकांगी लक्षण है – अभी हमने कहा कि आयोडियम के रोगी की तकलीफ हरकत से कम हो जाती हैं, परन्तु सिर-दर्द उसका हरकत से बढ़ जाता है। रोगी चलता-फिरता है, हरकत करता है क्योंकि इससे उसकी घबराहट दूर होती है, परन्तु हरकत से उसका सिर-दर्द बढ़ जाता है, सिर की तपकन बढ़ जाती है।
(4) शरीर सूखता जाता है, परन्तु गिल्टियां बढ़ती जाती हैं, और गिल्टियों में भी स्तन सूखते जाते हैं – शरीर की ग्रंथियों का बढ़ जाना इस औषधि का चरित्रगत-लक्षण है। जिगर, तिल्ली, डिम्ब-ग्रंथियां, अंडकोष, गले की ग्रंथियां, सब जगह की ग्रंथियां बढ़ती जाती हैं। पेट की मेसेन्ट्रिक-गिल्टियां भी बढ़ जाती है। ये सब गिल्टियां गठीली और सख्त हो जाती हैं। प्राय: देखा जाता है कि मलेरिया के रोगी कुनीन खाकर सूख जाते हैं, चेहरे पर झुर्रियां पड़ जाती हैं, परन्तु उनकी तिल्ली या जिगर बढ़ जाते हैं। इस अवस्था में यह औषधि लाभप्रद है।
बढ़े हुए टांसिल – गिल्टियों के गठीली और सख्त होने के प्रकरण में इस औषधि के टांसिलों के प्रभाव पर भी विचार कर लेना आवश्यक है क्योंकि यह मुख्य तौर पर ग्रंथियों की दवा है, इसलिए इसका टांसिलों पर भी प्रभाव है। रोगी भूख-भूख चिल्लाता है, भूख से परेशान रहता है, दुर्बल होता है, मुख पर झुर्रियां पड़ी होती हैं – ऐसे रोगी के टांसिल इससे ठीक हो जाते हैं। इस रोगी को पल्सेटिला की तरह गर्मी बहुत सताती है।
बढ़े हुए गिल्लड़ (Goitre) – यह भी गले की गिल्टी का बढ़ जाना ही है। इसके साथ ही यदि रोगी को भूख ज्यादा लगती हो, खाने से जी ठिकाने रहता हो, तो इससे लाभ होता है। काली आखों, काले बालों वाले के लिये आयोडियम, और नीली आंखों, भूरे बाल वालों के लिये ब्रोमियम उपयुक्त हैं। डॉ० नैश लिखते हैं कि उन्होंने लक्षण मिलने पर गिल्लड़ के कई रोगी आयोडियम C.M. प्रति चार रात एक मात्रा देकर ठीक किये हैं। उन्होंने यह औषधि पूर्णिमा के बाद अमावस्या शुरू होने पर दी। कहते हैं अमावस्या में यह औषधि अच्छा काम करती है।
(5) त्वचा छील देने वाला स्राव; नाक से, आंख से तथा पुराने प्रदर का छील देने वाला स्राव – इस रोगी का स्राव बहुत तेज होता है, जहां लगता है वहीं त्वचा को छील देता है। नाक का स्राव नाक तथा होठों को जहाँ वह लगता है छील देता है, आंख का स्राव आंख के कोरों को छील देता है, प्रदर का स्राव इतना लगता है कि जांघों पर जहां-जहां लगता है उसे छील देता है, यहां तक कि नैपकिन में भी छेद कर देता है। इसके साथ अन्य लक्षणों का भी मिलान कर लेना चाहिये-रोगी ऊष्णता-प्रधान हो, खाने से आराम मानता हो, हरकत से लक्षणों में कमी हो।
जुकाम में आयोडियम ‘प्रतिरोधक’ है – प्रो० डॉ० ऑगस्ट बीयर लिखते हैं कि उन्हें कई सालों से खांसी सताया करती थी, गर्म कमरे में सर्जरी काम करके जब वे बाहर आते थे, तब उन्हें जुकाम का आक्रमण हो जाता था – गर्म-सर्द हो जाने के कारण। जब किसी उपाय से उन्हें लाभ न हुआ, तो उन्होंने अपने-आप होम्योपैथी का प्रयोग करके देखना चाहा। उनका ऐलोपैथी का अनुभव था कि जब आयोडाइन की अधिक मात्रा रोगी को दी जाती थी, तो उसे श्लैष्मिक-झिल्ली का शोथ, प्रदाह, और जुकाम हो जाया करता था। इस आधार पर उन्होंने आयोडियम मूल-अर्क का एक बूंदे लेकर देखा। एक बूंद लेने से या तो जुकाम होता नहीं था, या होता-होता रुक जाता था। अपने ऊपर इस अनुभव से उन्हें होम्योपैथी में विश्वास हो गया और वे जुकाम की मौसम में प्रतिरोधक के तौर पर आयोडियम लेने लगे जिस से उन्हें सफलता मिली।
(6) भूख न लगना (Anorexia) – इस औषधि का लक्षण है राक्षसी भूख लगना और शरीर का क्षीण होते जाना, परन्तु डॉ० क्लार्क ने भूख न लगने पर भी इसका सफल प्रयोग किया। एक युवती को जिसे मानसिक-आघात पहुंचा था, भूख लगनी बन्द हो गई। वह उपवास द्वारा आत्मघात करने की सोचा करती थी। डॉ० क्लार्क ने उसे आयोडियम 3x के 5 बूंद खाने से आधा घंटा पहले देने शुरू किये। इससे उसकी भूख इतनी खुल गई कि उसका आत्मघात का विचार जाता रहा।
(7) आत्म-हत्या या किसी को मार डालने का विचार – हम पहले ही कह आये हैं कि रोगी निश्चल नहीं बैठ सकता, हर समय हरकत किया करता है, चलता-फिरता रहता है, इसी से उसे शान्ति मिलती है। अगर वह इस प्रकार चलता-फिरता न रहे, तो शरीर में उद्विग्नता, घबराहट पैदा हो जाती है, लहर का-सा कंपन उठता है। जितना अधिक स्थिर रहने की कोशिश करता है उतनी ही घबराहट बढ़ जाती है। कभी-कभी जब वह स्थिर रहने का प्रयत्न करता है, तब इतना उद्विग्न हो उठता है कि वस्तुएं फाड़ने लगता है, आत्मघात करना चाहता है, या किसी दूसरे को मार डालने की सोचता है। स्थिर नहीं बैठ सकता, इसलिये लगातार चलता-फिरता है, और स्थिर रहने पर इस प्रकार के हिंसात्मक-उद्वेगों का आक्रमण होता है। वह कुछ-न-कुछ करना चाहता है, जल्दी में कुछ-न-कुछ कर डालने की भावना उस पर हावी हो जाती है। हिपर में नाई ग्राहक की हजामत करता हुआ उस्तरे से उसका गला काट डालना चाहता है; नक्स में माँ अपने बच्चे को आग में फेंक देना चाहती है, जिस पति से प्रेम करती है उसी को मार डालना चाहती है; नैट्रम सल्फ़ में रोगी कहता है डाक्टर, तुम नहीं जानते कि मुझे अपने को खत्म न कर देने के लिये अपने पर कितना नियंत्रण करना पड़ता है। आयोडियम में मरने-मारने की इच्छा किसी कारण-विशेष से नहीं होती, क्रोध से या बदला लेने के विचार से इस भावना का उदय नहीं होता, इस प्रकार का आवेग बिना कारण मन में आ जाता है।
(8) भोजन का गैस बन कर दिन-रात डकार आना – रोगी जो कुछ खाता है उसकी गैस बन जाती है, पेट में वायु इकट्ठी हो जाती है, और रोगी सुबह से शाम तक ऊंचे-ऊंचे डकार मारा करता है। इसमें आयोडियम लाभ करता है।
(9) आयोडियम का सजीव तथा मूर्त-चित्रण – दुर्बल, पीला, झुर्रियों वाला चेहरा, गिल्टियां फूली हुई जो सख्त और कठोर होती हैं, भूख-भूख चिल्लाता है, हर समय खाता रहता है, राक्षसी-भूख में खाने के बावजूद कमजोर होता जाता है, खाने के बाद उसे आराम मालूम होता है, चैन से नहीं बैठ सकता, हर समय चलता-फिरता है, गर्मी से परेशान और ठंड से आराम – यह है सजीव मूर्त रूप आयोडियम का।
(10) शक्ति तथा प्रकृति – 3, 6, 30, 200 .( जुकाम में प्रतिरोधक के तौर पर इसके टिंचर की एक बूंद लेने से जुकाम नहीं होता। सर्दी से बार-बार जुकाम होने को भी यह दवा मूल-अर्क की एक बूंद लेने से उसे रोकती है। )