यह sycotic miasm के अंतर्गत आता है। Coffea Cruda के व्यक्ति मेहनती, उत्पादक और रचनात्मक होते हैं और दूसरों के लाभ के लिए काम करने वाले होते हैं, ताकि उनको समाज में इज्जत मिले और वे खुद को उनसे अलग-थलग महसूस न होने दें।
कॉफ़िया व्यक्ति को लगता है कि वह दूसरों द्वारा स्वीकार किया जाएगा यदि वह परोपकारी है, इसलिए वह अन्य लोगों के लिए अच्छा काम करता है। वह रात में जागकर बैठेगा, काम करेगा और सोचा करेगा। वह ऐसा सोचता है जैसे वह खुद को अकेला और पूरी तरह से अलग-थलग महसूस कर रहा हो। उसे अपना भविष्य अनिश्चित दीखता है, ऐसे में वह मेहनती, रचनात्मक, योजनाएँ बनाने वाला बन जाता है।
यह सभी मानसिक और शारीरिक गतिविधि, कॉफ़िया की विशेषता, उसकी सफलता या विफलता के लिए नहीं है, बल्कि इसमें से दूसरों के लिए कुछ अच्छा करने की इच्छा है, ताकि उसे समूह, समाज, परिवार द्वारा स्वीकार किया जाए। वह बहुत कर्तव्यनिष्ठ होता है और अगर कुछ भी गलत हो जाता है, तो वह बहुत पछताता है।
विमान चालक दल और सर्जन डॉक्टर बहुत अधिक कॉफी पीते हैं क्योंकि उन्हें किसी भी गलती और परिणामी पछतावे से बचने के लिए सतर्क रहने की आवश्यकता होती है। साथ ही, ऐसे व्यक्ति जिन्हें रचनात्मक होने की आवश्यकता है वे भी कॉफी का अधिक सेवन करते हैं जैसे – कलाकार, लेखक, फिल्म निर्माता आदि। यहाँ मैं समझा दूँ कि अधिक कॉफी पीने वाले कॉफ़िया के रोगी नहीं होते, कॉफी अधिक पीने से कॉफ़िया के रोगी गुण कुछ हद तक आ जाते हैं।
कॉफ़िया व्यक्ति दूसरों के लाभ के लिए काम करता है और शायद ही उस पर किसी तरह की दया की उम्मीद करता है, वह शायद ही किसी आनंद का अनुभव करता है, वह बस चाहता है समाज उसे अलग-थलग न करे, वह डरता है और फिर अगर कोई अचानक खुशी मिलती है जैसे कि उसके काम के लिए अगर किसी ने उसे सराहा, या उसपर कुछ क्रिया की, दयालुता दिखाया – तो वह इसे नहीं ले सकता – वह खुशी से रोने लगता है, खुशी से रात में नींद नहीं आती।
कॉफ़िया रोगी की विचार-शक्ति बड़ी तीव्र हो जाती है। अगर मन में कोई विचार आया या कोई काम करना हो तो झट करने को दौड़ता है, वह उसपर इतना विचार करने लगता है कि उसमें खो जाता है और सोचता ही रहता है। वह विचारों के चारों ओर घिर जाता है। अगर कॉफ़िया का रोगी बिजनेसमैन है तो वह बिजनेस की योजनाएं बनाता चला जाता है, यहाँ तक कि इन विचारों के कारण रात में नींद नहीं आती। उसका मानसिक चेतना उत्तेजित रहता है। उसके शरीर की हर इन्द्रिय उत्तेजित हो उठती है। दूर-दूर की आवाजें उसे सुनाई देने लगती है। रात को कहीं दूर घंटा बज रहा हो, कुत्ते भूँक रहे हों, सब उसे सुनाई पड़ता है। थोड़ा भी दरवाजे खुलने की आवाज उसे नींद से उठा देती है। एक तो नींद की समस्या रहती ही है, अगर थोड़ा नींद आ भी जाये तो हल्की आवाज से भी वह उठ जाता है।
मानसिक-उत्तेजना के सब के सब विकार कॉफ़िया में पाये जाते हैं। जरा से शोर-गुल से उसकी तकलीफें बढ़ जाती हैं। दरवाजे का खुलना, घंटी का बजना, बच्चों का दौड़ना, किसी के पैरों की आहट – जिन आवाजों की तरफ एक स्वस्थ-व्यक्ति का ध्यान तक नहीं जाता है, उन आवाजों से कॉफ़िया का रोगी परेशान हो जाता है । मैटीरिया मैडिका में दूसरी कोई दवा ऐसी नहीं है जिसमें आवाज को सुनने से तकलीफ इतनी बढ़ जाती हो। इस रोगी का शरीर का कोई भी दर्द आवाज से बढ़ जाता है। नक्स वोमिका में यह लक्षण है, परन्तु आवाज से हाथ-पैर में भी दर्द का बढ़ जाना यह लक्षण कॉफ़िया में है। ध्यान रखें – कान की इन्द्रिय का इतना उत्तेजित होना कि किसी प्रकार के शब्द या शोर को बर्दाश्त न कर सके तो समझ लें कि रोगी को कॉफ़िया देने की आवश्यकता है।