नेट्रम सल्फ का होम्योपैथिक उपयोग
( Natrum Sulph Uses In Hindi )
(1) रोगी तर हवा सहन नहीं कर सकता, परन्तु सूखी हवा में अच्छा रहता है – नेट्रम सल्फ औषधि का सर्व-प्रधान लक्षण इसकी ‘प्रकृति’ (Modality) है। रोगी तर हवा, समुद्री हवा, नम मौसम, आसमान में बादल, बरसात आदि को सहन नहीं कर सकता। थोड़ी-सी भी तर हवा लगने से वह बीमार हो जाता है। पानी से पैदा होने वाले खरबूजे, तरबूज, ककड़ी आदि फल भी नहीं खा सकता। इनके खाने से उसका पेट बिगड़ जाता है, दस्त आने लगते हैं। सूखी हवा में वह ठीक रहता है। कोई भी रोग क्यों न हो, अगर रोगी की ऐसी प्रकृति है कि वह तर हवा को सहन नहीं कर सकता तो इसकी तरफ ध्यान जाना चाहिये। सीलन वाले घरों में रहने से होने वाले रोगों के लिये इस औषधि से लाभ होता है।
(2) प्रात: 2 से 3 या 4 से 5 दमे या किसी अन्य रोग का बढ़ना – इसके रोगों में समय का भी प्रभाव है। प्रात: काल 2 से 3 या 4 से 5 के समय रोग बढ़ जाता है। उदाहरणार्थ, अगर दमे का रोगी तर हवा को न सह सकता हो, खुश्क हवा में आराम अनुभव करता हो, और उसका रोग सवेरे 2 से 3 या 4 से 5 के समय बढ़ जाता हो, तो यह दवा लाभ करेगी। दस्तों में भी यह लक्षण होने पर लाभ होता है।
(3) दमा शुरू होने के साथ दस्त आने लगना – डॉ० गुएरेन्सी लिखते हैं कि उन्होंने एक स्त्री का दमा नेट्रम सल्फ से इस लक्षण पर ठीक कर दिया कि रोगिणी को दमे के आक्रमण होने के साथ ही दस्त भी आने लगते थे। दमे के रोगी के संबंध में यह जान लेना आवश्यक है कि क्या रोगी का दमा नम मौसम में बढ़ जाता है, क्या 2 से 3 या 4 से 5 बजे प्रात: काल बढ़ जाता है, क्या दमा शुरू होने के साथ ही दस्त भी आने लगते हैं। इन लक्षणों में से किसी के या सबके एक-साथ होने पर इस औषधि की तरफ ध्यान देना होगा।
(4) नया या पुराना डायरिया – डायरिया की भी यह उत्तम औषधि है। सल्फर का रोगी उठने से पहले ही टट्टी के लिये भाग पड़ता है; यूजा का रोगी एक कप चाय पीते ही रुक नहीं सकता; नेट्रम सल्फ और ब्रायोनिया का रोगी उठ कर जब कुछ चल फिर लेता है तब उसे टट्टी जाने की हाजत होती है, यह हाजत एकदम आती है और पेट में गड़गड़ शब्द होता है।
(5) सिर-दर्द के समय मुँह में लार आना – डॉ० बलजार लिखते हैं कि एक लड़की को जिसे सिर-दर्द के साथ मुँह में लार भर जाती थी सिर्फ़ इस लक्षण पर उन्होंने नेट्रम सल्फ से ठीक कर दिया। वह सिर-दर्द में लार को बराबर थूकती रहती थी।
(6) स्राव गाढ़ा, पीला या पीला-नीला होता है – आँख, कान, पेट, फोड़ा, डिसेन्ट्री, गोनोरिया, प्रदर, दमा आदि सब रोगों में स्राव गाढ़ा होता है, पीला या पीला-नीला होता है। यह लक्षण पल्स जैसा है, परन्तु औषधि का निर्वाचन करते हुए नम मौसम तथा 2-3 या 4-5 बजे लक्षणों के बढ़ जाने को ध्यान में रखकर निश्चय करना होगा।
(7) खांसी में ब्रायोनिया और नेट्रम सल्फ की तुलना – दोनों में खांसी से छाती दुखने लगती है परन्तु ब्रायोनिया में खांसी सूखी होती है, नेट्रम सल्फ में तर होती है।
(8) खांसी, दमा, निमोनिया तथा तपेदिक में कैलि कार्ब और नेट्रम सल्फ की तुलना – खांसी, दमा, निमोनिया, तपेदिक में जो दर्द होता है वह कैलि कार्ब में दाहिनी तरफ के फेफड़े के नीचे के हिस्से में होता है, नेट्रम सल्फ में बायीं तरफ के फफड़े के नीचे के हिस्से में होता है।
(9) सिर पर चोट के दुष्परिणाम – डॉ० कैन्ट लिखते हैं कि सिर पर की चोट पर जब दर्द होने लगे, तब आर्निका से लाभ होता है, परन्तु अगर सिर पर की चोट के बाद मानसिक-लक्षण उत्पन्न हो जायें – स्मृति-नाश, अंगों का फड़कना, मिर्गी आदि तब नेट्रम सल्फ से लाभ होता है। अगर कोई रोगी चिकित्सक के ऑफिस में आये, एकदम खड़ा हो जाये, कुछ देर तक खड़ा-खड़ा भ्रान्त-सा होने लगे, पसीना आ जाये, और ठीक होने पर कहे कि डाक्टर जब से मुझे सिर पर चोट लगी है तब से ऐसा होने लगा है, तो नेट्रम सल्फ से लाभ होगा।
(10) खुश्क से तर हवा होने पर या बसन्त-ऋतु में होने वाले रोग – खुश्क ऋतु से तर हवा की मौसम आ जाने पर अनेक रोग हो जाते हैं। वसन्त में त्वचा के रोग-प्रकट हो जाते हैं। हाथ-पैर की अंगुलियों में जलन दीखती है। गठिया सताने लगता है। इन सब अवस्थाओं में इससे लाभ होता है।
(11) पित्त-पथरी का दर्द – इस औषधि का जिगर पर विशेष प्रभाव है। जिगर के दर्द में रोगी दाहिनीं तरफ नहीं लेट सकता। इस के द्वारा जिगर स्वस्थ-पित्त का निर्माण करने लगता है और अगर पित्त की पथरी बन भी गई होती है, तो उसे घोल देता है। इसे जिगर के रोगों की दवा (Liver remedy) कहा जाता है।
(12) शक्ति तथा प्रकृति – 6, 30, 200 (रोगी के लक्षण रस टॉक्स तथा डलकेमारा की तरह तर हवा में बढ़ जाते हैं, यह उसकी प्रकृति है)