नक्स वोमिका का होम्योपैथिक उपयोग
( Nux Vomica Benefits In Hindi )
एक मिथक है कि Nux Vomica सिर्फ पुरुष की औषधि है, उसी तरह जैसे कि पल्सेटिला और सेपिया स्त्री की औषधि हैं। हमें अब लीक से हटकर सोचना चाहिए।
होम्योपैथी में प्रत्येक दवा और विशेष रूप से पॉलीक्रिस्ट दवा स्त्री और पुरुष दोनों के बिमारियों को कवर करते हैं क्योंकि दवा का मन सहित शरीर के सभी अंगों पर प्रभाव पड़ता है।
Nux Vomica प्रकृति की महिला कम देखने को मिलती हैं । अधिकांश Nux Vomica महिलाएँ अपने कैरियर की तरफ ध्यान देती हैं, और अपने चुने हुए क्षेत्रों में उत्कृष्टता प्राप्त करती हैं।
Nux Vomica प्रकृति की महिला कम देखने को मिलती हैं । अधिकांश Nux Vomica महिलाएँ अपने कैरियर की तरफ ध्यान देती हैं, और अपने चुने हुए क्षेत्रों में उत्कृष्टता प्राप्त करती हैं।
ऐसी Nux Vomica महिलाएं जिनके पास कोई करियर नहीं है, वे अक्सर चिड़चिड़ी और निराश हो जाती हैं, ऐसे में वह अपनी शक्ति प्रदर्शन परिवार के सदस्यों पर करती है, dominating behaviour, रॉब जमाती है।
Nux Vomica के लोग नेतृत्व करने के लिए पैदा होते हैं, आलोचना या उनके खिलाफ बोलने पर Nux Vomica महिला क्रोधित हो सकती है, लेकिन उसका क्रोध भय के साथ मिश्रित नहीं होता है
वह या तो आलोचना करने वालों को अनदेखा कर देगी, या उसे कुचल देगी। Nux Vomica महिलाओं में अत्यधिक दृढ़ निश्चय होता है!
हमेशा होम्योपैथ को अपने मरीज को शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, कार्यात्मक, आध्यात्मिक और साथ ही सामाजिक रूप से जानना चाहिए। जब रोगी के सभी आयामों को कवर किया जाता है तो उचित दवा ढूंढने में मदद मिलती है।
Video On Nux Vomica
मानसिक कार्य अधिक करने, शारीरिक परिश्रम न करने, पूरे समय बैठे रहने, मांस-मदिरा का सेवन करने, अनियमित जीवन बिताने, आदि कारणों से पेट खराब हो जाए, तो यह उत्तम औषधि है।
रोगी स्वभाव से चिड़चिड़ा, तेज, गर्म मिजाज का होता है, शाम के समय सुस्त हो जाता है, ऊँघने लगता है, सवेरे उठने पर फ्रेश महसूस नहीं करता, परेशान होता है, सिर में हल्का-हल्का दर्द होता है।
सिर में हल्का हल्का दर्द बने रहना नक्स के हर रोग में पाया जाता है, सिर भारी ही बना रहता है। भोजन करते ही पेट की परेशानी नहीं शुरु होती, खाना खाने के एक-काध घंटा बाद पेट में दर्द या परेशानी महसूस होने लगती है
लाइको तथा नक्स मस्केटा में तो खाना खाते ही पेट में परेशानी शुरु हो जाती है, ऐनाकार्डियम में पेट खाली होने पर दर्द होता है। नक्स रोगी के सब लक्षण सवेरे तथा खाना खाने के एक-काध घण्टे बाद बढ़ जाते हैं।
पेट की खराबी के साथ प्रायः सिर-दर्द भी बना रहता है। अगर पेट की गडबड़ी में कार्बो वेज या सल्फर के लक्षण दिखे, तो भी नक्स से चिकित्सा प्रारम्भ करना उचित है।
बीयर पीने वालों के पेट के रोगों में प्रायः कैली बाईक्रोम से लाभ होता है। अगर भरपेट खाना खाने के बाद ऐसा लगे कि खाना पेट में ही पड़ा रह गया है, मानो पेट ने काम करना ही बन्द कर दिया है
खाना पेट में बोझ की तरह पड़ा रहे, तो कैली बाईक्रोम ही देना चाहिये। कैली बाईक्रोम में पेट में परेशानी नक्स की अपेक्षा पहले शुरु हो जाती है।
नक्स के रोगी की भूख मारी जाती है, कभी-कभी असाधारण भूख भी लग जाती है, परन्तु यह असाधारण-भूख-अपचन के रोग के आक्रमण की पूर्व-सूचना होती है।
इस प्रकार की असाधारण-भूख अपचन के रोग के आक्रमण के शुरु होने से 24 से 36 घंटे पहले लगने लगती है। इसका अभिप्राय यही समझना चाहिये कि पेट का काफी दुरुपयोग किया जा चुका है।
ऐसे लक्षण दीखने पर नक्स का प्रयोग उचित है। रोगी कहता है कि अगर मैं उल्टी कर सकू, तो तबीयत ठीक हो जायेगी। खाना खाने के बाद जी का घबराना ऐबिस नाइग्रा में भी पाया जाता है
परन्तु उस में खाना खाते ही परेशानी हो जाती है, क्रियोसोट में खाना खाने के 3 से 4 घंटे बाद रोगी उल्टी कर देता है।
नक्स के रोगी के पेट में दर्द छाती के नीचे के हिस्से (Pit of the stomach) से उठ कर इधर-उधर फैल जाता है, यह शिकायत प्रात:काल बढ़ी हुई होती है।
छाती के नीचे के हिस्से के पेट का दर्द मर्क सौल, कैलकेरिया कार्ब तथा लाइको में भी पाया जाता है। मर्क सौल में उस स्थान पर अर्थात Pit of the stomach पर अत्यन्त कमजोरी सा अनुभव होता है
कैलकेरिया कार्ब में उस स्थान पर दुखन (Tenderness) महसूस होती है, लाइको में अगर उस स्थान को दबाया जाए, तो दर्द होता है। लाइको में थोड़ा-सा भी खा लेने पर पेट भरा-भरा लगता है
परन्तु उसमें नक्स जैसी आँतों की चिरमिराहट (Irritability) नहीं होती।
सीपिया, सल्फर तथा नैट्रम कार्ब में छाती के नीचे के हिस्से (Pit of the stomatch) में अन्दर को धंसने सा अनुभव (All gone sensation) होता है, यह अनुभव 11 बजे के लगभग दोपहर को बढ़ जाता है।
नक्स का रोगी पूरी, कचौरी, परौंठा, गरिष्ट वस्तुओं को पचा लेता है, पल्स का रोगी इन्हें नहीं पचा सकता; नक्स के पेट की शिकायत में पेट में से पानी ऊपर को उछल आता (Waterbrash) है
पल्स में भोजन की नली में जलन (Heartburn) होती है। जब नक्स से लाभ न हो, तो कार्बो वेज से प्रायः लाभ हो जाता है। नक्स को देने का समय सायंकाल है।
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मानसिक लक्षण – रोगी उद्यमी, कार्य शील, झगड़ालू, चिड़चिड़ा, कपटी, प्रतिहिंसाशील होता है (नक्स तथा लाइको की तुलना) – इस औषधि को ‘अनेक कार्य साधक औषधियों का राजा’ कहा जाता है। इसके मानसिक लक्षण बहुत मुख्य हैं। अगर मानसिक लक्षणों के आधार पर विश्व के नागरिकों का विभाजन किया जाय, तो दो-तिहाई लोग इस औषधि के क्षेत्र में आ जायेंगे। इस औषधि की प्रकृति का व्यक्ति अत्यंत उद्यमी और कार्यशील होता है। जिस काम को हाथ में लेता है उसमें जी-जान से जुट जाता है। किसी काम को धीरे-धीरे सहज-भाव से करना उसकी प्रकृति में नहीं है जो करना होता है झट कर डालता है, इंतजार नहीं करता। चिट्ठी लिखता है, तो उसी समय डाकखाने में डालकर दम लेता है। यही कारण है कि इस प्रकृति के लोग सब धंधों में दूसरों से आगे दिखलाई देते हैं। वे उच्च कोटि के वैज्ञानिक, सर्वश्रेष्ठ डॉक्टर, वकीलों में शिरोमणि, व्यापार में सबसे आगे, राजनीति में अग्रणी, नये-नये प्रगतिशील कार्यों में पहल करने वाले होते हैं। क्योंकि वे अपनी बात दूसरों से मनवाने और दूसरों पर शासन करने के आदी होते हैं, इसलिये उनकी बात को कोई न माने तो जल्दी चिढ़ जाते हैं, अपने विरोधी को सहन नहीं कर सकते। यही कारण है कि वे कपटी तथा प्रतिहिंसाशील भी हो जाते हैं। चिड़चिड़ापन कैमोमिला में भी पाया जाता है, परन्तु बदहजमी के रोगी इस नक्स वोमिका के समाने कैमोमिला भी शान्तिमय प्रतीत होता है। नक्स वोमिका का स्वभाव अत्यन्त झगड़ालू, चिड़चिड़ा होता है। वह अपने रास्ते में किसी रुकावट को बर्दाशत नहीं कर सकता। आदमी की रुकावट तो क्या, अगर उसके रास्ते में कुर्सी आ जाती है तो झंझलाहट में लात मारकर उसे परे फेंक देता है, अगर कपड़ा उतारते हुए बटन उलझ जाय, तो इतना झुंझला जाता है कि बटन को तोड़ डालता है। नक्स प्रकृति का व्यक्ति बड़ा नाजुक-मिजाज (Oversensitive) होता है। ऊंची आवाज, तेज रोशनी, हवा का तेज झोंका – किसी चीज को बर्दाश्त नहीं कर सकता। अपने भोजन में भी यह नहीं खा सकता, वह नहीं खा सकता – इस प्रकार के मीन-मेख निकाला करता है।
नक्स तथा लाइको की तुलना – झगड़ालूपन, बदमिजाजी, प्रतिहिंसा की दृष्टि से नक्स वोमिका तथा लाइको एक समान हैं, परन्तु इनमें भेद यह है कि नक्स की बदमिजाजी तब प्रकट होती है जब कोई उससे जा भिड़े, परन्तु लाइको तो दूसरों से लड़ाई मोल लेता फिरता है, अपने आस-पास के लोगों से उनके बिना छेड़े उनसे छेड़खानी करता है। वह हर समय दूसरों के दोष देखा करता है, उन पर रोब जमाता है, किसी की बात को सहन नहीं कर सकता। डॉ० ऐलन का कथन है कि लाइको उस व्यक्ति के समान है जो हाथ में डंडा लिये इस तलाश में फिरा करता है कि किस पर उसका प्रहार करे। लाइको का स्वभाव नक्स से भी तेज होता है, और नक्स का कैमोमिला से तेज होता है।
हमने नक्स के मानसिक लक्षणों के सबंध में लिखते हुए जो कहा कि ऐसे लक्षण नहीं कि इन लोगों के बीमार पड़ने पर नक्स ही दिया जाना चाहिये। कहने का अभिप्राय इतना ही है कि इन लोगों के रोग प्राय: ऐसे होते हैं जिन में नक्स के लक्षण प्रकट होते हैं, और उन लक्षणों के प्रकट होने पर इसे देना पड़ता है।
(2) शारीरिक-कार्य न करने परन्तु मानसिक-कार्य करने वालों के चिड़चिड़ाहट आदि रोग; विद्यार्थी वकील, व्यापारी, नेता आदि के रोग – जो लोग शारीरिक-कार्य नहीं करते, हर समय बैठे रहते हैं, पढ़ा करते हैं, मकान से बाहर नहीं निकलते, मेहनत-परिश्रम नहीं करते, उन्हें धीरे-धीरे कई रोग आ घेरते हैं। उनका मस्तिष्क ही काम करता है, वे अपने मानसिक-कार्य में इतने व्यस्त रहते हैं कि शरीर को बिल्कुल भूल जाते हैं। उनका शरीर टूट जाता है, नींद ठीक-से नहीं आती, भूख नहीं लगती, कब्ज रहने लगता है। डॉ० कैन्ट इस प्रकार के लोगों में से नक्स-प्रकृति के व्यापारी का चित्र खींचते हुए लिखते हैं -व्यापारी अपनी मेज के पास बैठा-बैठा काम करता रहता है, काम करते-करते नितांत थक जाता है। उसे ढेरों पत्र आते हैं, उसने बीसियों काम सहेज रखे होते हैं, उसे हजारों छोटी-छोटी बातों की चिन्ता करनी पड़ती है। उसका मन एक से दूसरी और दूसरी से तीसरी बात पर उड़ा फिरता है। हर बात की चिंता करते-करते वह परेशान हो जाता है। बड़े काम उसे इतना नहीं सताते जितना ये छोटे-छोटे अनगिनत काम उसे परेशान करते रहते हैं। वह इन छोटे-छोटे कामों की बारीकियों को स्मरण रखने का प्रयत्न करता है। घर आकर सोते समय भी ये छोटी-छोटी बातें उसका पीछा नहीं छोड़तीं। वह सोता नहीं, इन्हीं व्यापारिक बारीकियों में उलझा रहता है। उसका मन थक जाता है, मस्तिष्क काम नहीं करता। अब जब ये छोटी-छोटी बातें उसके सामने आती हैं तब वह कागज फाड़ने लगता है, सब कुछ उठा रखता है, घर लौट आता है, चिड़चिड़ा हो जाता है, और व्यापार की उलझन अपने बीवी-बच्चों पर निकालता है। इस प्रकार की मानसिक-चिड़चिड़ाहट व्यापारियों की ही नहीं, उन सब की हो सकती है जो शरीर को भूलकर मानसिक-कार्य में ही जुटे रहते हैं। ऐसी अवस्था में नक्स वोमिका लाभ करता है।
(3) डाक्टरी, वैद्यक, हकीमी दवाओं के बाद रोगों में कुछ दिन नक्स देना चाहिये – जिस प्रकार के रोगियों का हमने ऊपर वर्णन किया वे बदहजमी, कमजोरी, निद्रा-नाश, स्नायु-मंडल की शिकायतों के मरीज होकर डाक्टरी, वैद्यक, हकीमी इलाज कराते हैं। उन्हें तरह-तरह के टॉनिक दिये जाते हैं, शराब पीने को कहा जाता है ताकि शरीर तथा मन में शक्ति का संचार हो। ऐसे रोगी जब होम्योपैथ के पास आते हैं, तब कहते हैं कि वैद्य जी ने भस्म दी थी, हकीम जी ने कुश्ता दिया था, डॉक्टर ने एक टॉनिक दिया था, परन्तु कुछ लाभ नहीं हुआ। डॉ० कैन्ट का कहना है कि ऐसी हालत में रोगी को कुछ दिन नक्स वोमिका पर रखना चाहिए। इस से टॉनिक आदि का अगर कोई दोष शरीर में आया होगा, तो उसका प्रतीकार हो जायेगा, या रोगी इसी से ठीक होने लगेगा, या अन्य जो होम्योपैथिक दवा देनी चाहिये उसके लक्षण स्पष्ट होने लगेंगे। नक्स का प्रभाव बहुत दिन तक नहीं रहता, एक से सात दिन तक इसका प्रभाव रह सकता है, इसलिये इसे दोहरा देते हैं, यद्यपि बहुत देर तक नहीं।
(4) स्नायु-मण्डल का तनाव (Tension in all nerves); नक्स तथा सल्फर का संबंध – आजकल के युग में लोग चाय, कॉफी, शराब तथा अन्य उत्तेजक पदार्थों का सेवन लगातार किया करते हैं। सिनेमा, थियेटर, दिन-रात के नाच-घर में समय बिताते हैं, रातों जागते हैं। इस सबका अन्त स्नायु-मंडल के तनाव के रूप में होता है। दुराचार, व्यभिचार बढ़ता जा रहा है, और इसका शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इन लोगों का स्नायु-संस्थान छिन्न-भिन्न हो जाता है। दिन-रात व्यभिचार आदि में पड़े रहने के कारण शारीरिक तथा मानसिक थकावट, तनाव, चिड़चिड़ाहट को दूर करने के लिये ये लोग चाय, कॉफी, शराब का सहारा लेते हैं। इनका शरीर तथा मन टूट जाता है, चिड़चिड़ापन आ घेरता है, थकावट होती है, जरा से में पसीना आता है, ठंडी हवा, शोर, रोशनी को वे बर्दाश्त नहीं कर सकते। इन लोगों को चाय, कॉफी, शराब की जरूरत नहीं होती, नक्स की जरूरत होती है जो स्नायु-मंडल के तनाव को दूर कर देता है।
नक्स वोमिका तथा सल्फर का एक-दूसरे से संबंध है। सल्फर के शरीर की गहराई में जाने वाले प्रभाव को यह दूर नहीं करता, परन्तु नक्स उसके ‘अतिरंजित’ प्रभाव (Over-action) को दूर कर देता है। नक्स के लिये सल्फर ‘अनुपूरक’ (Complementary) औषधि है, इसलिये नक्स के बाद सल्फर दिया जाता है।
(5) जुकाम – पनीला स्राव होने पर भी नाक बन्द होना और खुले में आराम; इन्फ्लुएन्जा की प्रमुख औषधि (हनीमैन की सम्मति) – यद्यपि नक्स शीत-प्रधान है, और इसलिए नक्स का रोगी भी शीत प्रधान ही होता है, तो भी मामूली जुकाम में रोगी गर्म कमरे में परेशान रहता है, खुली हवा में उसे आराम मिलता है। जुकाम की शुरूआत में प्राय: नक्स देने की प्रथा है। जब जुकाम की शुरूआत हो, उसकी प्रथमावस्था हो, नाक से धार वाला पनीला-स्राव बहने पर भी नाक खुश्क और बन्द मालूम हो, बार-बार छीकें आयें, तब यही दवा दी जाती है। प्राय: जुकाम की शुरूआत होती भी ऐसे ही है। सवेरे नाक बहता रहता है, रात को नाक बन्द हो जाता है, गर्म कमरे में परेशानी होती है, खुले में आराम मिलता है। इस जुकाम के साथ प्राय: सिर-दर्द हुआ करता है, चेहरा गर्म रहता है, ठंड महसूस होती है। नाक में जख्म हो जाते हैं। रात को नाक बन्द होने से सांस रुकता है। रात को नाक का मवाद से भरे रहना, बन्द रहना और दिन को पनीला-स्राव बहना इसका लक्षण है। रोगी की शीत-प्रधान होने पर भी जुकाम में खुली हवा चाहना परस्पर-विरोधी मालूम पड़ता है, परन्तु जैसा हम पहले कह चुके हैं, अनेक बार व्यापक-लक्षण और एकांगी लक्षण परस्पर-विरोधी हो सकते हैं।
(6) पेट की शिकायतें – खाने के एक-दो घंटे के बाद तक के लिये पेट भारी हो जाना – पाचन-संस्थान पर इसका प्रभाव किसी कदर कम नहीं है। जैसे जुकाम के लिये इसे रुटीन की तरह दिया जाता है, वैसे कई चिकित्सक भूख न होने पर इसे रुटीन की तरह दिया करते हैं। लक्षण न होने पर भूख बढ़ाने के लिये देने का परिणाम भूख बढ़ना तो हो सकता है, परन्तु इससे रोगी को लाभ के स्थान में हानि हो जाने की अधिक संभावना है। नक्स वोमिका में तकलीफ खाने के 2-3 घंटे बाद तक रहकर जब तक कि खायी हुई वस्तु अच्छी तरह से हज्म नहीं हो जाती तब तक बनी रहती है; ऐनाकार्डियम में खाने के एक-दो घंटे के बाद जब पेट खाली हो जाता है तब पेट में दर्द शुरू हो जाता है, खाने से दर्द हट जाता है; नक्स मौस्केटा तथा कैलि ब्रोमियम में खाना खाते ही पेट में दर्द शुरू हो जाता है। नक्स का रोगी बदहजमी का पुराना रोगी होता है। पतला-दुबला, झुर्रियां मुख पर, कमर झुकी हुई। समय से पहले बूढ़ा लगने वाला; मिर्च-मसाले, चटपटी चीजें चाहने वाला; कड़वी चीजें पसन्द करता है। घी की चीजें पसन्द करने वाली औषधियों में यह एक है; एल्कोहल-बीयर चाहता है, भूख लगने पर भी गोश्त, तंबाकू को न चाहे – यह भी हो सकता है। टॉनिकों के पीछे भागा करता है। खाने के बाद या एक-दो घंटे बाद पेट भारी हो जाना या फूल जाना, पत्थर की तरह कड़ा हो जाना, पेट का हवा से इस कदर भर जाना कि हवा पेट के डायाफार्म की ऊपर की तरफ दबाने लगे जिससे दिल पर दबाव पड़कर उसमें धड़कन होने लगे। भोजन करने के बाद तुरन्त खायी हुई वस्तु का कय कर देना नक्स का लक्षण है; कई घंटों बाद खायी हुई वस्तु का कय कर देना क्रियोजोट का लक्षण है।
(7) पेट तथा आतों की गति का आगे जाने के स्थान में पीछे को जाना, इस ‘प्रतिगामी-गति’ के कारण उल्टी तथा कब्ज; कब्ज में कई बार पाखाना जाना; पूरा साफ नहीं हुआ ऐसा महसूस करना – पेट तथा आंतों की स्वाभाविक-क्रिया के अनुसार पेट का भोजन और आंतों का पाखाना आगे-आगे धकेला जाना चाहिये। पेट तथा आंतों की इस क्रिया को ‘पैरिस्टैलटिक एक्शन’ कहते हैं, नक्स के रोगी में यह गति अनियमित हो जाती है। पेट का खाना आगे धकेले जाने के बजाय पीछ को लौटने की कोशिश करता है जिससे उल्टी आ जाती है। ‘स्वाभाविक-गति’ खाने को आगे, और नक्स के रोगी की पेट की गति उस खाने को पीछे धकेलती है। पेट की इस अनियमित गति से उबकाई आती है। इन दो गतियों के विरोध के कारण रोगी बार-बार उल्टी की कोशिश करता है, आती भी है, नहीं भी आती, अन्त में जोर लगाकर उसे उल्टी करनी पड़ती है। इस प्रकार की अवस्था को ‘उबकाई’ (Retching) कहा जा सकता है। पेशाब में भी रोगी को इसी प्रकार कोशिश (Strain) करनी पड़ती है। मूत्राशय भरा होता है, परन्तु उसकी ‘प्रतिगामी गति’ के कारण पेशाब निकलता नहीं। आंतों में इस ‘प्रतिगामी-गति’, अर्थात् उल्टी-गति का परिणाम यह होता है कि रोगी को जोर लगाकर टट्टी आती है, परन्तु एक बार में पूरी नहीं आती, उसे बार-बार पाखाना जाना पड़ता है। हर बार थोड़ी-सी टट्टी आती है, उस थोड़ी सी आने से उसे कुछ आराम मिलता है, परन्तु कुछ देर बाद उसे फिर जाना पड़ता है। नक्स की कब्ज का मुख्य लक्षण यह है कि रोगीं कई बार पाखाना जाता है, महसूस करता है कि पूरा साफ नहीं हुआ, जब जाता है तब कुछ देर के लिये पेट हल्का हो जाता है, परन्तु उसे फिर जाना पड़ता है। कब्ज में नक्स की एलूमिना, ब्रायोनिया तथा ओपियम से तुलना की जाती है। नक्स की कब्ज का कारण आतों की ‘अनियमित-क्रिया’ है, एलूमिना में कब्ज का कारण गुदा की ‘क्रिया-शून्यता’ (inactivity of the rectum) है, ब्रायोनिया में कब्ज का कारण आंतों से ‘स्राव न निकलना’ (want of secretion) है, और ओपियम में कब्ज का कारण आंतों की ‘शिथिलता’ (Partial paralysis) है।
(8) पेचिश या दस्त-मल-त्याग के बाद कुछ समय के लिये मरोड़ हट जाना; पेचिश में नक्स, मर्क सौल तथा मर्क कौर की तुलना – पेचिश में मरोड़ हुआ करता है। नक्स की पेचिश या दस्तों में रोगी जोर लगाता है, मरोड़ हो तो भी वह जोर लगाता है, कोशिश करने पर बहुत थोड़ा मल निकलता है, जितना भी थोड़ा-बहुत निकलता है उससे उसे राहत मिलती है। नक्स, मर्क सौल, और मर्क कौर – इन तीनों की पेचिश में मरोड़ होता है; मर्क सौल में पाखाने से पहले, बीच में, और पाखाना आने के बाद भी ‘मरोड़’ बना रहता है, उसे आराम नहीं मिलता; मर्क कौर में भी मर्क सौल जैसी ही हालत होती है, परन्तु भेद यह है कि मर्क कौर में पाखाने के साथ पेशाब की हाजत बनी रहती है। मर्क सौल का मरोड़ केवल आंतों तक सीमित रहता है, मर्क कौर का मरोड़ आंतों और मूत्राशय दोनों को दु:खी रखता है। इसके अतिरिक्त मर्क सौल की पेचिश में खून कम आंव अधिक होती है, मर्क कौर की पेचिश में खून ज्यादा आंव कम होती है।
(9) बादी बवासीर में दिन को सल्फर रात को नक्स देना – डॉ० टायलर लिखती हैं कि उन्हें उनके होम्योपैथिक अस्पताल की नर्सों ने बतलाया कि पुराने होम्योपैथ बवासीर का चीर-फाड़ से इलाज करने के बजाय निम्न-शक्ति की सल्फर और नक्स वोमिका देकर इस रोग को ठीक कर दिया करते थे। बादी बवासीर के लिये कुछ दिनों तक 30 शक्ति में इन दोनों को देकर देख लेना ठीक रहता है। प्रात: काल 10 बजे से पहले सल्फर और सोने से दो घंटे पहले नक्स देकर देखना चाहिये।
(10) खाने के बाद नींद के लिये विवश होना और तीन बजे प्रात: जग जाना – रोगी खाने के बाद निंदासा हो जाता है। शाम को कुर्सी में बैठे-बैठे या पढ़ते-पढ़ते सोने के समय से पहले सोने लगता है, जल्दी सो जाता है, और रात को 3 बजे सवेरे नींद खुल जाती है, फिर सो नहीं सकता। उस समय दिन भर के काम उसे घेर लेते है, सोच-विचार में देर तक पड़ा रहता है, अंत में थक कर फिर सो जाता है, देर तक सोता रहता है, जब उठता है तब थका होता है। टूटी-फूटी नींद आती है। थोड़ी-सी भी नींद से अच्छा अनुभव करता है, अगर कच्ची नींद में उठा दिया जाय, तो तबीयत ठीक नहीं रहती। पल्स नींद के लक्षणों में नक्स से उल्टा है। उसे देर में नींद आती है, नक्स को सोने के समय से पहले नींद आ जाती है।
(11) ज्वर का हर बार समय से पहले आना – ज्वर के संबंध में इसका मुख्य-लक्षण यह है कि ज्वर आने का जो समय रहता है, उसे अगला आक्रमण कुछ घंटे पहले होता है। ज्वर की तीन अवस्थाएं होती हैं – सर्दी, गर्मी, पसीना। नक्स के ज्वर में शीतावस्था में प्यास भहीं रहती; गर्मी की अवस्था में बेहद प्यास होती है; पसीने की अवस्था में भी प्यास नहीं रहती। नक्स शीत-प्रधान है। इसका शीत आता-जाता रहता है, और आने-जाने के रूप में तीनों अवस्थाओं में शीत बना रहता है। जरा कपड़ा हटने से रोगी को जाड़ा लगने लगता है।
(12) माहवारी का समय से पहले आना, पहली समाप्त नहीं होती कि दूसरी आ जाती है – माहवारी समय से पहले होने लगती है, पहली समाप्त नहीं होती कि दूसरी का समय आ जाता है। रक्त-स्राव भी बहुत ज्यादा होता है, बहुत दिनों तक रहता है।
नक्स वोमिका औषधि के अन्य लक्षण
(i) गुदा तथा मूत्राशय पर दर्द का दबांव – नवयुवतियों तथा वृद्धाओं की उन दर्दों में यह उपयोगी है जिनका दर्द बढ़ता हुआ उनके गुदा-प्रदेश तथा मूत्राशय पर दबाव डालता है।
(ii) प्रसव के समय जच्चा को अपर्याप्त दर्द के कारण बार-बार टट्टी या पेशाब जाना – अगर जज्जा को प्रसव के समय जो दर्द होना चाहिये वह पर्याप्त न हो, और रोगिणी को भीतरी दबाव के कारण बार-बार टट्टी या पेशाब की हाजत हो, तो इस औषधि से लाभ होता है।
(iii) अगर गुर्दे की पथरी या पित्ताशय की पित्त-पथरी का दर्द गुदा की तरफ चले और टट्टी जाने की हाजत हो – प्राय: गुर्दे से पथरी मूत्र-नली में आकर अटक जाती है, और दर्द हुआ करता है। इसी प्रकार पित्ताशय की पथरी के पित्त-नली में अटक जाने से दर्द पैदा होता है। अगर इस दर्द की चाल के गुदा-प्रदेश की तरफ जाने से रोगी में बार-बार टट्टी जाने की हाजत पैदा हो, तो नक्स से लाभ होता है। यह औषधि उस प्रणाली को जिसमें पथरी अटक कर दर्द पैदा करती है फैला देती है और पथरी निकल जाती है। इसके बाद, यह औषधि शरीर की पथरी बनने की प्रवृत्ति को भी रोक देती है।
(iv) अति-भोजन से दमा – जिन लोगों को भरपेट खाने के बाद दमे का आक्रमण हो जाता है, उनके लिये भी इसका उपयोग होता है। बहुत ज्यादा पेट भर जाने से गैस का रुख ऊपर को हो जाता है, और रोगी के सांस में कष्ट होता है।
(v) सविराम-ज्वर के शीत, गर्मी तथा पसीना – इन तीनों हालतों में ठंड महसूस होना – मलेरिया या सविराम-ज्वर में नक्स अत्यन्त उपयोगी औषधि है। तीसरे दिन आने वाले ज्वर में जब ज्वर का आक्रमण प्रात:काल हो, इसकी तरफ विशेष-ध्यान जाना चाहिये। इस ज्वर का मुख्य-लक्षण शीत, गर्मी तथा पसीना – इन तीनों अवस्थाओं में ‘शीत’ का अनुभव करना है। गर्मी की अवस्था में भी जबकि वह अन्दर-बाहर से तप रहा होता है, तब भी जरा-सा भी कपड़ा उघड़ जाने पर रोगी ठंड अनुभव करने लगता है। वह अपने को इस गर्मी में ढक भी नहीं सकता, उघड़ा भी नहीं रह सकता।
(vi) कमर दर्द – कमर दर्द में रोगी लेटे हुए पासा नहीं पलट सकता। उठ कर बैठता है, तब पासा पलटता है।
(14) नक्स वोमिका का सजीव तथा मूर्त-चित्रण – इस औषधि का व्यक्ति पतला-दुबला, चिड़चिड़ा, स्नायु-प्रधान, मेलेंखोलिया के स्वभाववाला, हर बात में चुस्त, चौकन्ना, बड़ा सावधान, प्रखर-बुद्धि, विदेशी, कार्य-पटु, उत्साही, जोशीला, घर बैठे रहने वाला, चलने-फिरने से कतराने वाला, मानसिक-कार्य में लगा हुआ, सर्दी से परेशान, थका-मांदा, टॉनिक, शराब से थकावट को दूर करना चाहता है, मिर्च-मसाले, तथा दूध-घी-चर्बी के पदार्थों का प्रेमी, बदहजमी का शिकार – यह है सजीव मूर्त-चित्रण नक्स वोमिका का।
(15) शक्ति तथा प्रकृति – 12, 30, 200 या ऊपर। औषधि ‘सर्द’-प्रकृति के लिये है। हनीमैन ने लिखा है कि नक्स को, जहां तक संभव हो, प्रात:काल नहीं देना चाहिये। कई चिकित्सक नक्स को सोते समय देते हैं, परन्तु हनीमैन के कथनानुसार इसे सोने से कुछ घंटे पहले देना चाहिये, तब इसका प्रभाव मृदु होता है। इसके अतिरिक्त नक्स तथा अन्य होम्योपैथिक औषधियों के विषय में हनीमैन का आदेश है कि औषधि लेने के बाद किसी प्रकार का मानसिक-कार्य-पढ़ना-लिखना, वाद-विवाद, ध्यान आदि नहीं करना चाहिये। हनीमैन के कथानुसार प्रात:काल नक्स लेने से रोग के लक्षण दिन को बढ़ सकते हैं।