छाती के दाँये ओर वाली पसलियों के नीचे की हड्डी के समीप से ऊपरी पेट के अग्रखण्ड के नीचे के स्थान तक यकृत नामक अंग होता है । यकृत में खून ज्यादा हो जाने अथवा हृदय या फेफड़े के रोग होने अथवा अन्य विविध कारणों से यकृत बढ़ जाता है । इसी दशा को यकृत का बढ़ जाना कहा जाता है ।
एब्सिन्थियम Q, 6, 30– यकृत व तिल्ली बढ़े हुये प्रतीत हों, ऐसा लगे जैसे यकृत फूल गया है, पेट में अत्यधिक वायु संचित हो, वातज शूल रहे आदि लक्षणों में दें ।
नक्सवोमिका 6, 30- यकृत फूलकर बढ़ गया हो और कठोर हो गया हो, यकृत में दर्द जो कभी-कभी शूल की तरह हो, साथ में बुखार भी रहे तो इसे दें । गरिष्ठ पदार्थों का अधिक सेवन करने वाले, नशा करने वाले व जुलाब का नियमित व्यवहार करने वाले व्यक्तियों को यह रोग होने पर अधिक लाभप्रद हैं ।
मर्कसॉल 6, 30- यकृत कठोर तथा बड़ा हो जाना, यकृत का प्रदाह, यकृत में दर्द होना, रात में कष्ट बढ़ना, दाँयी करवट से सो न पाना, शोथ, पीलिया आदि लक्षणों में दें ।
चेलिडोनियम 6, 30- यकृत काफी बढ़ गया हो, यकृत में दर्द हो, साथ में दाँये कन्धे के नीचे स्कैपुला हड्डी के नीचे भी निरन्तर दर्द रहे, स्वाद में तीतापन हो, जीभ के बीच में गाढ़ा पीला मैल व किनारे लाल रहें, पाकाशय व पीठ में सुई गड़ने जैसा दर्द हो, साँस लेते में दाँयी ओर दर्द हो तो यह दवा देनी चाहिये ।
मैग्नीशिया म्यूर 30, 200– यकृत का बढ़ जाना, यकृत में दर्द व सूजन, दर्द यकृत वाले स्थान से पीठ की रीढ़ तक व पाकाशय के ऊपरी भाग तक पहुँच जाये, दर्द वाली जगह को छूने पर या दाँयी करवट से सोने पर या कुछ खाने पर दर्द बढ़ जाता हो तो दें ।
ऑरम मेट 3x, 30,200- हृदय-रोग के साथ यकृत काफी बढ़ गया हो, उसमें रक्त अधिक हो गया हो, यकृत में दर्द, पीलिया, मुख से सड़नयुक्त गन्ध आये, दाँये भाग में जलन व काटने-फाड़ने जैसा दर्द हो तों इस दवा का व्यवहार करें ।
कल्केरिया आर्स 30– बच्चों के यकृत व प्लीहा के बढ़ने पर इस दवा को देना चाहिये ।