प्राय: मलेरिया ज्वर आदि के कारण प्लीहा वृद्धि तथा सूजन, प्रदाह, शोथ के परिणामस्वरूप यकृत वृद्धि हो जाया करती है ।
यकृत वृद्धि का रोग प्राय: बच्चों को हुआ करता है। बच्चों की दाहिनी पर्शुकाओं के नीचे बढ़ा हुआ यकृत वहाँ स्पर्श कर दबाने से स्पष्ट प्रतीत होता है तथा ऐसा करते ही बच्चा (दर्द से) रोने लग जाता है। कभी वमन, कभी पतले दस्त, कभी कब्ज तथा कभी आन्त्र में कृमि (चुरने) होने से पाखाने में निकलते हैं। बच्चा हमेशा चिड़चिड़ा रहता है। आमाशय आन्त्र ही नहीं, वरन् समस्त शरीर में जलन होने के कारण बच्चा ठण्डे फर्श पर अथवा ठण्डी जमीन पर लोट-पोट करता रहता है । उसे हल्का-हल्का ज्वर रहता है । नींद भली प्रकार नहीं आती, सिरदर्द, जीभ मलीन, रक्ताल्पता, मन्दाग्नि, मुखाकृति पर हल्का पीला या सफेद जैसा रंग दिखाई पड़ता है। मूत्र थोड़ा लाल एवं पीला मिला हुआ सा आता है तथा किसी-किसी बच्चे में मूत्र थोड़ी देर में जम भी जाता है। रोगी बच्चे के (वयस्कों को भी) दाहिने कन्धे में वेदना होती है । मुँह का स्वाद साबुन खाये हुए सदृश प्रतीत होता है। वायु से पेट भरा हुआ रहता है। अग्निमान्द्य के कारण भूख की कमी हो जाती है। आँख की पलकों तथा चेहरे पर सूजन के लक्षण दिखाई देने लगते हैं तथा रोगी दिन-प्रतिदिन दुर्बल क्षीण और कृश होता चला जाता है। इसी रोग को यकृत शोथ अर्थात् हेपाटाइटिस (Hepatitis) के नाम से जाना जाता है।
यहाँ बढ़े हुए प्लीहा के लिए अंग्रेजी दवा बताई जा रही है :-
रिसोचिन (बायर कम्पनी) – इंजेक्शन एवं टैबलेट के रूप में प्राप्य है। यदि मलेरिया के कारण प्लीहा वृद्धि हो तो सेवन करायें ।
नीवाक्वीन (मे एण्ड बेकर कम्पनी) – प्रयोग व लाभ उपर्युक्त के समान । यह औषधि भी इंजेक्शन तथा टैबलेट के रूप में प्राप्य है ।
ड़िबानेट – दो मि.ली. प्रथम दिन, 3 मि.ली. दूसरे दिन 5 मि.ली. नित्य तब तक 6 मि.ली. दवा पूर्ण न हो जाये । सुई माँसपेशी में दें। इसका उपयोग यदि प्लीहा वृद्धि कालाजार के कारण हुई हो तो लाभप्रद है ।
ऐन्टेरोमायसिटीन (डेज कंपनी) – इसका इंजेक्शन रोग तथा आयुनुसार लगायें । इसका उपयोग प्लीहा वृद्धि यदि आन्त्रिक ज्वर के कारण हुई हो तो अतीव लाभकारी है ।
क्लोरोमायसिटीन एक्सीनेट (पार्क डेविस कंपनी) – इसका इन्जेक्शन भी उपर्युक्त औषधि के समान गुणों से युक्त है।
क्विनोप्लाजमोल स्ट्रोंग (यू. डी. एच. कम्पनी) – वयस्कों को 10 मि.ली. (2 चम्मच) 3 बार भोजनोपरान्त दें। 12 वर्ष से कम आयु के बच्चों को वयस्कों की एक चौथाई अथवा आधी मात्रा पानी के साथ पिलायें । यह औषधि मलेरिया एवं इसके द्वारा उत्पन्न हुई यकृत-वृद्धि तथा प्लीहा-वृद्धि में विशेष रूप से उपयोगी है ।
पाइरेक्स लिक्विड (बंगाल कैमिकल) –10 मि.ली. पानी के साथ दिन में 3 बार । कुछ खाने के बाद पिलाये (खाली पेट न दें) बच्चों को आयु के अनुसार दें ।
माल्ट इस्टोन (बंगाल कैमीकल) – 10 से 15 मि.ली. पानी में घोलकर दिन में तीन बार भोजनोपरान्त प्रयोग करायें ।
क्विनो हेमोजिन (बी. आई. अर्थात् बंगाल इम्युनिटी) – 10-15 मि.ली. पानी या अन्य किसी पेय के साथ घोलकर दिन में 3 बार 3-6 दिनों तक दें । (अवस्थानुसार इसका सेवन काल बढ़ाया जा सकता है और रोग के समूल नष्ट होने तक दिया जा सकता है।
यहाँ बढ़े हुए यकृत के लिए अंग्रेजी दवा बताई जा रही है :-
लिवर एक्सट्रेक्ट विद विटामिन बी (टी. सी. एफ.कंपनी) – 2-3 मि.ली. इंजेक्शन नित्य अथवा 1 दिन बीच में छोड़कर ।
बेरिन (ग्लैक्सो) – 50-100 मि.ग्रा. माँस में 1 दिन छोड़कर ।
लिवोजिन (एलेज बरीज) – 1-2 मि.ली. प्रतिदिन या 1 दिन बीच में छोड़कर।
मैक्राबिन (ग्लैक्सो कंपनी) – 1 सी.सी. रोजाना अथवा 1 दिन छोड़कर माँस में ।
लिवरजीन टैबलेट (स्टैण्डर्ड कंपनी) – 2-3 गोली भोजनोपरान्त दिन में दो बार ।
टेफरोली टैबलेट (ओरियन्ट फार्मा कंपनी) – 1-2 टैबलेट दिन में 3-4 बार ।
मीथियोमिन (एलेम्बिक कपंनी) – 1-2 टेबलेट दिन में 3-4 बार ।
लिब्यूल्स विद फोलिक एसिड बी-12 (एलेम्बिक कंपनी) – 1 कैपसूल दिन में 2-3 बार।
हिमेट्रिन कैपसूल (सैण्डोज कंपनी) – मात्रा उपर्युक्त औषधि के समान ।
यूनिबाइट (यूनिकेम कंपनी) – 1-2 टेबलेट दिन में 3-4 बार ।
मिक (एलेम्बिक कंपनी) – 1 कैपसूल दिन में 2-3 बार ।
लिवोजिन सीरप (बी. डी. एच. कंपनी) – 2-4 चम्मच भोजन से पूर्व वयस्कों को तथा बच्चों को आधी मात्रा में सेवन करायें ।
डेल्फीकोल (सायनेमिड कंपनी) – 3-4 चम्मच भोजनोपरान्त ।
स्टिमूलीव (फ्रेन्को इण्डियन कंपनी) – व्यस्कों को 2-4 चम्मच दिन में 3-4 बार। बच्चों की आधी से 1 चम्मच दिन में 3-4 बार ।
ट्राइकोडोल (डोल्फिन) – 2-4 चम्मच भोजन से तुरन्त पहले दें ।
मिकफोलिक एसिड विद बी-12 (ऐलेम्बिक कंपनी) – 2-3 चम्मच दिन में 2-4 बार।
नोट – पेटेण्ट आयुर्वेदिक योग लिव 52 निर्माता : हिमालय कंपनी की टेबलेट, ड्राप्स, सीरप के रूप में प्राप्य है, जो यकृत वृद्धि, यकृत शोथ तथा अन्य यकृत विकारों में परम उपयोगी है। यह प्लीहा वृद्धि में भीं लाभकारी है। ये 1-2 गोली दिन में 3-4 बार या सीरप के लिए 1-1 चम्मच दिन में 3 बार, ड्राप्स 4-6 बूंद दिन में तीन बार दें। लिव 52 के समान लाभकारी एक अन्य पेटेण्ट आयुर्वेदिक योग लिवोमिन नामक चरक फार्मास्युटिकल्स की औषधि है जो टेबलेट, सीरप व ड्राप्स में उपलब्ध है।
प्लीहा व यकृत वृद्धि नाशक के लिए घरेलू योग
- भाँगरे के स्वरस में थोड़ा अजवायन का चूर्ण मिलाकर पिलाने से यकृत वृद्धि में लाभ हो जाता है ।
- मूली को चीरकर 4 फांकें बना लें तथा चीनी मिट्टी के बर्तन में रखकर इन टुकड़ों पर पिसा हुआ नौसादर (खाने वाला 6 ग्राम) छिड़ककर रात को ओस में रख दें। प्रात:काल इन मूली के टुकड़ों से जो पानी निकले उसे पीकर ऊपर से मूली खालें । मात्र 1 सप्ताह के ही प्रयोग से प्लीहा वृद्धि में विशेष लाभ हो जाता है।
- मकोय या पुनर्नवा का स्वरस गरम-गरम लेप करने से यकृत तथा प्लीहा का शोथ नष्ट हो जाता है ।
- बकरे की मैंगनी को सिरके में पीस कर लेपवत तैयार कर गरम करके सुहाता-सुहाता दिन में प्लीहा-यकृत स्थान पर लेप करने से कैसी भी प्लीहा यकृत वृद्धि हो, थोड़े दिनों के ही प्रयोग से अवश्य ठीक हो जाती है । (प्रयोग कम से कम 15 दिन अवश्य करें ।)
- जामुन के ताजे पत्तों का अर्क निकालकर रख लें तथा रोगी को दिन में 3 बार 5-5 ग्राम की मात्रा में सेवन कराने से बढ़ी हुई तिल्ली और जिगर ठीक हो जाते हैं।
- बछिया का ताजा मूत्र बच्चों को आयु के अनुसार 5 से 15 बूंद तक जल या गौ दुग्ध के साथ सुबह-शाम पिलाने से यकृत वृद्धि में विशेष लाभ प्राप्त होता है ।