बहरापन : वैसे तो इसके कई कारण हैं पर मुख्यतया-बाह्य श्रवणनलिका में मैल, कुछ अंग्रेजी दवाओं के अत्यधिक सेवन के परिणामस्वरूप श्रवण तंत्र में नाड़ी तंतुओं की गड़बड़ी के कारण सुनाई न पड़ना, कान की अन्दरूनी हड्डी (स्टेपीज) में कठोरता आ जाने के कारण, कान के आपरेशन के बाद कान से मवाद आदि बहने के कारण, रक्तहीनता होने के कारण, गुर्दो की खराबी के कारण, किसी एलर्जी के कारण एवं अधिकाधिक रोगियों में अज्ञात कारणों के कारण यह परेशानी होती है। इससे बचाव के लिए कान में मैल न इकट्टा होने दें। इसके लिए कान की नियमित सफाई आवश्यक है। कान की सफाई किसी नुकीली वस्तु से न करें या तो मेडिकेटिड ईयर बड्स से कान की सफाई करें या एक सींक पानी में उबालकर उस पर साफ रुई लपेटकर हल्का सा कान के अन्दर ले जाकर सफाई करें या किसी चिकित्सक से या उसकी देख-रेख में ही सफाई करें। अधिक अन्दर तक सींक डालने या नुकीली वस्तुओं से सफाई करने पर कान का पर्दा फट सकता है एवं कान में संक्रमण भी हो सकता है। रक्तहीनता न होने दें। खान-पान का ध्यान रखें। कान बहने की स्थिति में उचित इलाज कराएं।
बहरापन की दवा
होमियोपैथिक औषधियां निम्न हैं –
‘बेरयटामूर’, ‘बेरयटाकार्ब’, ‘कॉस्टिकम’, ‘चीनीपोडियम’, ‘चिनिनम सल्फ’, ‘सिनकोना’, ‘ग्रैफाइटिस’, ‘नाइट्रिक एसिड’, ‘पल्सेटिला’, हिपर सल्फ’ ।
‘कॉस्टिकम’ 200 शक्ति में देकर ‘बेरयटामूर’ अथवा ‘बेरयटकार्ब’ 30 में एवं ‘चीनीपोडियम’ 3 × शक्ति में लेने पर आशातीत लाभ मिलता है।
कान का बहना : कान का बहना एक आम शिकायत है। ऐसा प्राय: संक्रमण के कारण होता है। अन्य कारण निम्न प्रकार हैं –
मुख्यतया मध्य कर्ण एवं बाह्य कर्णनलिका के संक्रमण के कारण कान बहता है। कान का स्राव सफेद, पानी जैसा, मवादयुक्त, बदबूदार, खून मिला आदि कई प्रकार का हो सकता है। पानी जैसा स्राव, सेरिब्रोस्पाइनल द्रव्य भी हो सकता है, जो कि घातक है। खून युक्त स्राव या तो तात्कालिक चोट के कारण हो सकता है अथवा द्रोहयुक्त बीमारियों (कैंसर अथवा कैंसर की दिशा में अग्रसर) के कारण होता है। बदबूदार मवादयुक्त स्राव प्रायः मध्य कर्ण की हड्डी के संक्रमण एवं बाद में गलाव के कारण होता है।
कान बहने का इलाज
• खून मिश्रित स्राव होने पर -‘मर्कसॉल’, ‘कॉलीआयोड’, ‘आर्सेनिक’, ‘हिपर सल्फ’।
• चुभने एवं चिपकने वाला पतला स्राव – ‘एलुमिना’, ‘आर्सेनिक’, ‘आयोडियम’, ‘कालीबाई’, ‘टेलुरियम’, ‘सिफिलिनम’।
• बदबूदार – मवादयुक्त स्राव होने पर -‘कैल्केरियाकार्ब’, ‘कैल्केरिया सल्फ’, ‘काबोंवेज’, ‘काली सल्फ’, ‘हिपर सल्फ’, ‘पल्सेटिला’, ‘साइलेशिया’, ‘टेलुरियम’, ‘मर्कडल्सिस’।
• ‘मरक्यूरियस’ 200 में दो-तीन खुराक के बाद ‘पल्सेटिला’ 30 में देना कान बहने में हितकर है।
• बचाव के लिए कान की सफाई उपरोक्तानुसार अत्यन्त आवश्यक है।
• दवा का चुनाव लक्षणों के आधार पर करें।
नाक से खून आना (नक्की छूटना) : नाक से खून आना भी एक आम परेशानी है। यह एक नाक से अथवा दोनों नाकों से आ सकता है। मुख्य कारण निम्न प्रकार हैं – संक्रमण, एक्यूट अथवा दीर्घ स्थायी नाक के सेप्टम का संक्रमण, डिफ्थीरिया रोग होने पर, कोढ़ होने पर, सिफलिस, टी.बी. कवक संक्रमण, किशोरावस्था में, अत्यधिक परिश्रम करने पर, अत्यधिक उत्तेजना, अत्यधिक ठंड अथवा गमीं होने पर, वातावरणीय दाब के बदलने पर (जैसे हवाई जहाज में) अत्यधिक मासिक स्राव के साथ (स्त्रियों में), वंशानुगत, नाक में गांठ अथवा द्रोहजनित संक्रमण होने पर, उच्च रक्तचाप होने पर, रक्तहीनता होने पर, गुर्दो की खराबी के कारण, शरीर में प्रोटीन उपापचय असंतुलन के कारण, खसरा, मम्स, टाइफाइड आदि होने पर, शरीर में विटामिन की कमी होने के कारण, हृदय रोग होने पर, गर्भावस्था में एवं अज्ञात कारणों से भी नाक से खून बह सकता है।
नाक के सेप्टम के आगे के नीचे वाले भाग से ही मुख्यतया रक्त बहता है, क्योंकि इसी भाग में अधिकाधिक छोटी-छोटी रक्तवाहिकाएं होती हैं। इसे चिकित्सकीय भाषा में लिटलस एरिया कहते हैं।
नकसीर की दवा
काला रक्त – ‘क्रॉकस’, ‘क्रोटेलस’, ‘मर्कसॉल’ ।
जमा हुआ रक्त – ‘नेट्रमवलोर’, ‘नक्सवोमिका’, ‘सिनकोना’।
भूरा रक्त, किंतु धीरे-धीरे बहता हुआ – ‘हेमेमिलिस’, ‘सिकेलकॉर’, ‘आर्निका’, लेकेसिस’।
न जमने वाला, लगातार बहता हुआ रक्त – ‘फॉस्फोरस’, ‘ट्रीलियम’, ‘हेमेमिलिस’, ‘थेलस्पी’, ‘क्रोटेलस’।
चमकदार रक्त – ‘एकोनाइट’, ‘फेरमफॉस’, ‘मिलिफोलियम’, ‘ट्रीलियम’।
दवा का चुनाव लक्षणों के आधार पर करें।
हेमेमिलिस : शरीर के किसी भी अंग से काला रक्त स्राव होने की स्थिति में, रक्त स्राव के बाद कमजोरी महसूस होना, पेट से, पाखाने के साथ काला स्राव, नाक से बदबूदार काला रक्त स्राव, स्त्रियों में काला अत्यधिक मात्रा में मासिक रक्त स्राव, समय से पूर्व ही, महीने के बीच में मासिक रक्त स्राव होने लगता है, गर्मी में परेशानी बढ़ती है, तो मूल अर्क में 5 -10 बूंद, दिन में तीन बार दस दिन तक औषधि सेवन करनी चाहिए।
मिलिफोलियम : चमकदार अत्यधिक लाल रक्तस्राव, किसी भी अंग से होने पर उक्त औषधि मूल अर्क में 5-10 बूंद दिन में तीन बार, एक चौथाई कप पानी में दस दिन तक लेनी चाहिए।
ट्रीलियम : यह लाल रक्त स्राव की एक उत्तम औषधि है। इसमें स्त्री जननांग विशेष रूप से प्रभावित होते हैं। जांघों एवं अंगों में टूटन एवं दर्द महसूस होता है, जरा-सा हिलने-डुलने या चलने पर रक्त स्राव होने लगता है, यौनांग शिथिल हो जाते हैं, गर्भाशय कैंसर की प्रथम अवस्था में भी ऐसा हो सकता है। नाक से भी रक्त स्राव होता है, जो लाल रंग का होता है। आंखों से सभी वस्तुएं नीली दिखाई पड़ती है, तो उक्त दवा मूल अर्क में लेनी चाहिए।
• चमकदार लाल रक्त हेतु ‘फॉस्फोरस’ 30 शक्ति में उपयुक्त रहती है।
• काले रक्त हेतु ‘क्रोटेलस होर’ 6 x एवं 30 शक्ति में उपयुक्त रहती है।
नाक की घ्राण शक्ति से संबंधित
लक्षण एवं उपचार
• नाक की घ्राण शक्ति कम हो जाने पर – ‘एलूमिना’, ‘साइक्लामेन’, ‘कालीकार्ब’, ‘हिपर सल्फ’, ‘मेंथोल’।
• नाक से अधिक तीव्र गंध सूघना – ‘एकोनाइट’, ‘बेलाडोना’, ‘कैमोमिला’, ‘कॉल्चिकम’, ‘नक्सवोमिका’, ‘फॉस्फोरस’, ‘सीपिया’।
• फूलों के प्रति अधिक ग्राही – ‘ग्रेफाइटिस’ 30 शक्ति में।
• खाने के प्रति अधिक ग्राही – ‘आर्सेनिक’, ‘कॉल्चिकम’, ‘सीपिया’ (कॉल्चिकम औषधि का रोगी तो खाने की सुगंध से ही उल्टियां करने लगता है। 200 शक्ति में औषधि देनी चाहिए)।
• तम्बाकू के प्रति अधिक ग्राही – ‘बेलाडोना’ 30 शक्ति में एवं ‘इग्नेशिया’ 200 शक्ति में।
• धुएं के प्रति अधिक ग्राही – ‘इग्नेशिया’ 200 शक्ति में ।
• घ्राण शक्ति समाप्त हो जाने पर – ‘एलूमिना’, ‘एनाकार्डियम’ 30 शक्ति में ‘हिपर सल्फ’, ‘कालीबाई’, ‘मैगमूर’, ‘नेट्रमम्यूर’, ‘पल्सेटिला’।
• काल्पनिक गंध सूघना – ‘एनाकार्डियम’, ‘बेलाडोना’, ‘इग्नेशिया’, ‘कालीबाई’, ‘मैगमूर’, ‘मरक्यूरियस’, ‘नाइट्रिक एसिड’, ‘नक्सवोम’,’ फॉस्फोरस’, ‘पल्सेटिला’, ‘सल्फर’।
नक्सीर होने पर : रोगी को लिटाने के बजाए बैठाना चाहिए। लिटाना अधिक खतरनाक हो सकता है, क्योंकि नाक से बहने वाला रक्त फेफड़ों में अथवा झिल्ली में भर सकता है। साथ ही ठंडे पानी से साफ करके, साफ रुई या कपड़े से नाक ढककर तात्कालिक रूप से चिकित्सकीय सलाह लेनी चाहिए।
गले में खराश : अधिक बोलने, तेज चीखने-चिल्लाने, सिगरेट पीने, अन्य उतेजनात्मक गैस एवं धुआं, साइनस संक्रमण, टॉन्सिल, जीवाणु संक्रमण आदि के कारण गले में खराश हो सकती है। गले की श्लेष्मा झिल्ली सूज जाती है एवं गले में रुधिर का अधिक संचय हो जाता है। किसी औजार के गले में डालने पर घाव हो जाने पर भी यह शिकायत हो जाती है। गले में खराश, बोलने में परेशानी, गले में दर्द के साथ-साथ बुखार, बदनदर्द आदि लक्षण भी हो सकते हैं।
गले में खराश का उपचार
गले को आराम देना अर्थात् न बोलना अत्यावश्यक है। इसके साथ ही गरारे करना, भाप लेना भी हितकर रहता है।
होमियोपैथिक औषधियां हैं – ‘एकोनाइट’, ‘हिपरसल्फ’, ‘स्पोंजिया’, ‘फॉस्फोरस’, ‘रुमेक्स’, ‘कालीबाई’, ‘मरक्यूरियस’, ‘बेलाडोना’, ‘कॉस्टिकम’, ‘ओरम’ तथा ‘रसटॉक्स’।
अधिक भाषणबाजी करने वालों के लिए‘कॉस्टिकम’ औषधि 200 शक्ति में बहुपयोगी है। साथ ही ‘रसटॉक्स’ एवं ‘हिपर सल्फ’ औषधि का सेवन 30 शक्ति में फायदेमंद रहता है।
मुंह आना ( मुंह में छाले होना ) : बदपरहेजी रहने, खट्टी एवं तली चीजें अधिक खाने एवं कब्ज रहने पर मुंह में छाले हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में सफाई का विशेष ध्यान रखें न स्वयं झूठा खाएं, न दूसरों को खाने दें। दिन में तीन बार साफ रुई के फाहे में ग्लिसरीन लगाकर छालों पर लगाएं व लार थूक दें। कब्ज से बचे।
मुह मे छाले की दवा : औषधियों में विटामिन ‘बी’ एवं ‘सी’ का प्रयोग करें। साथ ही ‘बोरेक्स’ 30 शक्ति में एवं ‘मर्कसॉल’ 30 शक्ति में दिन में तीन-चार बार, एक-एक घंटे के अंतर पर खाएं। ‘बोरेक्स’ पाउडर कच्चे रूप में पानी में डालकर भी मुंह में लगाने पर गले की खराश दूर होती है एवं गला साफ हो जाता है। मुंह में ग्लिसरीन भी लगा सकते हैं।
इसके अलावा ‘नाइट्रिक एसिड’ ‘कालीम्यूर’, ‘सल्फ्यूरिक एसिड’, औषधियां भी लाभप्रद रहती हैं।