आंते दो प्रकार की होती हैं – (1) छोटी तथा (2) बड़ी । इनमें से किसी एक अथवा दोनों ही आंतों में प्रदाह उत्पन्न हो सकता है ।
लक्षण – बड़ी आंत यदि बहुत समय तक प्रदाहित बनी रहे तो उससे आँव अथवा श्लेष्मा निकलता है । यह बीमारी सरलता से ठीक नहीं होना चाहती । बड़ी आंत के प्रदाह को ‘रक्तामाशय’ भी कहा जाता है ।
छोटी आंत के प्रदाहित होने पर नाभि के चारों ओर पेट में लगातार तीव्र दर्द होता है और वह दबाब पड़ने से बढ़ जाता है। दर्द के कारण रोगी चित्त होकर पड़ा रहता है तथा घुटनों को समेट कर पेट के ऊपर रख लेता है। कम्प के साथ ज्वर, अरुचि, कब्ज, पेट में गुड़गुड़ाहट, पेट फूलना, मिचली तथा पतले दस्त आना आदि लक्षण प्रकट होते हैं । यह बीमारी प्राय: बच्चों को ही अधिक होती है । इसमें तीव्र ज्वर एवं मारात्मक उपसगों के साथ अतिसार होकर बालक की मृत्यु तक हो जाती है । यह रोग ग्रीष्म-ऋतु में अधिक होता है।
चिकित्सा – इस रोग में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियों का प्रयोग करना चाहिए :-
बड़ी आंतों के प्रदाह में – मर्क, कोलचिकम तथा आर्सेनिक आदि औषधियों का प्रयोग किया जाता है ।
यदि पाकाशय में दर्द, पेट में खालीपन तथा मुख के स्वाद में तीतापन – ये सब लक्षण हों तो ‘हाईड्रेस्टिस 1x‘ का प्रयोग हितकर रहता है । ‘
छोटी आंतों के प्रदाह में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियों का प्रयोग करना चाहिए :-
बेलाडोना 3 – चेहरे का लाल होना, ज्वर, प्रदाह, शीत, सिर-दर्द तथा पतले दस्तों के लक्षणों में हितकर है ।
एकोनाइट 3x – ज्वर तथा प्रदाह के लक्षणों में ।
मर्क-कोर 6 – बहुत खाँसने पर रक्त-मिश्रित श्लेष्मा का दस्त होने के लक्षण में।
आर्सेनिक 3x, 6 – नाभि के चारों ओर जलन जैसा दर्द, अत्यन्त कमजोरी तथा सुस्ती, खाने-पीने के बाद तुरन्त ही वमन हो जाना, निरन्तर तीव्र प्यास, परन्तु थोड़ा पानी पीने पर थोड़ी देर के लिए तृप्ति का अनुभव होना-इन लक्षणों में।
पोडोफाइलम 6 – क्षुद्रान्त्र में प्रदाह के साथ अतिसार, पेट का फूल जाना, सम्पूर्ण शरीर का रंग पीला पड़ जाना, एवं प्रात:काल रोग का बढ़ना आदि लक्षणों में।
कोलोसिन्थ 6 – छोटी आँत में दर्द के साथ ज्वर, पेट का अत्यधिक फूलना, सम्पूर्ण पेट में दर्द, नाभि के चारों ओर सिकुड़ने जैसा दर्द, मिचली तथा पाखाने का वेग-इन सब लक्षणों में हितकर है ।
पल्सेटिला 3 – गर्मी के दिनों में पतले दस्त, बार-बार पेट का फूलना, मलत्याग के पश्चात् दर्द का घट जाना, हर बार दूसरे प्रकार का दस्त आना तथा पेट में वायु-संचय-इन सब लक्षणों में हितकर है ।
विरेट्रम-एल्ब 6 – बारम्बार वेग से दस्त आना, पेट दर्द, सर्दी का अनुभव, तथा कपाल में पसीना आना आदि लक्षणों में हितकर है ।
इपिकाक 3x, 6 – पतले दस्तों के साथ वमन अथवा मिचली के लक्षण में हितकर है, परन्तु इसे ‘पल्सेटिला’ के पहले अथवा बाद में सेवन कराना चाहिए।
पाइरोजेन 30 – बहुत तेज दर्द में उपयोगी है।
कैल्के-कार्ब 6 – यह औषध विशेषकर बच्चों की बीमारी में हितकर है। पतले तथा श्लेष्मायुक्त दस्त एवं अत्यधिक शीत के लक्षणों में इसे देना चाहिए ।
मैगनेशिया-फॉस 2x वि० – इसे गरम पानी के साथ सेवन करने से दर्द में कमी आती है ।
विशेष – (1) आन्त्र-प्रदाह के रोगी को गरम पानी का सेंक देना उचित है। रोग की तीव्रावस्था में साबूदाना तथा अमरूद आदि हल्की वस्तुएँ देनी चाहिए।
(2) गलित एवं विषाक्त पदाथों का सेवन करने के कारण उत्पन्न उपसर्ग के साथ इस रोग का भ्रम भी उत्पन्न हो सकता हैं ।