इस औषधि का नाम ‘आई-ब्राइट‘ भी है, जिसका अर्थ है चमकीली अांख। यह नाम महत्वपूर्ण है क्योंकि इसकी मुख्य-क्रिया आंखों पर ही होती है। इस औषधि के कार्य-क्षेत्र निम्न हैं –
व्यापक-लक्षण तथा मुख्य-रोग
(1) आँख के रोग में – आँख से दाह करने वाला आंसू का स्राव और नाक से दाह न करने वाला स्राव बहता है (सीपा से उल्टा)
(2) नाक के रोग जुकाम आदि में – नाक से दाह न करने वाले स्राव के साथ आँख से दाह करने वाला स्राव
(3) खांसी दिन को तंग करती है, रात को नहीं।
(4) जुकाम तथा खांसी में युफ्रेशिया, आर्सेनिक, सीपा तथा मर्क की तुलना
(5) मासिक-धर्म एक घंटे तक ही रहता है।
(6) छोटी चेचक में उपयोगी है।
(7) मोतियाबिन्द में उपयोगी है
(1) आँख के रोग में – आँख से दाह करने वाला आंसू का स्राव और नाक से दाह न करने वाला स्राव बहता है – इस औषधि का मुख्य-प्रभाव आँखों पर है। आँखों से बहुत अधिक मात्रा में दाह करने वाला, पनीला स्राव बहता है। इसके साथ जुकाम हो भी सकता है, नहीं भी हो सकता। अगर इसके साथ जुकाम रहता है, तो नाक से जो स्राव बहता है वह दाह करने वाला नहीं होता। अांख में काटने वाला ऐसा दर्द होता है, जो सिर तक पहुंचे, आंखों में ऐसा अनुभव मानो रेत का कण हो या आंख में धूल जा पड़ी हो। आँख की खुश्की जलन, कटने का-सा अनुभव। आँख की खुजली जिसमें आँख को जोर से मलने का जी चाहे और मलते-मलते बहुत अधिक मात्रा में पानी निकले, आँख का सूजना, आंखों का जाला, आँख पर चोट लगाने से कोर्निया का अपारदर्शक हो जाना, आँख अा जाना, लाल हो जाना आदि आँख के हर रोग में, जिसमें आँख से दाह करने वाले आंसू निकलें, यह दवा उपयोगी है।
(2) नाक के रोग में – नाक से दाह न करने वाले स्राव के साथ आँख से दाह करने वाला स्राव – जैसे यह औषधि आँख के रोग के लिए उपयोगी है, वैसे जुकाम के लिये भी उपयोगी है। छींकें आती हैं, नाक से बहुत अधिक मात्रा में पानी बहता है। इस जुकाम में नाक से दाह न करने वाला और आँख से दाह करने वाला स्राव बहता है। यह जुकाम रात को बिस्तर में लेटने के बाद रोगी को बहुत कष्ट देता है। कुछ दिन रहने के बाद यह जुकाम आगे श्वास-नलिका की तरफ बढ़ जाता है, और श्वास-नालिका के ऊपरी भाग से खांसी आने लगती है। ,
(3) खांसी दिन को तंग करती है, रात को नहीं – इसकी खांसी की यह विशेषता है कि यह दिन को ही आती है, रात को नहीं। दिन को भी सूखी, परन्तु प्राय: तर रहती है। हम जानते हैं कि खांसी प्राय: रात को अधिक आया करती है परन्तु इसकी खांसी रात को न आकर दिन को आती है, इसलिये यह लक्षण ‘अद्भुत-लक्षण’ है।
(4) जुकाम तथा खांसी में युफ्रेशिया, आर्सेनिक, सीपा तथा मर्क की तुलना – जब तक होम्योपैथी में सीपा (प्याज) का पता नहीं चला था, तब तक आंख तथा नाक दोनों से पानी बहने के लक्षण में युफ्रेशिया ही दिया जाता था, परन्तु दोनों औषधियों की तुलना करते हुए यह पता चला कि युफ्रेशिया में आंख से जलन वाला और नाक से बिना जलनवाला पानी बहता है। सीपा में इससे उल्टा, अर्थात् नाक से जलनवाला और आंख से बिना-जलनवाला पानी बहता है। युफ्रेशिया का प्रभाव आंख पर है, सीपा का प्रभाव नाक पर है। आर्सेनिक में नाक से बहने वाला, जलनवाला पानी निकले, तो सेक से आराम मिलता है, मर्क सॉल में आंख से बहुत कीचड़ आता है।
(5) मासिक-धर्म एक घंटे तक ही रहता है – इस औषधि का एक विलक्षण-लक्षण यह है कि मासिक-धर्म केवल एक घंटे तक रहता है, या देर में होता है, थोड़ा होता है, थोड़ी ही देर रहता है, या केवल एक दिन रहकर समाप्त हो जाता है।
(6) छोटी-चेचक – छोटी-चेचक में पल्सेटिला के समान यह गुणकारी है। यद्यपि छोटी चेचक में पल्सेटिला का ज्यादा उपयोग होता है, तो भी इस रोग में युफ्रेशिया भी आश्चर्यजनक गुण करता है।
(7) मोतियाबिन्द (cataract) – डॉ० डनहम का कथन है कि युफ्रेशिया से मोतियाबिन्द के कई रोगी ठीक हुए हैं।
(8) शक्ति – मूल अर्क का बाहरी प्रयोग; भीतर के लिये 3, 6, 30, 200