लक्षण तथा मुख्य-रोग | लक्षणों में कमी |
शुस्लर के बायोकैमिस्ट्री के सिद्धांत के अनुसार जुकाम, सूजन, ज्वर, दस्त आदि की प्रथमावस्था में प्रयोग | धीरे-धीरे हरकत से आराम |
होम्योपैथिक प्रयोग – आंख में रेत के कण की अनुभूति में इसका प्रयोग | खून निकलने से आराम |
होम्योपैथिक प्रयोग – कान में दर्द, शोथ, पस आदि में इसका प्रयोग | |
होम्योपैथिक प्रयोग – गला पड़ना, सूजना आदि में इसका प्रयोग | लक्षणों में वृद्धि |
होम्योपैथिक प्रयोग – छाती, मूत्राशय, गठिया, रक्तहीनता, ज्वर में प्रयोग | रात (4 से 6 सवेरे) वृद्धि |
निम्न-शक्ति से अनिद्रा, उच्च-शक्ति से निद्रा आती हैं | ठंडी हवा से रोग बढ़ना |
फेंरम, एकोनाइट, बेलाडोना, जेलसीमियम तथा ब्रायोनिया की तुलना | शोर से रोग में वृद्धि |
शुस्लर का बायोकैमिस्ट्री का सिद्धान्त
(1) जर्मन होम्योपैथ डॉ० शुस्लर ने ‘बायोकैमिस्ट्री’ के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। उनका कहना था कि जैसे किसी इमारत को बनाने के लिये मसाले की जरूरत होती है, उसी प्रकार शरीर-रूपी इमारत को बनाने के लिये प्रोटीन, कार्बोहाईड्रेट्स, चर्बी, पानी आदि की जरूरत है। शरीर रूपी इमारत के ये मानो मसाले हैं। परन्तु, मसाला स्वयं कुछ नहीं कर सकता, उसे इमारत में ठीक जगह पर लगाने के लिये राज-मजदूर की जरूरत होती है। शरीर में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, चर्बी, पानी आदि को अपने-अपने स्थान पर लगाने के लिये जो राज-मजदूर हैं, वे 12 ‘लवण’ (Twelve tissue salts) हैं, जो मसाले को अपने स्थान में पहुँचाते रहते हैं। अगर कोई राज-मजदूर इमारत में काम करना बन्द कर दे, तो उसकी वजह से इमारत में जो मसाला लगना था वह बन्द हो जायेगा, इसी तरह अगर इन बारहों में से किसी एक ‘लवण’ की शरीर में कमी हो जाय, तो उसकी वजह से शरीर जिस खुराक को लिया करता था उसे भी लेना बन्द कर देगा, और शरीर में रोग उत्पन्न हो जायेगा। ये 12 ‘लवण’ जिनकी वजह से शरीर प्रोटीन आदि मसालों को आत्मसात करता है, निम्न है: –
पांच फॉस्फेटस – कैल्केरिया फॉस, फेरम फॉस, कैलि फॉस, मैग्नेशिया फॉस और नैट्रम फॉस।
तीन सलफ़ेटस – कैलकेरिया सल्फ़, कैलि सल्फ और नैट्रम सल्फ़।
दो म्यूरेट्स – कैलि म्यूर, नैट्रम म्यूर।
एक फ्लोराइड – कैलकेरिया फ्लोर।
एक सिलिका – साइलीशिया।
(i) जुकाम तथा सूजन की प्रथमावस्था में फेरम फॉस का प्रयोग – शुस्लर का मत है कि शरीर में ‘फ़ेरम’-लौह-का काम ‘ऑक्सीजन’ को शरीर में खींच लेने का है, हम जो सांस लेते हैं उससे शुद्ध हवा फेफड़ों में प्रविष्ट हो जाती है। इस हवा की ऑक्सीजन हमारे रुधिर में रहने वाला ‘लोहा’ ले लेता है। शरीर के ‘कोष्ठकों’ (Cells) में जो ऑक्सीजन होती है वह लोहे ने चूसी होती है, रुधिर में लोहा न हो तो ऑक्सीजन भी कम हो जाय। परन्तु इस ऑक्सीजन को एक ‘कोष्ठक’ (Cell) में दूसरे ‘कोष्ठक’ तक ले जाने का काम ‘कैलि सल्फ’ का है। ‘कोष्ठक’ के रक्तकणों का फेरम फ़ॉस तो शुद्ध हवा से ऑक्सीजन को खींच लेता है, परन्तु रुधिर-संचार के लिये इतना काफी नहीं है। एक कोष्ठक का लाभ दूसरे कोष्ठक में जाने से ही तो पूर्ण लाभ होगा। इसी काम को ‘कैलि सल्फ़’ करता है। जब रुधिर में फेरम फॉस की कमी होती है तब शरीर में ऑक्सीजन कम चूसी जाती है। ऑक्सीजन की कमी से शरीर की रुधिर-प्रणालिकाएं ढीली पड़ जाती हैं क्योंकि उनमें शक्ति कम हो जाती है। इन रुधिर-प्रणालिकाओं के ढीला पड़ जाने से जहाँ-जहाँ ये प्रणालिकाएँ ढीली होंगी, वहाँ रुधिर इकट्ठा होने लगेगा। रुधिर के एक जगह पर इसी इकट्ठे हो जाने को ‘सूजन की प्रथमावस्था’ (First stage of inflammation) कहते हैं। फेरम फ़ॉस का काम बाहर की हवा में से शरीर के रक्त-कणों में ऑक्सीजन को खींच लाकर इस सूजन को दूर कर देना है। इस सूजन से ही जुकाम होता है।
(ii) ज्वर की प्रथमावस्था में फेरम फॉस का प्रयोग – जो बात जुकाम तथा सूजन के विषय में कही गई है उसे ध्यान में रखते हुए यह स्पष्ट हो जायगा कि ज्वर की प्रथम-अवस्था भी इसीलिये उत्पन्न होती है क्योंकि फरम फॉस की कमी के कारण मस्तिष्क के किसी केन्द्र में शोथ हो जाती है, इसीलिये ज्वर की भी प्रथम-अवस्था में फेरम फॉस ही दिया जाता है। जब ज्वर में ऑक्सीजन का संपूर्ण शरीर में संचार नहीं हो पता तो बुखार लम्बा हो जाता है। जैसा हम पहले लिख चुके हैं, कैलि सल्फ का काम ऑक्सजीन को एक ‘कोष्ठक’ से दूसरे ‘कोष्ठक’ में पहुंचा देना है ताकि ऑक्सीजन का संपूर्ण शरीर में संचार हो सके। इसीलिये ज्वर की प्रथम अवस्था में तो फेरम फॉस दिया जाता है, परन्तु लम्बे बुखार में ‘कैलि सल्फ’ दिया जाता है।
(iii) दस्तों की प्रथमावस्था में फेरम फॉस का प्रयोग – यह कहा ही जा चुका है कि फेरम फॉस का काम शरीर में ऑक्सीजन को लेना है। आंतों में कुछ ऐसे तन्तु होते हैं जिनमें फेरम होता है, और उसकी ताकत की वजह से ये तंतु आंतों में आये भोजन में से बहुत-सा रस चूस लेते हैं। अगर इन तंतुओं में लोहा न रहे, तो जो रस चूसा जाना चाहिए था वह चूसा नहीं जाता और मल रस सहित निकलने लगता है। इसी को दस्त आना कहते हैं। इसीलिये दस्तों में भी फेरम फॉस उपयोगी है, खासकर दस्तों की प्रथमावस्था में फिर भी चिकित्सक को यह देखना होगा कि दस्तों का प्रकार, रंग आदि फेरम के हैं, या नैट्रम म्यूर के हैं, या किसी अन्य दवा के है।
(iv) कब्ज़ में फेरम फॉस का प्रयोग – अगर आंतो की मांस-पेशियों में लोहा न रहे, तो आंतो की जिस गति से मल बाहर धकेला जाता है, जिसे ‘पैरिस्टैलटिक मोशन’ कहते हैं, वही नहीं रहती और कब्ज हो जाता है। इस अवस्था में फेरम फॉस उपयोगी है।
फेरम फॉस का होम्योपैथिक उपयोग
(2) आंख में रेत:कण की-सी अनुभूति में – बायोकैमिक दृष्टि से आंख की सूजन की प्रथमावस्था में यह लाभप्रद है ही, आंख की लाली में, आंख में रेत के कण की-सी अनुभूति में, आंख के भीतर करकराहट में बायोकैमिक तथा होम्योपैथिक दोनों दृष्टियों से यह लाभ करता है। रोशनी तथा कृत्रिम-प्रकाश में आंख चुंधियाने में भी उपयोगी है।
(3) कान में दर्द, शोथ तथा पस में – बायोकैमिक-दृष्टि से कान के दर्द तथा शोथ की प्रथमावस्था में यह लाभप्रद है; होम्योपैथिक-दृष्टि से भी कान के दर्द, शोथ, पस, खून निकलने, पस निकल जाने के बाद भी कर्ण-शूल में आराम के न आने और बार-बार कान के दर्द का दौर पड़ने में यह उपयोगी है।
(4) गला पड़ना, सूजना आदि में – बायोकैमिक-दृष्टि से गायकों, व्याख्याताओं का गला पड़ जाना, बोलते-बोलते गले का पक जाना, दर्द होना आदि लक्षणों की प्रथमावस्था में इससे लाभ होता है; होम्योपैथिक-दृष्टि से भी इन कष्टों में यह लाभप्रद है।
(5) छाती, मूत्राशय, गठिया, रक्तहीनता, ज्वर में – बायोकेमिक-दृष्टि से छाती के शोथ की प्रथमावस्था-न्यूमोनिया-मूत्राशय के शोथ की प्रथमावस्था-गठिये के दर्द की प्रथमावस्था आदि में यह उपयोगी है; होम्योपैथिक-दृष्टि से भी इन रोगों तथा रक्तहीनता में यह श्रेष्ठ औषधि है। रक्तहीनता में कैलकेरिया फॉस के बाद यह अच्छा काम करता है। ज्वर में प्रतिदिन 1 बजे सर्दी शुरू हो जाना इसका लक्षण है।
(6) निम्न-शक्ति से अनिद्रा, उच्च-शक्ति से निद्रा – इस औषधि के विषय में यह ध्यान रखना चाहिए कि अगर इसे निम्न शक्ति में दिया जायेगा, तो नींद में विध्न पड़ सकता है। जिस रोगी को नींद न आती हो, उसे निम्न शक्ति नहीं देनी चाहिए। अगर मस्तिष्क में ‘रक्त-संचय’ के कारण नींद न आती हो, तो उच्च-शक्ति से नींद आ जायेगी, परन्तु यह नींद लाने वाली दवा नहीं है, लक्षणों के अनुसार औषधि का निर्णय करना होगा।
(7) फेरम फॉस, एकोनाइट, बेलाडोना, जेलसीमियम तथा ब्रायोनिया की तुलना – इस औषधि में एकोनाइट और बेलाडोना के समान रोग का वेग से आक्रमण नहीं होता, परन्तु जेलिसीमियम के समान रोग में शिथिलता भी नहीं होती। एक तरफ एकोनाइट और बेलाडोना का वेग, तेजी और दूसरी तरफ जेलसीमियम की सुस्ती-यह औषधि इन दोनों के बीच की है। यह रोगी एकोनाइट और बेलाडोना के समान हृष्ट-पुष्ट, हट्टा-कठ्ठा न होकर रक्तहीन होता है, मुंह पर कभी-कभी लाली आ जाती है, कमजोर होता है, परन्तु जेलसीमियम के रोगी की अपेक्षा अधिक चुस्त होता है, उसके समान इसका मुख इतना मटियाला नहीं होता।
(8) शक्ति तथा प्रकृति – 3, 6, 12, 30 (निम्न-शक्ति से निद्रा-नाश की संभावना और उच्च-शक्ति से निद्रा। )