[ चायना और कोचीन आदि स्थानों में एक तरह का छोटा आकार का वृक्ष होता है, उसके गोंद को स्पिरिट में गलाकर मूल अर्क़ तैयार होता है। इसका दूसरा नाम है – गमि गटी ] – एलोपैथी में इसका व्यवहार जुलाब के लिये होता है, किन्तु होमियोपैथी में यह अतिसार और हैजा इत्यादि पेट की बीमारियों में ही अधिक उपयोग में लाया जाता है। Gambogia के लक्षण के साथ क्रोटॉन, ग्रैटिओला, इलाटिरियम, चायना, ओलियेण्डर इत्यादि बहुत सी दवाओं के लक्षण कुछ न कुछ मिलते है।
गम्बोजिया दस्त – ‘क्रोटॉन’ की तरह बड़े वेग से जोर से एकदम निकलता है, किन्तु इसमें ‘क्रोटॉन’ की तरह पीले रंग के दस्त का लक्षण रहने पर भी स्वाभाविक सहज प्रकार के दस्त भी होते है। एकाएक पाखाना लग आना और खूब जोर से हड़हड़ा कर पित्त के दस्त होकर हल्का हो जाना। गैम्बोजिया का और भी एक प्रधान लक्षण है कि रोगी को पहले दस्त के लिए कुछ और जोर देना पड़ता है, वेग देने के बाद एकाएक खूब जोर से सब मल निकल जाता है, इसमें रोगी को बहुत आराम मालूम होता है; कभी-कभी पाखाना होने के बाद मलद्वार में जलन हुआ करती है; दस्त के बाद पेट में दर्द, पेट फूलना, अफरा तथा बच्चो के ग्रीष्मकालीन, नवीन या पुराने अतिसार में – यह दवा फायदा करती है।
दस्त – पीला, हरा, गहरा हरा, आँव मिला, बदबूदार और अजीर्ण शुदा होता है, मलद्वार की खाल गल जाती है।
क्रियानाशक – कैम्फर, कॉफ़ि, कॉलोसि, कैलि कार्ब , ओपि।
क्रिया का स्थितिकल – 1 से 7 दिन।
क्रम – 6 से 30 शक्ति।