Homeopathic Medicine For Gangrene: माँस के सड़ाव को ‘गैंग्रीन‘ कहा जाता है। जब किसी जख्म (घाव) में माँस सड़ने लगे तो उसे इसी रोग का लक्षण समझकर चिकित्सा करनी चाहिए। Gangrene एक खास तरह की बीमारी है, जिसमें शरीर के कुछ खास हिस्सों में टिश्यूज यानी ऊतक नष्ट होने लगते हैं। इस कारण वहां घाव बन जाता है, जो लगातार फैलता जाता है। यदि वक्त रहते इस समस्या का इलाज ना किया जाए स्थिति बहुत अधिक भयावह हो सकती है। आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि डायबीटीज के अधिकतर रोगियों को अपनी डायट का पूरा ध्यान रखने की सलाह दी जाती है, क्योंकि ज्यादातर केसेज में गैंगरीन की मुख्य वजह शुगर की बीमारी होती है
इस रोग में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभ करती हैं :-
लैकेसिस 30, 200 – फोड़ा होने अथवा चोट लगने के पश्चात् यदि वह स्थान नीला पड़ जाय अथवा उसमें से नीला मवाद या रक्त निकलने लगे, फोड़े के किनारे बाहर की ओर उभर कर, ऊपर की ओर उल्टे मुड़ने लगें, फोड़े को छुआ न जा सके, रोगी का शरीर ठण्ड के कारण ठिठुरता हो तथा हाथ-पाँव ठण्डे हो गये हों या उसके स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ गया हो, तब इस औषध का प्रयोग करना चाहिए । ‘लैकेसिस 6‘ का लोशन तैयार करके एक या दो ड्राम की मात्रा में जख्म पर लगाना चाहिए ।
Video On Gangrene
एकिनेशिया Q – यह औषध रक्त को शुद्ध करती है। इसके मूल-अर्क को 1 से 10 बूंद तक की मात्रा में लक्षणानुसार प्रति दो घण्टे के अन्तर से देना चाहिए। रक्त दूषित हो गया हो, सैप्टिक की अवस्था हो तथा गैंग्रीन हो तो – ऐसी स्थिति में यह औषध विशेष लाभ करती है। इसे सम-भाग जल में मिलाकर तथा उसमें भिगोई हुई कपड़े की पट्टी को घाव के ऊपर रखना चाहिए।
ऐन्थ्राक्सीनम 30 – जिन फोड़े-फुन्सियों के केन्द्र में पस भरा हो, उनके लिए यह औषध लाभकारी है। सड़े तथा गन्दे फोड़े एवं एक के बाद एक निकलने वाले दुर्गन्धित गन्दे फोड़ों में इस औषध के प्रयोग से लाभ होता है ।
एकोनाइट 30 – यदि सड़े फोड़े (जख्म) के साथ तीव्र ज्वर हो, त्वचा खुश्क तथा गरम हो, प्यास, बेचैनी एवं परेशानी के लक्षण हों, रोगी यह कहता हो कि अब उसके बचने की आशा नहीं है, तो इस औषध का प्रयोग बहुत लाभ करता है ।
बेलाडोना 30 – यदि सड़े फोड़े अथवा घाव के रहते हुए रोगी को डिलीरियम हो जाय एवं चेहरा लाल तथा तमतमाया हुआ हो तो इस औषध का प्रयोग करें ।
आर्सेनिक 30 – वृद्ध-व्यक्तियों की खुश्क गैंग्रीन में यह औषध लाभकारी है। रोगाक्रान्त स्थान में जहाँ जलन तथा दुखन हो, वहाँ यदि गरम सेंक से रोगी को आराम मिलता हो तो इस औषध का उपयोग करना चाहिए। इस औषध के रोग में सड़न के साथ जलन तथा कतरने जैसा दर्द होता है, जिसके कारण रोगी को ऐसा प्रतीत होता है, मानो उस जगह पर दहकते हुए अंगारे रखें हों। यदि सामान्य जलन हो तो यह औषध लाभ नहीं करती । इस औषध के रोग में फोड़े का रंग नीला अथवा काला होना आवश्यक है। जलन के साथ दर्द, बेचैनी, घबराहट तथा प्यास के लक्षण होने भी आवश्यक हैं ।
कार्बोवेज 30 – यदि रोगाक्रान्त स्थान बर्फ की भाँति ठण्डा तथा नीला-सा हो, पाँवों में पसीना आता हो, परन्तु इन लक्षणों के साथ बेचैनी न हो तो इसका प्रयोग करना चाहिए। वृद्ध मनुष्यों की पाँव की अंगुलियों से आरम्भ होकर ऊपर की ओर जाने वाली ‘गैंग्रीन’ में यह विशेष हितकर है ।
सिकेलि-कोर – रक्त के त्वचा में कहीं ठहर जाने पर यदि वह स्थान सड़ने लगे (ऐसा प्राय: अँगुलियों में हुआ करता है) तथा अन्य खुश्की के लक्षण ‘आर्सेनिक’ जैसे होते हुए भी ठण्ड से आराम मिलता हो (‘आर्सेनिक’ की भाँत गर्मी से नहीं) तो इस औषध का प्रयोग लाभकर सिद्ध होता है ।
Gangrene Ka Homeopathic Ilaj
Arsenic 30 – विशेष तौर पर वृद्ध-व्यक्तियों के खुश्क गैंगीन में लाभप्रद हैं, अगर Burning और soreness हो, और वहाँ गर्म सेक से रोगी को आराम मिले तो यह दवा उपयोगी है। गैंग्रीन में दूसरी बहुत उपयोगी दवा सिकेल कौर है, परन्तु उसमें ठंड से आराम मिलता है। इस प्रकृति के आधार पर इन दोनों में भेद किया जा सकता है, यद्यपि दोनों एक-दूसरे के बाद भी दिये जा सकते हैं। रोगी कहता है कि उसे ऐसा लगता है मानो दहकते अंगारों से वह स्थान जल रहा है। इसीलिये कार्बन्कल, अल्सर, गैंग्रीन में इसका उपयोग होता है। अगर जलन साधारण सी हो तब आर्सेनिक से लाभ नहीं होता। रोगी को बड़ी बेचैनी होती है। गैंग्रीन में कार्बो वेज भी लाभप्रद है, परन्तु उसमें इतनी भारी बेचैनी नहीं होती । गैंग्रीन में फोड़े का रंग नीला या काला हो जाता है।
Secale cor 30 – इसका प्रभाव रक्त-संचार संस्थान (Circulatory system) पर है, इसका पहला प्रभाव कैशिकाओं का Constriction करना है, उसके बाद दूसरा प्रतिक्रियात्मक प्रभाव उनका Relaxation करना है, जिसके कारण रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है। रक्त का त्वचा में कहीं ठहर जाने, बने रहने से वह स्थान सड़ने-गलने लगता है। यह स्थिति प्रायः अंगुलियों में हुआ करती है, क्योंकि वे रक्त-संचार में सबसे दूर स्थित हैं। इस प्रकार जब गैंग्रीन हो जाता है तब आर्सेनिक के लक्षणों की तरह वह स्थान ख़ुश्क हुआ करता है, परन्तु इन दोनों में भेद यह है कि आर्स में गर्मी से और सिकेल में ठण्ड से आराम मिलता है।
Carbo Veg 30 – यह दवा कार्बन्कल में दी जा सकती है जब आक्रान्त स्थान बर्फ के समान ठण्डा, नीला-सा पड़ जाए, फोड़े से बदबूदार स्राव बहे, जलन के साथ दर्द हो, पैरों में पसीना आये। इसमें बेचैनी नहीं होती, आर्स में बेचैनी होती है। यह भी वृद्ध-व्यक्तियों के गैंग्रीन में जो पाँव की अंगुलियों से शुरु होकर ऊपर को जाने लगे उपयोगी है।
Lachesis 30 – फोड़ा होने या चोट लगने के बाद अगर वह स्थान नीला पड़ जाए और उसमें से नीला-पस या खून निकलने लगे, फोड़े के किनारे बाहर को उभर कर ऊपर से उल्टी तरफ मुड़ने लगें, रोगी को ठण्ड की ठिठरन हो, हाथ-पैर ठंडे हो जायें, तब यह दवा दो। लैकेसिस 6 का लोशन फोड़े पर लगाना चाहिये-एक ड्राम या दो ड्राम। क्रोटेलस 3 भी उपयुक्त है।
Echinacea Q – यह औषधि खून को शुद्ध करती है। इसलिये मूल-अर्क की 5 बूंद तक या ज्यादा प्रति दो घंटे दी जाती है। जब भी Blood poisoning-हो जाए, सैप्टिकल की हालत हो, गैंग्रीन हो, तब इसका उपयोग होता है। थोड़ी पानी में डाल कर उसमें कपड़ा भिगो कर पट्टी भी लगा देनी चाहिये।
टिप्पणी – गुदा का ‘नासूर’ भी एक प्रकार का व्रण ही है, जो त्वचा के आर-पार होता है । नासूर में ‘सल्फर 30‘ का प्रयोग पहले किया जाता है, तत्पश्चात् लक्षणानुसार अन्य औषधियाँ दी जाती हैं।