यह रोग भोजन में आयोडीन की कमी के कारण होता है । इस रोग में गले की गाँठ (थायरॉइड ग्रंथि) धीरे-धीरे बढ़ने लगती है और बहुत बढ़ जाती है । यह गाँठ कठोर होती है। इस रोग में आवाज बैठ जाना, खाना खाने में कष्ट, घबराहट, आलस्य आदि लक्षण प्रकट होते हैं ।
आयोडम 30, 200 – घेघा के साथ सख्त गर्मी लगे, भूख बहुत ज्यादा लगे और खाना खाते ही फिर भूख लग आये तो उपयोगी है । काली आँख और काले बालों के रोगी के लिये अति लाभदायक हैं । डॉ० नैश का कहना है कि पूर्णमासी की रात से अगले दिन से इस दवा की CM (एक लाख) शक्ति की प्रतिदिन एक मात्रा के हिसाब से कुल चार मात्रायें दें- इस प्रकार देने से रोग ठीक हो जाता है ।
ब्रोमियम 30, 200 – घेघा का पत्थर की तरह सख्त होना, रोगी आत्महत्या करना चाहे तो लाभप्रद हैं । नये रोग में घेघा नरम भी हो सकता है। नीली आँखों वालों के लिये लाभप्रद है । आयोडम के प्रयोग से लाभ न होने पर अवशय प्रयोग करें ।
थाइरॉयडिनम 3x – जब कोई दवा काम न करे तो इसका प्रयोग करें। रखनी चाहिये और रोग में कोई भी तब्दीली आते ही इस औषधि को तुरन्त इस दवा को 6 शक्ति में दें ।
कल्केरिया कार्ब 30 – घेघा के रोगी जिन्हें हाथ-पैर और सिर पर हर समय पसीना आता रहे, रोगी का रंग पीला पड़ गया हो, घेघा के कारण कान बहना शुरू हो गये हों, रोगी मोटा हो, चलने से साँस फूल जाये आदि लक्षणों में लाभप्रद है ।
सिस्टस कैन 30 – रोगी को सर्दी ज्यादा महसूस हो, रोगी को मधुमेह या दिल का कोई रोग भी हो, साँस जल्दी फूल जाती ही इत्यादि लक्षणों में लाभप्रद रहती हैं ।
काली आयोड 30 – धेघा इतना कोमल हो कि जरा-सा स्पर्श भी सहन न हो पाता हो, तो लाभप्रद है ।
हाइडैस्टिस केन 30 – युवावस्था में अथवा गर्भावस्था में घेघा रोग होने पर लाभप्रद है ।
स्पांजिया टोस्टा 30 – रोग पुराना पड़ गया हो, दर्द हो, सोते समय सॉस बन्द हो जाये, खाते समय किसी हरकत की सी अनुभूति हो तो लाभ है । दमे या हृदय-रोग से ग्रसित लोगों के घेघा में अति लाभकर है ।