[ इस देश के दाड़िम या अनार के पेड़ की सोर से मूल अर्क तैयार होता है] – पेट की फीता कृमि (tape worm) निकाल बाहर करने के लिए अनार के पेड़ की छाल बहुत दिन से आयुर्वेदीय चिकित्सा में उपयोग होती आ आ रही है। हमारा कहना है की होमियोपैथी के मत से थोड़ा मात्रा में इसका प्रयोग करने से – इससे केवल फीता कृमि ही नहीं, बल्कि सभी तरह की कृमियाँ दूर की जा सकती है, इसका लक्षण है – मुँह में पानी भर आना, जी मिचलाना, गड्ढे में धंसी आँखे, आँख की पुतली बड़ी हो जाना, लगातार सिर में चक्कर आना, क्षीण दृष्टि, ज़बरदस्त भूख, बदहजमी, बहुत ज़्यादा परिमाण में खाने-पीने पर भी दिनों दिन शरीर सूखता जाना, पेट में दर्द, नाभि की जगह दर्द और सूजन, मलद्वार कुटकुटाना, नाक खुजलाना, अंगुली और नाख़ून का खोंटना, चेहरा सफ़ेद या पीला हो जाना, अकड़न (टंकार) इत्यादि सभी लक्षण इसकी परीक्षा में पाए जाते है।
‘ग्रैनेटम’ – सिना, क्वासिया, टियुक्रियम आदि के सदृश दवा है; और बच्चो के लिए ज़्यादा फायदेमंद है।
अनार की जड़ की छाल को पानी में सिझाकर कर एक चाय चम्मच की मात्रा में सवेरे खाली पेट कई दिन सेवन करने से – कृमि रोग में फायदा होता है। इसका रोगी अभिमानी, कृपण, कलहप्रिय और अपनी बीमारी के सम्बन्ध में हमेशा सतर्क रहता है।
क्रम – Q और 2x से 3 शक्ति।