हैजे का संक्रमण वाइब्रियो कालरी और एल्टोर वाइब्रियो नामक जीवाणु द्वारा होता है। मुख्यतया यह रोग दूषित जल की वजह से होता है।
हैजा के कारण
पानी के स्रोत का दूषित होना जैसे कि कुएं जो भली-भांति ढके नहीं होते, जिनमें गंदा पानी बहकर चला जाता है। संक्रमण के प्रमुख स्रोत बन जाते हैं। किसी वस्तु का गलत भंडारण भी हैजे की बीमारी को बढ़ाने में सहायक होता है जैसे गंदे हाथों को पीने के पानी में डालना। भोजन का कच्चा अथवा अधपका खाना। ऐसे तापमान पर भंडारित भोजन जिस पर जीवाणु शीघ्रता से वृद्धि करते हैं, का सेवन करना भी संक्रमण का स्रोत बन सकता है। कभी-कभी कच्ची सब्जियां, दूषित जल से धोकर चटनी या रायता जैसे बिना पकाए खाद्य पदार्थ बना लिए जाते हैं। इससे सब्जियों पर लगे जीवाणु पेट में चले जाते हैं। कई बार व्यापारी तथा यात्री अनजाने में ही संक्रमण अपने साथ ले जाते हैं। मेलों आदि में बहत अधिक लोगों के एकत्रित होने से भी संक्रमण अधिक फैलता है। हैजे की बीमारी शरणार्थी कैम्पों से भी फैलता है। कई लोग ऐसे होते हैं जिनमें हैजे के जीवाणु तो होते हैं, किन्तु उसके लक्षण नहीं दिखाई देते। इसलिए ये दूसरों को संक्रमित तो कर ही सकते हैं।
हैजा के लक्षण
हैजे की गंभीर अवस्था में जल्दी-जल्दी शौच तथा उल्टियां होने लगती है जिससे शरीर में पानी की बहुत कमी हो जाती है। शरीर में पानी की कमी होने को ‘डिहाइड्रेशन’ कहते हैं। यह अवस्था बहुत ही खतरनाक होती है। इससे किसी की मृत्यु भी हो सकती है। सबसे कष्टदायक बात यह है कि मृत्यु से जूझ रहे रोगी को बड़ी यातना झेलनी पड़ती है। अतिसार व उल्टी से ग्रस्त रोगियों की संख्या जब बढ़ने लगे, विशेषकर उस समय, जब रोगी का मल चावल के पानी जैसा हो, तो हैजा फैलने का अंदेशा हो जाता है।
हैजा के रोकथाम
लोगों को इसके बचाव के उपायों से अवगत कराने के साथ स्थानीय अधिकारियों को भी रोग निवारक तथ्यों पर बल देना चाहिए। मल मूत्र त्याग के लिए सुरक्षित तथा उपयुक्त सुविधा प्रदान करनी चाहिए। यदि वितरित हो रहा पानी संदूषित हो, तो स्वच्छ पानी वितरित करने की व्यवस्था होनी चाहिए। लोगों को गंदे स्रोतों से पानी भरने तथा गंदे स्थानों पर नहाने से रोकना चाहिए। लोगों को ऐसे रसायनों का प्रचार व प्रसार करना चाहिए, जिनसे घर के कामों में प्रयोग किए जाने वाले संदूषित पानी को स्वच्छ किया जा सके। यह रसायन जन साधारण को मुफ्त प्रदान किए जाने चाहिए। समय-समय पर सार्वजनिक टंकियों की क्लोरीन अथवा पोटैशियम परमैग्नेट में सफाई करवाते रहना चाहिए। दावतों अथवा शव-दाह संस्कारों के समय भीड़ नहीं जमा होने देनी चाहिए। आपातकालीन उपचार की स्थापना की जानी चाहिए। ध्यान रखें कि पीने तथा नहाने के लिए साफ पानी का ही प्रयोग किया जाए।
हैजा के प्राथमिक उपचार
डिहाइड्रेशन से बचने के लिए अधिकतर मामलों में ओ.आर.टी. (ओरल रिहाइड्रेशन थिरेपी) तथा उचित जीवाणुनाशक दवा काफी होती है। ओ.आर.टी.घर पर ही आसानी से बनाया जा सकता है। इसे बनाने के लिए गिलास भरपानी में एक चुटकी नमक तथा दो चम्मच चीनी मिलाई जाती है। रोग बहुत बढ़ जाने पर भी सही उपचार से मृत्यु-दर को कम किया जा सकता है।
ओ.आर.टी. निम्नलिखित मानक के अनुसार ही दिया जाना चाहिए।
• 4 माह से कम आयु के बच्चे 200 – 400 मिलि.
• 4 से 11 माह की आयु के बच्चे 400 – 600 मिलि.
• 1 से 4 वर्ष आयु के बच्चे 600 -1200 मिलि.
• 5 से 14 वर्ष आयु के बच्चे 1200 -2200 मिलि.
• 14 से ऊपर आयु वाले 2200 – 4000 मिलि.
उपचार के पहले चार घंटों में दवा की यह मात्रा रोगी के पेट में चली जानी चाहिए। इसके पश्चात् रोगी को प्रत्येक 3 घटे के बाद कुछ खिलाते रहना चाहिए।माताओं को अपने शिशुओं को अपना दूध पिलाना चाहिए। वयस्कों को खाने-पीने के लिए प्रेरित करते रहें।
हैजे की वैक्सीन : आम तौर पर आजकल वैक्सीन लेने की सलाह नहीं दी जाती, क्योंकि वैक्सीन का प्रभाव कुछ माह तक ही रहता है। इसके लिए दो सप्ताह के अंतराल पर दो इंजेक्शन लगवाने होते हैं।
हैजा के होमियोपैथिक उपचार
क्यूफिया : अधपचे भोजन की उल्टी, बच्चों में हैजे के लक्षण, बार-बार हरे रंग के पानी जैसे दस्त, अत्यधिक अम्लता, पेट में दर्द, टट्टी-पेशाब करने में भी दर्द महसूस होना, तेज बुखार, बेचैनी एवं अनिद्रा आदि लक्षण मिलने पर दवा का मूल अर्क बच्चों में 5 बूंदें एवं बड़ों में 10 बूंदें दिन में तीन-चार बार पिलाने पर शीघ्र फायदा होता है।
आर्सेनिक एल्बम : हरी सब्जियों, सलाद एवं ऐसे फल जिनमें पानी की मात्रा अधिक होती है तथा तरबूज आदि खाने के बाद एवं खट्टी चीजें, आइसक्रीम एवं तम्बाकू आदि खाने के बाद पेट खराब होने एवं उल्टियां होने की अवस्था में यह उत्तम दवा है। खाने की महक तक से उल्टी आने लगती है। अत्यधिक दस्त एवं उल्टियों से रोगी बहुत कमजोरी महसूस करने लगता है, बिस्तर में करवटें बदलने लगता है, रोगी को लगता है जैसे वह मरने वाला है, पेट में दर्द रहता है, जरा-जरा सा खाने-पीने से दस्त हो जाता है, उल्टी हो जाती है। हरे राग की काली सी, कभी-कभी खून के साथ उल्टियां होने लगती हैं, खट्टी डकारें आती हैं, कभी-कभी तो डकारों की वजह से गला छिल जाता है, प्यास अधिक लगती है, किन्तु थोड़ा-थोड़ा पानी बार-बार पीता है। दस्त बहुत बदबूदार, काले होते हैं। शरीर ठंडा पड़ने लगता है। रोगी गर्म पानी पीना पसंद करता है। ऐसी स्थिति में 30 शक्ति से दवा की तीन-चार खुराकें थोड़े समयांतर पर देकर बंद कर देनी चाहिए। रोगी को ओ.आर.टी. देते रहना चाहिए।
वेरेट्रम एल्बम : ठंडे पानी की इच्छा, किन्तु पीते ही उल्टी हो जाना, गर्म खाने के प्रति अनिच्छा, जी मिचलाना, उल्टी होना, जरा-सा कुछ भी पी लेने अथवा चलने-फिरने से परेशानियां बढ़ जाती है, फल, जूस, ठंडी वस्तुएं एवं आइसक्रीम की प्रबल इच्छा होती है। दर्द के साथ दस्त, पानी जैसे अत्यधिक पाखाने, शौच के बाद कमजोरी महसूस करना, माथे पर ठंडा पसीना आना, पेट में खालीपन महसूस होना, अत्यधिक भूख लगना, रात में एवं ठंडे से परेशानी बढ़ना आदि लक्षण मिलने पर 30 शक्ति की दवा की खुराकें ही फायदेमंद रहती है। 200 शक्ति की कुछ खुराक बाद में देनी चाहिए।
कैम्फर : रोगी का शरीर ठंडा हो जाता है, फिर भी वह चादर ओढ़ना पसंद नहीं करता, रोगी अचेतन होने लगता है, बीमारी के बारे में सोचते रहने पर राहत महसूस होती है, सिर के आगे के हिस्से व आंखों में भयंकर खिंचाव महसूस होता है, रोगी को दौरे पड़ सकते हैं जिसमें रोगी मार-पीट करने लगता है, चलने से, रात्रि के समय एवं छूने पर रोगी की परेशान बढ़ जाती है, किंतु गर्मी से राहत मिलती है तो उक्त औषधि 30 शक्ति में तीन-चार खुराक देना ही पर्याप्त होता है।
एथूजा : बच्चा दूध नहीं पचा पाता, बच्चा चिड़चिड़ा एवं बेचैन होता है, बच्चा किसी भी बात पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाता, बच्चा जैसे ही दूध पीता है, फौरन ही उसे दही जैसी उल्टी हो जाती हैं, खाना खाने के आधे घंटे बाद वह उसे भी उलट देता है, उल्टी करने के बाद बच्चे को बहुत पसीना आता है एवं अत्यधिक कमजोरी अनुभव करने लगता है और इसी कारण बच्चे की उल्टी के बाद झपकी लग जाती है, शाम के समय एवं गर्मी से भी परेशानी बढ़ती है, खुली हवा में कुछ राहत महसूस होती हो, तो 30 शक्ति में, दिन में तीन बार, दो-तीन दिन खिलाने पर आराम मिलता है।
कैल्केरिया फॉस : बच्चों में बदबूदार दस्त हों, साथ ही उल्टी भी हो,दांत निकलने के दौरान या रसदारफलों के सेवन के बाद एवं ठंड में बेचैनी बढ़े, गर्मी से राहत हो, तो 30 शक्ति में औषधि देनी चाहिए।