(1) शिराओं से रक्त-स्राव – हमारे शरीर में दो प्रकार की रक्त-वाहिनियाँ हैं। एक तो शुद्ध-रुधिर को हृदय से लेकर शरीर के भिन्न-भिन्न भागों में ले जाती है, इन्हें ‘धमिनी’ (Artery) कहते हैं; दूसरी अशुद्ध-रुधिर को फेफड़ों द्वारा ऑक्सीजन से शुद्ध होने के लिये हृदय में वापस ले आती है, इन्हें ‘शिराएं’ (Veins) कहते हैं। धमिनी का रुधिर लाल होता है, शिरा का रुधिर नीला-काला होता है। ‘धमनी’ पर एकोनाइट का प्रभाव होता है, इसलिये लाल रुधिर के स्राव में सबसे पहले एकोनाइट की तरफ ध्यान जाता है, ‘शिरा’ पर हैमेमेलिस का प्रभाव है, इसलिये नीले-काले, थक्के-थक्के वाले रुधिर के स्राव में हैमेमेलिस दिया जाता है। इसीलिये इसे कई लेखकों ने ‘शिराओं का एकोनाइट‘ – (Aconite of veins) यह नाम दिया है। अगर शरीर के किसी भी स्थान से नीले-काले रुधिर का स्राव हो, तो हैमेमेलिस का प्रयोग करना चाहिये। शिराओं से जब रुधिर निकलता है तब उसमें वेग नहीं होता, वह बिना वेग के बहता है, उसका रंग भी नीला या काला होता है, उसमें जमे हुए रुधिर के थक्के होते हैं। यह रुधिर नाक से आंख से, कान से, गले से, पेट से, मूत्राशय से, गुदा-द्वारा से-कहीं से भी निकल सकता है। इसिलये मुख्य तौर पर यह नकसीर, बवासीर, खूनी डिसेन्ट्री, जरायु से रुधिर जाना तथा शिराओं के फूलने (Varicose veins) में उपयोगी है।
(2) नकसीर में काला रुधिर बहना – नकसीर में जब काला रुधिर निकले, काले खून के थक्के निकलें, खून न जमे, तब इस औषधि से लाभ होता है।
(3) बवासीर में जब अपने-आप रुधिर बहे – जब बवासीर में नीले रंग के मस्से बनकर बाहर दीखने लगें, अपने आप रुधिर बहे, रुधिर में काले जमे हुए रुधिर के थक्के निकलें, तब यह औषधि बहुत लाभ करती है। रोगी को कमर में इतना दर्द होता है मानो कमर टूट जायेगी।
(4) खूनी डिसेन्ट्री – जब नाभि-प्रदेश के आस-पास से अकड़न भरा दर्द उठकर डिसेन्ट्री का रोग आक्रमण करता है, तब शौच में काले खून के थक्कों को देखकर इस आषधि का निर्वाचन करना उचित है। काला न होकर अगर शुद्ध लाल खून हो, तब भी यह औषधि फायदा कर जाती है।
(5) जरायु से काला रुधिर – जब जरायु से लगातार काला-काला रुधिर बहने लगता है, रोके नहीं रुकता, तब इस औषधि से खून पर नियंत्रण हो जाता है जब हम कहते हैं – काला खून – तब इसका यह मतलब नहीं है कि लाल खून पर इसका असर नहीं है। शिराओं के खून पर धमनियों के खून की अपेक्षा इसका प्रभाव अधिक है – इतना ही अभिप्राय है, वैसे रुधिर को नियमित करना इसका मुख्य काम है।
(6) शिराओं का फूल जाना (Varicose veins) – गर्भावस्था में शरीर के नीचे के अंगों पर बोझ पड़ने से शिराएं फूल जाती हैं, और उनका रुधिर इन शिराओं में संचित होने लगता है। इसी को शिराओं का फूलना कहते हैं। गर्भवती स्त्री शिराओं के इस प्रकार फूल जाने से खड़ी भी नहीं हो सकती। शिराओं के फूलने में फ्लोरिक ऐसिड भी लाभ करता है।
(7) शरीर में पीड़ा की अनुभूति (Soreness) – इस रोग का विशेष लक्षण शरीर में पीड़ा की अनुभूति है, ऐसा अनुभव कि शरीर कुचला गया। आर्निका में भी शरीर के कुचले जाने का-सा अनुभव तथा पीड़ा होती है, परन्तु हैमेमेलिस में रुधिर का बहना आवश्यक लक्षण है।
(8) शक्ति – खून जाने में 12 औंस पानी में इस औषधि के 3, 6 या 10 बूंद टिंचर डालकर एक बड़ा चम्मच दिन में दो बार पी लेने से अगर आराम न आये, तो हैमेमेलिस की 1, 3, 6, 12 आदि शक्ति की मात्रा खाने को देनी चाहिये।