इस रोग में मूत्र त्याग करने से पहले, पीछे (बाद में) या मूत्र के साथ में रक्त मिलकर आता है । कई बार मूत्र के बदले विशुद्ध रक्त आता है । कई दुर्बल रोगियों को रोग आरम्भ होने से पूर्व सर्दी और कम्पन प्रतीत होती है, फिर रक्त मिला मूत्र आने लग जाता है । वृक्कों, मूत्राशय और मूत्रांगों पर चोट लग जाने, किसी रक्त वाहिनी के फट जाने, वृक्कों तथा मूत्राशय और प्रोस्टेट ग्लैंड के सूज जाने, वृक्कों के कैन्सर, क्षय रोग, मलेरिया ज्वर, चेचक, वृक्कों और मूत्राशय की पथरी, रसूली, खराश उत्पन्न करने वाली दवाओं का प्रयोग, प्रदर और बवासीर का रक्त रुक जाना, कीटाणुओं का संक्रमण आदि कारणों से यह रोग हो जाया करता है ।
जब मूत्र में रक्त या पीप आये तो रोगी का मूत्र अलग बर्तन में रखें । यदि रक्त या पीप मूत्र के पहले भाग में है अथवा रक्त बूंद-बूंद आता है तो इसका निष्कर्ष होता है कि रक्त मूत्रमार्ग से आ रहा है (जैसा कि सूजाक में आता है) यदि मूत्र के पिछले भाग में रक्त आता है तो उसका कारण मूत्राशय की पथरी अथवा सूजाक के कारण शोथ का प्रोस्टेट ग्लैंड और वृक्कों तक पहुँच जाना होता है । यदि रक्त और पीप पहले और पिछले (दोनों) मूत्रों से मिला हुआ है तो इसका मतलब वृक्कों की गड़बड़ी से होता है । जब रक्त वृक्क से आता है तो मूत्र में मिला हुआ होता है जिसके कारण मूत्र काला सा होगा (उसमें गाद या पीप नहीं होगी) परन्तु वृक्कों में घाव होने पर मूत्र में पीप और छिल्के भी होंगे और वृक्कों के स्थान पर और कमर में दर्द होगा । प्रोस्टेट ग्लैंड से रक्त आने पर मूत्र से पहले थोड़ी मात्रा में रक्त आता है।
पेशाब में खून आने का उपचार
विटामिन K 5 से 100 मि.ग्रा. प्रत्येक 4-4 घण्टे के अन्तराल से सेवन कराने से रक्त आना बन्द हो जाता है । चाहे इसका कारण वृक्कों की शोथ हो, रसूली हो अथवा स्थानीय चोट हो ।
वेन्समिन (मार्टिन एण्ड हैरिस) 2 टिकिया भोजन के साथ दिन में दो बार खिलायें। नोट – गर्भावस्था के प्रथम मास में इसका प्रयोग न करें ।।
अन्य पेटेण्ट औषधियाँ – सिन्काविट टैबलेट (रोश), स्टिप्टोबियोन (टिकिया, इन्जेक्शन), केडिस्परसी टैबलेट (कैडिला), कैरूटिन सी (टेबलेट, इन्जेक्शन) निर्माता मर्करी इत्यादि ।
गरम तेज मसालेयुक्त भोजन, लालमिर्च, मांस, मछली, अण्डे तथा अधिक परिश्रम करना इस रोग में हानिकारक है । रोगी को जौ का पानी, दूध, चावल, कद्दू, टिण्डा, तोरई, मूंग की दाल, ठण्डी सब्जियाँ तथा संतरे का एक गिलास रस दिन में 2-3 बार पिलाना लाभकारी सिद्ध होता है ।