हिन्दी नाम – कुड़ा या कुरैया है। साधारणतः यह खून-शुदा आँव में ही उपयोग होता है। इसके छाल का काढ़ा आज भी उक्त रोग में घरेलू-चिकित्सा के रूप में उपयोग होता आ रहा है। आँव की नई प्रादाहित दशा में, अधिक परिमाण में खून व आँव का गिरना और उसके साथ पेट में अत्यधिक दर्द रहने पर तथा कुछ पुरानी दशा में जहाँ आँव व खून का भाग घट जाकर पेट में दर्द, कूथन इत्यादि हो, पुराना उदरामय क्रमशः ग्रहणी रोग में परिणत हो जाता है और उसके साथ दुर्बलता, भूख न लगना, अरुचि इत्यादि लक्षण सब प्रकट होते हैं, वहाँ इससे फायदा हो सकता है।
क्रम – Q, 3x, 6x शक्ति।
शीतकाल के खून-शुदा आँव में अटिस्टा इण्डिका दें।