इस रोग में व्यक्ति का पूरा शरीर पीला पड़ जाता है और वह कमजोर हो जाता है। वास्तव में, जब यकृत क्रिया में व्यतिक्रम उत्तपन्न हो जाता है तो पित्त रक्त में मिश्रित होने लगता है जिसके कारण रक्त का रंग परिवर्तित होने लगता है। इसमें कब्ज़, दुर्बलता, ज्वर मुँह में कड़वापन आदि लक्षण प्रकट होते हैं।
इलाज़ – (1) यदि त्रिफला का चूर्ण पाँच ग्राम को चार साल पुराने गुड़ के साथ लिया जाये तो पीलिया का रोग समाप्त हो जाता है।
(2) त्रिफला, कुटकी, गिलोय, चिरायता तथा नीम की छाल – सबको दस-दस ग्राम लेकर दो कप पानी में औटाएें। पानी जलकर जब एक कप रह जाये तो काढ़े को उतार लें। इसमें दो चम्मच शहद मिलाकर सेवन करें। पीलिया में शीघ्र ही लाभ होगा।
(3) त्रिफला, चिरायता, अडूसे की जड़ – प्रत्येक को दस-दस ग्राम लेकर पानी में पकायें। दो गिलास पानी जब एक गिलास रह जाये तो इस काढ़े को छानकर मिश्री मिलाकर पी जायें। इससे पित्त के कारण बन जाने वाले पीलिया रोग शीघ्र ही दुम दबाकर भाग जाता है ।