इस लेख में हम होमियोपैथी दवा लेने के कुछ मुख्य 17 नियम को समझेंगे, और होमियोपैथी दवा के साथ क्या परहेज रखनी है उसकी भी चर्चा करेंगे।
होमियोपैथिक औषधियां लेने के नियम
- जो दवाएं सुबह (प्रातः) ली जाती हैं (2-3 खुराक), वे निराहार,15-15 मिनट के अंतर पर दो-तीन खुराकें ही लें।
- सुबह उक्त प्रकार ली जाने वाली औषधि प्रायः उच्च शक्ति (200 या 1000 या अधिक) की होती है।
- अल्पकालिक रोगों अर्थात वे रोग जो बहुत पुराने नहीं होते, उनमें निम्न शक्ति (3 × से 30) की औषधियां ली जाती हैं।
- दीर्घ स्थायी अर्थात् पुराने एवं जटिल रोगों में रोगी के मानसिक एवं व्यक्तिगत चारित्रिक लक्षणों के आधार पर मिलाकर एक औषधि उच्च शक्ति (200 या अधिक) की कुछ खुराक लेनी चाहिए। साथ ही निम्न शक्ति (3x, 6 x, 12 x या 30) की औषधि दिन में तीन बार 10-15 दिन तक लगातार लेनी चाहिए। फिर लक्षणों में हुए परिवर्तन को ध्यान में रखकर पुन: नई औषधिया पूर्व में ली गई उसी औषधि का सेवन करना चाहिए।
- ‘मूल अर्क’ की 5 से 15-20 बूंद, एक चौथाई कप पानी में मिलाकर लें।
- यदि औषधि विलयन अर्थात् ‘द्रव’ (liquid) के रूप में लें, तो एक बार में दो से चार बूंद से अधिक न लें।
- ‘गोलियों’ में लेने पर, 30 या 40 नम्बर की गोलियां, 4-5 गोलियां एक बार में लेनी चाहिए।
- बायोकेमिक औषधियों की भी 4 गोलियां एक बार में लेनी चाहिए।
- यदि किसी कारण एलोपैथिक औषधियां ले रहे हैं तो होमियो औषधि से 2 घंटे का अंतर रखना चाहिए।
- दो भिन्न औषधियों के मध्य लगभग आधे घंटे का अंतर रखना चाहिए।
- औषधि लेने से 15 मिनट पूर्व साफ पानी से मुंह साफ (कुल्ला) कर लें। औषधि लेने से 15 से 20 मिनट पूर्व एवं औषधि लेने के 15 से 20 मिनट बाद तक कुछ न खाएं पिएं।
- पान, तम्बाकू, पान-मसाला, सिगरेट-बीड़ी, शराब एवं अन्य खुशबूदार वस्तुओं से परहेज रखना सदैव हितकर होता है और औषधियां अधिक तेजी से कार्य करती हैं।
- पुरुषों एवं स्त्रियों के लिए खुराक समान होती है, किंतु बच्चों में खुराक कम होती है। 3 साल तक के बच्चों की खुराक, बड़ों की खुराक की एक-चौथाई रखनी चाहिए इतने छोटे बच्चों में एक चम्मच में थोड़ा-सा पानी लेकर उसमें दवा की एक बूंद मिला लें व यदि औषधि गोलियों में हो, तो 40 नम्बर की एक गोली इसी प्रकार चम्मच में घोल लें व पिला दें।
- 12 साल तक के बच्चों को बड़ों की खुराक से आधी खुराक (अर्थात् अधिकतम दो बूंद दवा एक बार में व गोलियां हों, तो दो गोलियां (40 नम्बर की) दें।
- कभी-कभी खुजली या ‘एक्जीमा’ आदि रोगों में औषधि देने पर रोग कुछ बढ़ा-सा प्रतीत होता है। ऐसे मामलों में घबराने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि ‘होमियोपैथिक दर्शन’ के अनुसार ऐसा सम्भव है और यह इस बात का भी द्योतक है कि दवा ठीक चुनी गई है, किंतु यदि 2-3 दिन में रोग में लाभ न मिले और रोग बढ़ता ही रहे, तो योग्य चिकित्सक से परामर्श ले लेना चाहिए। अत: जनसमुदाय में व्याप्त यह भ्रांति कि होमियो औषधियां रोग बढ़ाती हैं, हर रोग के संबंध में उचित नहीं है।
- औषधियों की निर्धारित मात्रा लेना ही हितकर होता है। होमियोपैथिक औषधियां सूक्ष्म मात्रा में ही कार्य करती हैं। अधिक मात्रा में दवा लेने पर दवा के अन्य लक्षण रोगी में प्रकट होने लगते हैं और रोग बढ़ सकता है। अत: सावधानी बरतें।
- औषधियां किसी विश्वसनीय दुकान से श्रेष्ठ क्वालिटी एवं श्रेष्ठ कम्पनी की ही खरीदनी चाहिए, जिससे वास्तविक लाभ मिल सके।
कुछ होमियोपैथिक दवा विक्रेता लाभ कमाने के चक्कर में नकली दवाइयां भी बेचते हैं और जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करते हैं। इसकी पहचान के लिए यदि दवा की शीशी में गोलियां गल जाएं, तो निश्चय ही दवा नहीं, पानी है, क्योंकि दवा ‘एल्कोहल’ में बनती हैं, जिसमें होमियोपैथी की मीठी गोलियां नहीं गलतीं।
होमियोपैथिक औषधियों के सेवन के साथ परहेज
ऐसी धारणा बनी हुई है कि होमियोपैथिक औषधियों के सेवन के साथ परहेज अधिक रखने पड़ते हैं। यह उचित नहीं है। कुछ दवाओं के साथ कुछ विशेष वस्तुओं का ही परहेज रखना चाहिए। जैसे-जब जुकाम आदि व्याधियों में ‘एलियम सीपा’ नामक दवा दी जाती है, तो प्याज का परहेज करवा देते हैं, क्योंकि उक्त दवा प्याज से ही बनती है। अब यदि दवा के साथ, मरीज प्याज खाता रहेगा तो उक्त कच्चा प्याज दवा की शक्ति को ‘न्यूट्रल’ अर्थात् निष्प्रभावी कर देगा और दवा का कोई प्रभाव नहीं होगा। ऐसे ही ‘एलियम सैटाइवम’ औषधि लहसुन से बनती है, जिसमें लहसुन का प्रयोग निषिद्ध होता है। इसी प्रकार ‘नक्सवोमिका’, ‘एसिड फॉस’, ‘कैमोमिला’ एवं ‘स्टेफीसेग्रिया’ औषधियों के साथ कॉफी, चाय, शराब, रम आदि का परहेज कराया जाता है, क्योंकि ये पदार्थ उक्त दवाओं का असर नष्ट कर देते हैं।