जिस आक्षेपिक अथवा स्नायविक-रोग में मनुष्य अपनी इच्छानुसार चल-फिर नहीं सकता अथवा जिसमें बेहोशी के साथ सभी पेशियाँ अकड़ जाती हैं अथवा कड़ी हो जाती हैं, उसे ‘निस्पन्द-वायु-रोग’ कहते हैं । इस रोग में हाथ-पाँव सुन्न हो जाते हैं । यह कोई स्वरतन्त्र रोग न होकर मस्तिष्क-रोग, पक्षाघात आदि का एक उपसर्ग मात्र ही है । इस व्याधि के वास्तविक कारण का पता अभी तक नहीं लग सका है ।
इस रोग के लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभ करती हैं :-
कैनाबिस इण्डिका 1x, 30 – इस रोग की उत्तम औषध मानी जाती हैं ।
साइक्युटा विरोसा – ‘कैनाबिस’ के कई दिनों तक प्रयोग के बाद भी यदि कोई लाभ न हो तो इसे दें ।
नक्स-मस्केटा 2x, 30 – सिर में चक्कर आना तथा झिल्ली की रूक्षता आदि लक्षणों में इसका प्रयोग करें ।
इग्नेशिया 6 – मानसिक-उद्वेग अथवा हिस्टीरिया के कारण रोग हुआ हो तो इस दें ।
मस्कस 6 – मासिक रज:स्राव की गड़बड़ी के कारण यह रोग हो तो इसका प्रयोग करें ।
स्ट्रैमोनियम 2x, 3 – धर्मोन्माद के कारण उत्पन्न हुए रोग में इसका प्रयोग करें।
विशेष – सल्फर 30 तथा विरेट्रम-विरिडि 1x भी इस रोग में हितकर है।