विवरण – हृदय की धड़कन के सामान्य से अधिक बढ़ जाने को ‘हृदय स्पन्दन’ कहा जाता है । अधिक मैथुन, अधिक मात्रा में शरीर से रक्तस्राव होना, रज:स्राव की गड़बड़ी, अत्यधिक मानसिक-चिन्ता, स्नायविक-दुर्बलता, अत्यधिक शारीरिक-परिश्रम अथवा व्यायाम, गुल्म-वायु, भय, शोक, अम्ल-रोग तथा मादक-पदार्थों एवं चाय आदि उत्तेजक पदार्थों के अधिक सेवन से यह बीमारी होती है । इस रोग में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभ करती हैं:-
ऐकोनाइट 3, 6, 30 – ऐसे हृदय-स्पन्दन में, जिसमें हृदय का बल बना रहे – प्रयोग करें । चेहरे का गर्म तथा लाल हो जाना, साँस जल्दी-जल्दी लेना और छोड़ना एवं थोड़ा-सा उत्तेजित होते ही कलेजा धड़कने लगना-इन लक्षणों में बहुत लाभकर है ।
नक्स-वोमिका 6, 30 – अजीर्ण-रोग के कारण होने वाला हृदय-स्पंदन, जिसमें कब्ज हो, खाना खाने के बाद पेट में गैस उत्पन्न हो तथा भोजन करने के बाद धड़कन बढ़ जाती हो । यह औषध पुरुषों के लिए विशेष हितकर है।
कार्बो-वेज 30 – यदि खाना खाने के बाद पेट में हवा भर जाने के कारण हृदय में धड़कन होने लगे तथा डकार आ जाने पर आराम का अनुभव हो तो इसे देना चाहिए ।
कैमोमिला 6 – क्रोध के कारण कलेजा धड़कने पर इसका प्रयोग करें ।
मास्कस 1, 30 – नर्व-धड़कन एवं हृदय-रोग के आक्रमण के बाद रोगी का बेहोश हो जाना-इन लक्षणों में इसे हर 20 मिनट बाद देना चाहिए ।
पल्सेटिला 30 – यह औषध स्त्रियों के लिए लाभकर है। अजीर्ण-रोग के कारण हृदय-स्पन्दन, हृदय का वात-रोग, जिसमें दर्द शीघ्रतापूर्वक इधर-उधर घूमता रहता हो, हृदय में भारीपन, गर्मी सहन न होना, हवा चाहना, दृष्टि में धुंधलापन तथा रोना – इन लक्षणों में प्रयोग करें।
क्रेटेगस Q – यदि हृदय की धड़कन के कारण हृदय-गति बन्द होने की सम्भावना दिखायी दे तो इसे 5 बूंद की मात्रा में दिन में 4-5 बार देना चाहिए। हद्स्पन्दन में किसी अन्य औषध को देने से पूर्व इसे देना उचित है । श्वास-कष्ट, हृत्पिण्ड की गति में तीव्रता अथवा धड़कन, नाड़ी की गति में अनियमितता, मानसिक-विषण्णता, रक्त की कमी तथा अँगुलियों का ठण्डा हो जाना-इन लक्षणों में हितकर है ।
आइबेरिस Q – यदि ‘क्रेटेगस’ से लाभ न हो तो इस औषध को 2-3 बूंद की मात्रा में दिन में दो-तीन बार सेवन करें ।
बेलाडोना 3 – हृत्पिण्ड में दर्द के कारण छाती में कष्ट, चेहरे का लाल हो जाना तथा सिर में दर्द होना-इन लक्षणों में प्रयोग करें ।
डिजिटेलिस 3, 30 – हृत्पिण्ड की क्रिया में कभी तेजी और कभी धीमापन, हिलने अथवा सोने पर हृत्पिण्ड की क्रिया के बन्द हो जाने का भय, अत्यधिक बेचैनी अथवा मानसिक-उत्तेजना के कारण होने वाले हृद्-स्पन्दन में हितकर है ।
कैनाबिस इण्डिका 3x – हृद्-स्पन्दन के कारण नींद खुल जाना, तीव्र वेदना एवं नाड़ी का गति की क्षीण हो जाना आदि लक्षणों में इसका प्रयोग करें ।
आरम-मेटालिकम 6x, 200 – विशेषकर वृद्ध व्यक्तियों की कमजोरी के कारण कलेजे की धड़कन में इसका प्रयोग करें ।
सिमिसिफ्यूगा 30 – जरायु अथवा डिम्बकोष की बीमारी के कारण होने वाले हृद्-स्पन्दन में हितकर है।
स्पाइजीलिया 3 – हृत्पिण्ड में दर्द, हृत्पिण्ड में वात, हृत्कम्पन तथा हृत्पिण्ड से हाथ और मेरुदण्ड तक के दर्द में इसका प्रयोग करें ।
लैकेसिस 6, 30 – स्नायविक-दुर्बलता के कारण हृत्पिण्ड की बीमारी, हृदय की क्रिया का हमेशा एक-सा न रहना, बाँयीं ओर सुई बेधने जैसा दर्द, जोर से साँस लेना और जिसके साथ बार-बार पेशाब जाने के लक्षण भी हों-ऐसे लक्षणों में इसका प्रयोग करें ।
कैक्टस 3x – हृत्पिण्ड को किसी के द्वारा दबाये जाने, उछालने अथवा हिलाने का अनुभव, हृदय का हर समय धक-धक करते रहना, बायीं करवट सोने, घूमने, थोड़ा-सा भी परिश्रम करने, पेट गड़गड़ाने के बाद अथवा रात के समय कलेजे का धड़कने लगना, रज:स्राव के समय धड़कन में वृद्धि, रोगी को मृत्यु-भय तथा पुराने हृदय-रोग के लक्षणों में इसका प्रयोग लाभकर रहता है ।
लैटिफोलिया 3 – वात-व्याधि अथवा धूम्रपान के कारण हृत्पिण्ड की तकलीफ में इसका प्रयोग करें ।
आर्निका 3 – कड़ी मेहनत करने के बाद होने वाली कलेजे की धड़कन में यह लाभकर है।
कैल्केरिया-फॉस 12x वि० – उद्वेग अथवा दुर्बलता के साथ हृदस्पन्दन, रक्त-संचालन की क्रिया में अनियमितता एवं श्वास लेते समय हृत्पिण्ड में अधिक दर्द होना – इन लक्षणों में इसका प्रयोग करें ।
अधिक शारीरिक अथवा मानसिक-परिश्रम, अधिक भोजन एवं अधिक उत्तेजक पदार्थों का सेवन वर्जित है। यदि रोग अजीर्ण के कारण हुआ हो तो सर्वप्रथम पेट की गड़बड़ी का उपचार करना चाहिए। हल्का तथा पौष्टिक भोजन, नियत समय पर खाना तथा सोना, नित्य स्नान करना, खुली हवा का सेवन तथा गर्म पानी से पाँवों को धोना-ये सभी उपचार हितकर हैं ।