विवरण – गर्मी के दिनों में तेज धूप अथवा भट्टी आदि की आग की झपट लग जाने के कारण यह रोग होता है । इसमें सिर-दर्द, सिर में चक्कर आना, ऊपरी पेट में दर्द, वमन अथवा मिचली, शरीर की त्वचा का सूखी तथा अत्यधिक गर्म हो जाना, कभी-कभी शीत आ जाने जैसी ठण्ड लगना, नाक से जोर की आवाज के साथ बेहोशी, साँस का बन्द हो जाना, बार-बार पेशाब आना, और कभी-कभी मल-मूत्र का रुक जाना, दृष्टि-क्षीणता, मूर्छा, खींचन, ऐंठन, अकड़न, शरीर के ताप में अत्यधिक वृद्धि तथा नाड़ी का तीव्र एवं उछलती हुई चलना – ये सब इस रोग के लक्षण हैं ।
कभी-कभी लू (सूर्य की तीव्र धूप) लगने के अतिरिक्त गरम कमरे अथवा अग्नि-कुण्ड आदि के समीप बैठना, रात के समय गर्मी पड़ने अथवा सर्दी-गर्मी के कारणों से भी शरीर की गर्मी बढ़ जाती है अथवा कभी-कभी शरीर का तापमान स्वाभाविक तापमान से कम रह जाता है, ऐसी स्थिति में नाड़ी क्षीण हो जाती है तथा हिमांग एवं अन्य लक्षण प्रकट होते हैं ।
चिकित्सा – लू लगने में निम्नलिखित औषधोपचार लाभ करते हैं :-
ग्लोनायन 3, 6, 30 – यह लू लगने की मुख्य औषध है। आँखों का स्थिर तथा दृष्टि का एकटक हो जाना, जीभ पर सफेदी, चेहरे पर पीलापन, साँस में भारीपन, नब्ज में तेजी, वमन, शरीर के तापमान का अत्यधिक बढ़ जाना एवं कभी-कभी बेहोशी आ जाना-इन लक्षणों में हितकर है ।
ऐकोनाइट 3, 6 – सूर्य की गर्मी अथवा लू लग जाने के कारण रक्त-संस्थान पर अत्यधिक शिथिलताकारक प्रभाव पड़ने में हितकर है।
लैकेसिस 3, 6 – सूर्य की गरमी के कारण चक्कर आना, बेहोशी, थकावट तथा स्मृति शक्ति का ह्रास-इन लक्षणों में लाभकारी है।
ऐनाकार्डियम 6, 30 – लू लगने के कारण स्मृति-शक्ति के ह्रास में दें।
स्ट्रेमोनियम 3 – लू लग जाने पर तीव्र-प्रलाप के लक्षणों में इसे दें।
बेलाडोना 3, 30 – लू लग जाने के कारण खुमारी आना, तन्द्रा, बेहोशी, चेहरा तथा आँख का लाल हो जाना, तीव्र ज्वर एवं सिर-दर्द के साथ सिर में तपकन आदि लक्षणों में हितकर है ।
जेल्सीमियम 30 – उक्त लक्षणों के साथ रोगी को अचेतन-निद्रा (Coma) आ घेरे तो इसका प्रयोग करें ।
नेट्रम-कार्ब 6 – लू लगने के कारण सिर-दर्द, रोग के पुराने हो जाने पर उसके परिणाम-स्वरूप उत्पन्न होने वाले उपसर्ग एवं अत्यधिक कमजोरी अनुभव होने पर इसका प्रयोग हितकर है ।
- इस रोग में शरीर की गर्मी का घटना आवश्यक है। इसके लिए रोगी के शरीर तथा माथे पर ठण्डा पानी (बर्फ नहीं) डालना चाहिए व एमिल नाइट्रैट का सेवन कराना चाहिए । जब शरीर की गर्मी 102 डिग्री पर आ जाय तब पानी डालना बन्द कर देना चाहिए ।
- लू लगे रोगी को अल्कोहल अथवा शराब पिलाना हानिकर रहता है।
- रोगी के पाँवों के तलवों पर ठण्डे पानी में पीली सरसों के तैल की मालिश करना हितकर है ।
आग के पास बैठना आदि पूर्वोक्त कारणों से सर्दी-गर्मी हो जाने पर, जब शरीर का तापमान घटने लगे तो सर्वप्रथम रोगी के हाथ-पाँव तथा सिर पर गरम पानी का प्रयोग करना चाहिए तथा स्पिरिट कैम्फर को एक-एक बूंद की मात्रा में 5-7 मिनट के अन्तर से सेवन कराते रहना चाहिए। यदि शरीर का तापमान स्वाभाविक तापमान से ज्यादा ही कम हो जाय तो रोगी को खूब गरम पानी (जो सहन किया जा सके और जिसके कारण त्वचा पर छाले आदि न पड़ जायें) से स्नान कराना चाहिए तथा बीच-बीच में शराब अथवा अल्कोहल भी पिलाते रहना चाहिए ।
यदि इस रोग में शारीरिक उत्तेजना हो अर्थात् शरीर में गर्मी अधिक हो तो सिर, गर्दन के पिछले भाग तथा छाती पर ठण्डे पानी की पट्टी रखनी चाहिए अथवा ठण्डा पानी छिड़कना चाहिए। रोगी के वस्त्र भी ढीले कर देने चाहिए ।
चिकित्सा – इस रोग में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभकर सिद्ध होती हैं :-
जेल्सीमियम 1x, 3x – सिर-दर्द, सिर में चक्कर आना, तथा बार-बार पेशाब आना आदि सर्दी-गर्मी के पूर्व लक्षणों में रोगी को ठण्डे स्थान में ले जाकर, इस औषध का 1-1 घण्टे के अन्तर से सेवन कराना चाहिए ।
क्लोरोफार्म – डॉ० ओसलर के मतानुसार यदि रोगी के शरीर में खिंचाव अथवा अकड़न के लक्षण उत्पन्न हों तो इसे सुंघाना हितकर रहता है ।
ग्लोनाइन 6 – यदि रोग आराम होने की दिशा में बढ़ रहा हो तथा सिर में दर्द मौजूद हो तो इसे देना उचित रहता है। यदि सिर में अत्यधिक चक्कर आना, माथे के पिछले भाग में दर्द, शरीर के भीतर जलन जैसा उत्ताप तथा अचानक ही अचेतनता के लक्षण प्रकट हों तो इस औषध को 3 शक्ति क्रम में पाँच-पाँच मिनट के अन्तर से देना चाहिए ।
बेलाडोना 3 – यदि उक्त लक्षणों के साथ अाँखों में तथा चेहरे पर लाली दिखाई दे तो इस औषध को दें ।
विशेष – यदि प्रतिवर्ष गर्मी के दिनों में सर्दी-गर्मी के कारण सिर-दर्द होता हो तो नेट्रम-कार्ब 6 का सेवन करना चाहिए तथा बीच-बीच में आवश्यकता एवं लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियों का प्रयोग करना चाहिए : – कार्बो-वेज 30, नेट्रम-म्यूर 6x वि०, ओपियम 6, विरेट्रम-विरिडि 1x, 3, कैक्टस 3, एकोनाइट 3 आदि।