विवरण – इस रोग के होने पर हृत्पिण्ड बढ़कर गोल तथा भारी हो जाता है तथा उसकी सभी पेशियाँ मोटी हो जाती हैं । हृत्पिण्ड की क्रिया में तेजी आकर जोर की धड़कन होने लगती है, जिसके फलस्वरूप गले में सुरसुरी मचती है अथवा खुस-खुसी खाँसी आती हैं। परिश्रम करने पर श्वास-प्रश्वास में कष्ट होता है तथा नाड़ी क्षुद्र एवं तीव्र हो जाती है। कभी-कभी छाती की बगल वाली जगह फूल जाती है।
यह रोग अधिक परिश्रम अथा व्यायाम आदि के कारण रक्त-संचालन-क्रिया के बन्द हो जाने से उत्पन्न होता है। इसमें लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभ करती हैं :-
आर्निका 6, 30 – अधिक व्यायाम, परिश्रम, कुश्ती लड़ने आदि के कारण हृदय के बढ़ जाने पर, जिगर में दर्द उठ कर छाती में होता हुआ बाँयी बाजू के नीचे तक पहुँचता है, हाथ की शिराएँ सूज कर लाल-नीले रंग की हो जाती है तथा हाथ में सुइयाँ चुभने जैसा दर्द होता है-इन लक्षणों में यह औषध लाभ करती है ।
ऐकोनाइट 3, 30 – दिल पर बोझ का अनुभव, हृत्पिण्ड की क्रिया में वृद्धि और तेजी, बाँयी ओर को दर्द, श्वास-कष्ट, नाड़ी का क्षीण तथा द्रुत होना, दिल का जोर से धड़कना एवं गले तथा कनपटियों में धमनी में टपकन होना – इन लक्षणों में यह औषध लाभकर है ।
बेलाडोना 30 – नाड़ी भरी हुई, तीव्र एवं कमजोर, गले की धमनियों में अधिक स्पंदन, नाड़ी स्पंदन का धक्का सिर में अनुभव होना, बड़े परिश्रम से श्वास ले पाना, सम्पूर्ण शरीर में स्पंदन, हृदय का बहुत बड़ा प्रतीत होना, नींद न आना और रात के समय बेचैनी-इन लक्षणों में इसका प्रयोग हितकर रहता है ।
कैक्टस Q, 1x, 3 – हृदय का लोहे के शिकंजे में जकड़ा हुआ-सा प्रतीत होना, हृदय पर दबाव एवं भार का अनुभव, हृदय-गति अनियमित होने के कारण गहरी साँस लेने की विवशता, छाती के निम्न भाग में पीड़ायुक्त सिकुड़न, छाती की निचली पसलियों का रस्सी से जकड़े हुए होने का अनुभव, कभी-कभी दर्द के कारण चिल्ला उठना, कभी-कभी पेट, आमाशय आदि अंगों में नाड़ी-स्पंदन का अनुभव होना, शारीरिक-अवसन्नता, नींद न आना, पाँवों में सूजन, हृत्पिण्ड-प्रदाह तथा हृदय-शूल दिन अथवा रात में 11 बजे के लगभग रोग के उपसर्गों में वृद्धि होना-इन लक्षणों में यह औषध लाभ करती है । हृदय की नर्वस धड़कन में इसे 30 शक्ति में देना चाहिए।
डिजिटेलिस 3, 30 – हृत्पिण्ड की पेशी में कमजोरी, मेहनत करने से श्वासकष्ट, वक्षोस्थि के नीचे दर्द, मूर्च्छाभाव तथा सिर में चक्कर आना – इन लक्षणों में हितकर है ।
विशेष – इसके अतिरिक्त लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियों के प्रयोग की भी आवश्यकता पड़ सकती हैं :- स्पाइजीलिया, आर्सेनिक।