बिना सूजन अथवा दर्द का एक उभार, जिसमें त्वचा की एपिडर्मिस परत अपनी सतह से ऊपर उठकर वृद्धि करने लगती है, उसे मस्से कहते हैं।
मस्से का कारण
मस्से त्वचा पर उगने वाले एवं असरकारक विषाणुओं द्वारा उत्पन्न होते हैं। यह रोग संक्रमण द्वारा भी संभव है। त्वचा का घाव घटी अम्लता एवं सान्द्रता एवं रूखापन अन्य मस्से के बढ़ने को बढ़वार सुनिश्चित करने वाले कारण हैं। अत्यधिक पसीना भी मस्सों को बढ़ावा देता है।
मस्सा के प्रकार
मस्सों को निम्न भागों में बांटा जा सकता है –
ऊतकों के प्रकार के आधार पर : बेसल सैल – वे मस्से जो ऊपरी सतह पर ही हो। इन्हें सेनाइल (अर्थात् बुढ़ापे के) मस्से भी कहते हैं। इनका रंग पीले से गाढ़ा भूरा होता है और ये कुछ चिकनाहट लिये हुए होते हैं।
स्क्वेमस सैल : खुरदरे तश्तरी के आकार के ये मस्से विषाणु द्वारा होते हैं। अत: संक्रामक भी होते हैं। अधिकतर ऐसे मस्सों से युवावर्ग ही प्रभावित हैं। हथेलियों एवं तलवों में होने वाले मस्सों को प्लांटर मस्से कहते हैं। ये अन्दर धंसे हुए होते हैं। इनमें दर्द होता है। इनसे चलने-फिरने में भी परेशानी होती है और गेहूं के दाने से मिलते-जुलते होते हैं। कभी-कभी ये मस्से नाखून एवं त्वचा के बीच में भी हो जाते हैं। स्वेमस सैल मस्से भूरे स्लेटी अथवा त्वचा के रंग के हो सकते हैं।
जुवेनाइल मस्से : ये मस्से कम उभार वाले होते हैं। ये बहुभाजी आकृति के होते हैं। इनकी सतह चिकनी एवं कोमल होती है।
कोण्डाइलोमेटा एक्यूमिनेशन : इन्हें नुकीले एवं गीले मस्से भी कहते हैं। ये अधिकतर जननांगों एवं पाखाने के रास्ते पर उगते हैं। कुछ रोगियों में ये बगलों में एवं स्त्रियों के स्तनों के नीचे भी पाए जाते हैं। अधिकतर गंदगी रखने वाले लोगों में ही ऐसे मस्से होते हैं। ये मस्से छोटे आकार एवं गुलाबी रंग के होते हैं। संभोग के दौरान इन मस्सों का विषाणु संक्रमण कर सकता है।
मस्से का उपचार
होमियोपैथी चिकित्सा में ‘मस्सों’ को साइकोसिस नामक वर्ग में रखा गया है। यदि मस्सों को बाहरी लेपों द्वारा हटाने का प्रयत्न किया जाए, तो होमियोपैथी सिद्धांत के अनुसार शरीर के अंदर अधिक महत्त्वपूर्ण अंगों में हो रहे परिवर्तनों को ठीक नहीं किया जा पाएगा, वरन् त्वचा से स्थानांतरित होकर ये बाहरी परिलक्षित लक्षण मुख्य अंगों को अपनी गिरफ्त में ले लेंगे और मस्से तो बाहरी तौर पर ठीक हो जाएंगे, किंतु अंदरूनी तौर पर अन्य बीमारियां उत्पन्न हो जाएंगी।
मस्से का त्वचा का उभार पालिप (श्लेष्मा झिल्ली का उभार, किसी भी हिस्से पर) त्वचा की एपिथिलियम परत से उठने वाली कोशिका-वृद्धि, घाव, ऊतक का सड़ाव, अधिकतर जननांगों एवं टट्टी की जगह पर बदबूदार पसीना, सूखी त्वचा, भूरे धब्बे जननेन्द्रियों में भयंकर दर्द, ग्रंथियों का बढ़ जाना, नाखून टेढ़े-मेढ़े, सिर्फ ढके भागों पर ही धब्बे, खुजलाने के बाद परेशानी बढ़ जाना, छूने पर भी दर्द होना, हाथों एवं बांहों पर भूरे धब्बे, रात में एवं बिस्तर की गर्मी में परेशानी बढ़ जाना,सुबह एवं शाम को 3 बजे परेशानी बढ़ना, बाई करवट लेटने पर आराम मिलना, मन में ऐसा भय रहना, जैसे कोई अजनबी उसके सिरहाने खड़ा है, जैसे उसका शरीर और आत्मा अलग हो गए हैं आदि लक्षण मिलने पर ‘थूजा’ अत्यंत लाभप्रद है। इसमें 200 शक्ति तक की दवा का प्रयोग लाभकारी है।
शून्यता होना,जोड़ों में दर्द, ठंडी सूखी हवा में परेशानी बढ़ना, गाड़ी में चलने पर परेशानी बढ़ना, बारिश में एवं नमीदार मौसम में आराम मिलना, बिस्तर की गर्मी से आराम मिलना, परेशानियों के बारे में सोचते रहना, सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार आदि लक्षण मिलने पर 200 व 1000 शक्ति तक की ‘कॉस्टिकम’ दवा अत्यंत उपयोगी है।
• जो मस्से सींग जैसे नुकीले व कड़े हों, उनके लिए ‘कैल्केरिया कार्ब, जो मस्से आड़े – टेढ़े हों और जिनसे खून निकलता हो, उनके लिए ‘नाइट्रिक एसिड’, छूने से दुखें तो ‘नेट्रमफॉस’, जिनकी दाढ़ी में मस्से हो जाते हैं, उनके लिए ‘कास्टिकम’ बहुत अच्छी दवा है। इन दवाओं की 200 शक्ति में 5-6 गोली की एक खुराक, सुबह-शाम लेनी चाहिए। हाथों में कहीं मस्से हों, तो ‘कालीम्यूर’ 3 × दवा खाना और इसी को पानी में घोलकर लगाना चाहिए।
• चिकने मस्से होने पर ‘डल्कामारा’ व ‘एण्टिमकूड’ 200 शक्ति में तीन खुराक लेना ही पर्याप्त रहता है।