विवरण – चाय, कॉफी, तम्बाकू, शराब आदि का सेवन, अत्यधिक मैथुन, अत्यधिक परिश्रम, अग्निमान्द्य अथवा उछलने-कूदने के कारण अथवा किसी अन्य बीमारियों के साथ भी कभी-कभी हृदय में कम्पन प्रकट होता है। सीने में अस्थिरता, मानसिक अस्थिरता और धड़कन तथा भय-ये उपसर्ग इस रोग में प्रकट होते हैं।
यह बीमारी प्राय: बिना किसी औषधोपचार के ही ठीक हो जाती है । जिन कारणों से यह रोग हुआ हो, उसे दूर कर, रोगी को पूर्ण विश्राम कराना चाहिए तथा पौष्टिक, परन्तु हल्का पथ्य देना चाहिए।
आवश्यक होने पर लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियों का प्रयोग भी किया जा सकता है :-
ऐकोनाइट 3, 30 – भय अथवा बेचैनी के कारण होने वाली बीमारी में इसका प्रयोग करें ।
स्पाइजीलिया 6, 30 – तम्बाकू आदि मादक-पदार्थों का सेवन करने के कारण होने वाली हृदय की धड़कन, मन का दु:खी होना, स्नायविकता के लक्षणों तथा हृदय की बनावट में कोई भारी क्षति न पहुँची हो तो इसका प्रयोग करना चाहिए।
कैक्टस Q, 3 – थोड़ी-सी उत्तेजना से ही दिल में धीमा-धीमा दर्द होने लगना, ऐसा प्रतीत होना जैसे – हृदय को लोहे के शिकंजे में जकड़ दिया गया हो, बायीं ओर लेटने से दिल की धड़कन का बढ़ जाना, श्वास-कष्ट, दिल में ऐसी चुभन होना-जिसके कारण चीख निकल पड़े, काँटा चुभने जैसा दर्द तथा रोगी का जोर से रोना – इन लक्षणों में हितकर हैं।
क्रेटेगस 6, 30 – स्नायविक-उत्तेजना के कारण दिल की धड़कन बढ़ जाने पर इसका प्रयोग करें।
लिलियम टिग्रिनम 30 – ऐसा अनुभव होना, जैसे – हृदय को किसी चिमटे से पकड़ कर जकड़ रखा हो। सम्पूर्ण शरीर में हृदय का स्पन्दन होना, छाती पर बोझ का अनुभव, हृदय-प्रदेश में दर्द तथा डंक मारने जैसा अनुभव, गुदा तथा मूत्राशय पर दबाव का अनुभव, स्त्री को ऐसा अनुभव होना कि यदि वह अपने जननांगों को हाथ से दबाये न रहे तो वे सब बाहर निकल पड़ेंगे – इन लक्षणों वाले हृदय-स्पन्दन में हितकर है ।
जेल्सिमियम 30, 200 – पाकाशय में वायु का संचय, सिर-दर्द, कम्पन, हाथ-पाँवों का ठण्डा तथा सुन्न हो जाना एवं बुरे स्वप्न देखना – इन लक्षणों से युक्त हृदय-स्पन्दन में लाभकारी हैं ।
चायना 30, 200 – कमजोरी अथवा किसी बीमारी के बाद होने वाले हृदय-स्पन्दन में यह औषध लाभ करती हैं ।
आर्निका 6, 30 – चोट लगने आदि के कारण रोग होने पर इसका प्रयोग हितकर रहता है।