सर्दी लगना, पानी में भीगना, गले में धुंआ अथवा धूलि के कण चले जाना, जोर से गाना या व्याख्यान देना, सीलन भरी जगह में रहना तथा हवा की गति का अचानक बदल जाना – इन कारणों से ‘स्वर-यन्त्र-प्रदाह’ की बीमारी होती है ।
गले की दुखन में भी शोथ के लक्षण प्रकट होते हैं, परन्तु ‘गले के शोथ’ (Laryngitis) में मुख्य लक्षण खाँसी उठने का रहता है । गले की खाँसी उठने के स्थान हैं-(1) तालु अथवा गल-कोष (Pharynx) (2) गले के नीचे का गड्ढा (Supra Sternal Possa) (3) वायु-नली (Bronchi) तथा स्वर यन्त्र (Larynx) । यहाँ पर स्वर-यन्त्र (Larynx) को शोथ तथा उससे उठने वाली खाँसी के विषय में लिखना ही हमारे लिए अभिप्रेत है। यह खाँसी (1) नयी तथा (2) पुरानी – दो प्रकार की होती है । स्मरणीय है कि इस खाँसी की उत्पत्ति का मूल कारण गले (स्वर-यन्त्र) का शोथ ही है। जब शोथ ठीक हो जाता है, तब खाँसी अपने आप दूर हो जाती है। स्वर-यन्त्र की श्लैष्मिक-झिल्ली की सूजन तथा उसमें से लसदार श्लेष्मा निकलने को ही ‘स्वर-यन्त्र-प्रदाह’ कहते हैं ।
स्वर-यन्त्र की नयी खाँसी (Acute Laryngitis)
स्वर-यन्त्र के शोथ के कारण उत्पन्न नयी खाँसी में निम्नलिखित औषधियाँ लाभ करती हैं:-
एकोनाइट 3x, 30 – डॉ ज्हार के मतानुसार यह स्वर-यंत्र के शोथ की मुख्य औषध है । क्योंकि खाँसी में दर्द तथा श्वासकष्ट का केन्द्र स्वर-यंत्र ही होता है।
स्पंजिया 3x, 3 – यदि ‘एकोनाइट’ देने पर छ: घण्टे के भीतर ही लाभ न हो और कुकर खाँसी जैसे लक्षण हों, गला बैठ गया हो तथा आवाज न निकलती हो तो इस औषध का आधा-आधा घण्टे के अन्तर से प्रयोग करें तथा लाभ दिखायी दोने पर औषध देना बन्द कर दें । श्वास लेने में कष्ट तथा आधी रात के समय रोग बढ़ना इन लक्षणों में दें ।
कालि-बाई क्रोम 3x, 6, 30, 200 – यदि सूतदार, गोंद जैसा गाढ़ा तथा पीला कफ कठिनाई से निकलता हो तो इसे आधा-आधा घण्टे के अन्तर से ‘3 अथवा 3x’ शक्ति में देना चाहिए, अथवा ’30 शक्ति’ वाली औषध की दिन में 2-3 मात्राएं देनी चाहिएं।
हिपर-सल्फर 3 – कफ ढीला हो जाने के बाद भी यदि गले में ही पड़ा रहे, गले की आवाज बिगड़ी रहे तथा खाँसी में घरघराहट हो तो इस औषध को प्रति दो घण्टे के अन्तर पर देने से लाभ होता है । सूखी-ठण्डी हवा लगने पर रोग में वृद्धि तथा गर्मी लगने पर कम होने के लक्षणों में लाभकारी है ।
आयोडीन 3 – बच्चों की सूखी, कड़ी, कुकर खाँसी, स्वर-भंग, श्वास-कष्ट तथा गले में कुछ अटका होने जैसा अनुभव में यह औषध हितकर है।
ओपियम 1x – वायु-नलियों के ऊपरी अंश पर रोग का हमला हुआ हो और बालक अपने गले को दबा कर पकड़ लेता हो तो इसे देने से लाभ होता है।
बेलाडोना 3 – कुत्ता भूकने जैसी खाँसी, तीव्र-ज्वर, औंघाई, आँख की पुतली फैली अथवा सिकुड़ी हुई, चेहरा लाल तथा तमतमाया हुआ, गले में दर्द, प्रलाप एवं शरीर के ढँके हुए भाग में पसीना आना-इन लक्षणों में हितकर है।
आर्सेनिक 3x, 6 – अत्यन्त कमजोरी एवं सन्निपातिक ज्वर के लक्षणों के साथ स्वर-प्रदाह हो तो इसे देने से लाभ होता है ।
कास्टिकम 6 – स्वर-भंग तथा सीने में दर्द के साथ वाले स्वर-यन्त्र-प्रदाह में इसे दें ।
फास्फोरस 3 – स्वर-यन्त्र-प्रदाह के कारण स्वर-भंग में हितकर है ।
स्वर-यन्त्र की पुरानी खांसी (Chronic Laryngitis)
स्वर-यन्त्र की पुरानी खाँसी में निम्नलिखित औषधियाँ लाभ करती हैं :-
एण्टिम-टार्ट 6 – यदि कफ घड़घड़ाता हो तथा ढीला हो एवं जीभ पर दूध के लेप जैसी सफेदी चढ़ी हो तो इसे देना चाहिए ।
कास्टिकम 3, 6, 30 – स्वर-यन्त्र की पुरानी खाँसी में यदि गले से आवाज न निकलती हो, गले की नसें कमजोर हो गयी हों, कफ गाढ़ा हो तथा खाँसते-खाँसते पेशाब लग आता हो तो-इन लक्षणों में यह दवा लाभ करती है। व्याख्यान-दाताओं के स्वर-यन्त्र-प्रदाह में भी हितकर है ।
मैंगेनम 3, 30 – गला बैठ गया हो, स्वर-यन्त्र में खुश्की हो, गला खुरदरा सा सिकुड़ा सा हो, गले से कफ का निकलना कठिन हो जाता हो, गले में ऐसी चुभन होती हो, जो कान तक पहुँचती हो तथा स्वर-यन्त्र की टी. बी.- इन लक्षणों में।
कालि बाई क्रोम 2x, 3, 30, 200 – कठिनाई से निकलने वाला सूतदार कफ, जो भीतर चिपटा हुआ हो-ऐसे लक्षणों वाले स्वर-यन्त्र की खाँसी आदि में ।
हिपर-सल्फर 6 – स्वर-यन्त्र से सूखी खाँसी उठना, खाँसने पर पीला कफ निकलना तथा स्वर-यन्त्र का रुँधा हुआ सा प्रतीत होना-इन लक्षणों में हितकर है ।
गाने-बजाने वाले व्यक्तियों का गला बैठ जाने पर यह औषध तुरन्त ही अपना प्रभाव प्रदर्शित करती हैं ।
लैकेसिस 30 – गले की अत्यधिक स्पर्श-असहिष्णुता, सैलाइबा अथवा द्रव पदार्थों को निगलने में कठिनाई, गले के बाँयें हिस्से में टॉन्सिल हो जाना तथा टॉन्सिलों का पुराना रोग, जिसके कारण रोगी को बार-बार ‘खों-खों’ करने की आवश्यकता पड़ती हो, तथा गर्म पेय पीने में कष्ट का अनुभव होने पर इसे दें । ‘एकोनाइट, स्पंजिया तथा हिपर’ देने के बाद भी यदि स्वर-यन्त्र की खाँसी में लाभ न हो तो इसे देने से लाभ होता है।
आर्स-आयोड 3x – स्वर-यन्त्र की पुरानी खाँसी में यदि तपैदिक का सन्देह हो तो इस औषध को 2 ग्रेन की मात्रा में, खाने के तुरन्त बाद, प्रति 8 घण्टे के अन्तर से देना चाहिए ।
फास्फोरस 30 – गले में खराश तथा सूखी खाँसी, रक्त की कमी के कारण गले का पीला पड़ जाना, गले के नीचे की वायु-नलियों तक से खाँसी उठना तथा
गहरा खाँसने की अवश्यकता पड़ना-इन लक्षणों में हितकर है।
कार्बो-वेज 6, 30 – पोषण-क्रिया में कमी तथा शक्ति-हीनता के कारण वृद्ध लोगों की पुरानी खाँसी, जो जुकाम से आरम्भ होकर स्वर-यन्त्र तथा छाती में जम गयी हो और जिसे ‘तपैदिकी’ कहा जा सकता हो, उसमें यह लाभकारी है ।
वैसीलीनम 200, 1M – वृद्ध लोगों की पुरानी तथा अन्य प्रकार की खाँसी में इसकी एक मात्रा 10-15 दिन के अन्तर से देनी चाहिए तथा लाभ होता दिखायी देने पर बन्द कर देनी चाहिए ।
कालि-आयोड Q, 30 – उपदंश-रोग की तृतीयावस्था में स्वर-यन्त्र-प्रदाह होने पर इसके मूल-अर्क को 5 से 10 ग्रेन तक की मात्रा में देना चाहिए।
ड्रोसेरा 2x, 6 – बहुत समय तक सूखी खाँसी उठना, जिसमें दम रुकने को हो जाय, गले को किसी के द्वारा छील दिये जाने की जैसी अनुभूति, आवाज में गम्भीरता तथा अस्वाभाविकता एवं बोलते समय गले में तकलीफ होना-इन सब लक्षणों में हितकर है ।
आर्निका 3 – स्वर-यन्त्र के अत्यधिक प्रयोग (व्याख्यान देना आदि) के कारण उत्पन्न हुई बीमारी में हितकर है ।
आर्जेण्टम-मेट 6x वि० 6 – गाने वालों के पुराने स्वर-यन्त्र-प्रदाह में लाभकारी है।
एल्यूमेन 6 – वृद्ध लोगों के पुराने स्वर-यन्त्र-प्रदाह में हितकर है।
सैलेनियम 6 – यह भी वृद्ध पुरुषों के पुराने ‘स्वर-यन्त्र-प्रदाह’ के कारण स्वर-भंग होने में लाभकारी है ।
खूब गरम पानी में कपड़ा भिगोकर, उसे भली-भाँति निचोड़ लें, तत्पश्चात उसे गले पर रखें, इससे स्वर-यन्त्र-प्रदाह में लाभ होता है। शरीर को गरम कपड़े से ढँके रखना चाहिए । गरम पानी अथवा दूध पीना लाभकारी रहता है ।
विशेष – रोग की न्यूनाधिकता के अनुसार 15 मिनट से लेकर 3 घण्टे के अन्तर से औषधियाँ देनी चाहिए।