विवरण – ऋतुकाल के अतिरिक्त अन्य समय में यदि योनि से थोड़ा-बहुत रक्त-स्राव होता रहे तो उसे ‘जरायु का रक्तस्राव’ कहा जाता है। इसका मासिक-धर्म के स्राव से कोई सम्बन्ध नहीं होता । इसमें अति रजः की भाँति थोड़ा बहुत रक्त भी आ सकता हैं ।
चोट लगना, जरायु में अर्बुद अथवा प्रसवोपरान्त फूल न निकलना आदि कारणों से यह रोग होता है । इसके मुख्य लक्षण हैं – भूख न लगना, सुस्ती तथा बैठ जाने पर उठ न पाना आदि ।
चिकित्सा – इसमें लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभ करती हैं:-
सैबाइना 3x – रुक-रुक कर दर्द के साथ होने वाले चमकीले रक्तस्राव के लक्षणों में भी इसे दें ।
सिकेल 3 – गर्भस्त्राव अथवा प्रसव के बाद होने वाले इस रोग में दें ।
आर्निका 3x – यदि चोट लगने के कारण ऐसा हो तो इस औषध का प्रयोग करना चाहिए ।
फाइकस-रिलीजियोसा 1x – अतिरज:, चमकीला, लाल रक्त-स्राव तथा तलपेट में प्रसव जैसा दर्द होने पर इसे दें ।
विनका माइनर 3 – रजोनिवृत्ति के बाद भी बहुत दिनों तक अधिक खून जाते रहने पर इसे दें ।
कैमोमिला 3, 6 – काले ढेले जैसे रक्त स्राव के साथ अत्यधिक दर्द होने पर इसका प्रयोग करें ।
थ्लैस्पि-वार्सा-पैक्टोरिस Q, 3x – कष्टकर बीमारी में जब किसी अन्य औषध से लाभ न हो, तब इसे दें ।
पुरानी बीमारी में निम्नलिखित औषधियों का लक्षणानुसार प्रयोग करना चाहिए :- सीपिया 30, सल्फर 30, आर्ज-नाई 6, हायोसायमस 6 ।
जरायु में रक्त-संचय हो तो कैल्के-कार्ब 3 तथा कार्बो-वेज़ 30 हितकर है।