गर्भावस्था में उल्टी (वमन), मितली तथा मुँह में पानी आने के उपसर्ग प्राय: प्रात:काल बढ़ते हैं। ये उपसर्ग कुछ दिनों कर रहने के बाद स्वयं ही दूर हो जाते हैं, परन्तु यदि सहज ही दूर न हों तो लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ दें :-
इपिकाक 30, 200 – लगातार जी मिचलाना तथा उल्टी होना, उल्टी होने के बाद भी जी मिचलाते रहना – इन लक्षणों में इस औषध की दो-चार मात्राओं से ही बहुत राहत मिल जाती है । जी मिचलाने की यह मुख्य औषध है ।
सीपिया 30, 200 – प्रात:काल भोजन से पूर्व जी मिचलाना तथा खाना खाने के बाद उल्टी करने की इच्छा होना, भोजन की गंध से अथवा भोजन को देखते ही जी मिचलाने लगना, हर वस्तु का नमकीन स्वाद आना – इन लक्षणों में हितकर है।
टैबेकम 30 – रात-दिन जी कच्चा-कच्चा होते हुए भी उल्टी न होना ।
कोलचिकम 3, 30 – रसोईघर की गन्ध से ही जी मिचलाने लगना, अनेक वस्तुओं को खाने की इच्छा तो होना, परन्तु उन्हें हाथ में लेते ही जी मिचलाने लगना तथा पेट का बर्फ की भाँति ठण्डा अनुभव होना-इन लक्षणों में इसे दें ।
एपोमार्फिया 3, 6 – उबकाई के साथ सिर-दर्द, छाती में जलन होने पर दें ।
सिम्फोरिकार्पस रेसिमोसा 3x, 3, 200 – लगातार जारी रहने वाली भयानक वमन, मुँह में पानी भर आना तथा भोजन या उसकी गन्ध के अरुचि, मुँह कड़वा हो जाना तथा निरन्तर उल्टी होना – इन लक्षणों में इसे दें ।
नक्स-वोमिका 1x तथा ऐण्टिम-क्रूड 6 – गर्भावस्था में खाना खाने के बाद तुरन्त उल्टी हो जाना तथा अन्य समय भी उल्टी आने के लक्षण में इन दोनों औषधियों को पर्यायक्रम से देने पर लाभ होता है ।
विशेष – इस रोग में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियों का प्रयोग भी हितकर सिद्ध होता है :- क्रियोजोट 6, ऐलेट्रिस फेरिनोसा Q, 3 ।