इस पोस्ट में हम समझेंगे कि होमियोपैथी दवा का चुनाव किस प्रकार करें, रोगी के किस किस लक्षण पर ध्यान दें और दवा के चुनाव से पूर्व रोगी के क्या-क्या प्रश्न पूछने चाहिए, लेख को पूरा अवश्य देखें ताकि आप पूरी तरह से समझ सकें, तो आइये समझते हैं :-
होम्योपैथिक औषधि का चुनाव करते समय निम्न बातों का विशेष ध्यान रखें –
1. मानसिक लक्षण – जैसे भय, अकेला रहने की इच्छा, निराशा, उत्तेजना, जल्दबाजी, रोने की प्रवृत्ति, ईर्ष्या, चिड़चिड़ाहट, क्रोध, किसी काम की सनक, चुपचाप रहना अथवा अधिक बोलना, संगीत के प्रति रुचि अथवा अरुचि आदि।
2. लक्षणों का स्थान – जैसे सिर दर्द है, तो सिर के किस हिस्से में है या पेट दर्द है, तो पेट की दाईं ओर है या बाईं ओर, शरीर का दायां भाग ज्यादा प्रभावित रहता है या बायां या आगे का भाग या पीछे का आदि।
3. लक्षणों का अनुभव – रोगी लक्षणों को कैसे अनुभव करता है अर्थात् यदि सिर में दर्द है, तो यह तीव्र है या हलका, सिर फटा जा रहा है अथवा जलन महसूस हो रही है या सिर में ऐसा महसूस हो रहा है, जैसे हथौड़े बज रहे हों या कीलें चुभ रही हों आदि।
4. लक्षणों की घटना-बढ़ना – अर्थात् कोई लक्षण किस समय बढ़ता है, कब घटता है, उदाहरण के तौर पर यदि सिर दर्द है, तो कब प्रारम्भ होता है, किस समय अधिक होता है, किस समय घटता है, किस प्रकार बढ़ता-घटता है अर्थात् उठने, बैठने, लेटने, चलने, खाने-पीने, बोलने, खांसने, दबाने आदि पर बढ़ता है या घटता है आदि।
5. इन सबके अलावा यह भी ध्यान रखना चाहिए कि किसी एक रोग (लक्षण) के कारण या साथ ही अन्य लक्षण भी तो प्रकट नहीं होते। जैसे यदि कब्ज है तो सिर दर्द तो नहीं रहता या कब्ज होने पर ही सिर दर्द होता है और कब्ज दूर होने पर सिर दर्द नहीं रहता आदि।
6. रोगी की प्यास कैसी है, भूख लगती है या नहीं, नींद आती है या नहीं, पाखाना ठीक होता है या नहीं आदि लक्षणों पर भी गौर करना अत्यंत आवश्यक होता है।
7. होमियोपैथिक चिकित्सा में सपनों का भी विशेष महत्त्व है जैसे डरावने सपने, जंगली जानवरों के सपने, कोई एक सपना ही लगातार दिखाई दे आदि लक्षणों पर भी गौर करना चाहिए।
8. मानसिक लक्षणों में यह भी गौर करना आवश्यक है कि व्यक्ति को भूत-प्रेत का तो डर नहीं रहता, अपने को हवा में तैरता तो महसूस नहीं करता, ऐसा तो नहीं महसूस होता कि सोते समय उसके बिस्तर पर कोई और तो नहीं सो रहा है या उसका शरीर कांच का बना है या रोगी में मरने की प्रबल इच्छा तो नहीं है, आत्महत्या की प्रवृत्ति तो नहीं है, प्रेम निराशा तो नहीं है या किसी दुखद सदमे का तो शिकार हुआ है या नहीं आदि।
9. रोगी को अधिक ठंड या अधिक गर्मी लगती है, रोगी पतला-दुबला है या मोटा-तगड़ा है, स्त्री सुंदर है या बदसूरत है, रोगी सफाई पसंद है या गंदगी में ही रहता है, बच्चा जिद्दी है या रोता ही रहता है आदि लक्षणों का भी विशेष महत्त्व होता है। व्यक्ति के शरीर से किस प्रकार की बदबू आती है, उसके स्रावों से किस प्रकार की दुर्गंध आती है, व्यक्ति झगड़ालू प्रवृत्ति का तो नहीं है, पाखाने-पेशाब का रंग कैसा है, उल्टी का रंग कैसा है, प्रदर किस रंग का है आदि लक्षणों पर भी गौर करना आवश्यक होता है।
इन सबके बाद ही रोग के चारित्रिक लक्षणों का मिलान करके उपयुक्त औषधि का चुनाव करना रोगी के पूर्ण स्वस्थ होने के लिए आवश्यक है और इस प्रकार चुनी गई औषधि की विधि के अनुसार सेवन करने के बाद व्यक्ति सदैव ही निरोगी बना रहता है। यही होमियोपैथिक चिकित्सा पद्धति की विशेषता है और इन्हीं कारणों से यह चिकित्सा पद्धति अन्य चिकित्सा पद्धतियों से सर्वथा भिन्न एवं श्रेष्ठ ही नहीं, बल्कि ‘सर्वश्रेष्ठ’ है।