मानव शरीर का ढांचा वास्तव में अस्थियों से ही बनता है, तो भी हम पाते हैं कि उन अस्थियों पर लगी हुई मांसपेशियाँ ही मनुष्य को उचित स्वरूप प्रदान करती हैं तथा उस अवस्था में उस ढांचे में गति उत्पन्न होती है। मांस-पेशियाँ ही वे पदार्थ हैं जिनसे मनुष्य की शक्ति को आंका जाता है। जितनी दृढ़ एवं मजबूत मांस-पेशियाँ होंगी, उतनी ही उस व्यक्ति की शक्ति अधिक होगी।
हमारा सारा शरीर मांस से ढका हुआ है। यदि आप किसी मृत मनुष्य के शरीर के ऊपर से चमड़ी और दूसरे तन्तु हटा दें तो उसके बीच मांस के टुकड़े से मिलेंगे। मांस के टुकड़े ही ‘ मांसपेशियाँ ‘ कहलाती हैं। हमारे शरीर में कुल वजन का दो तिहाई भाग इन्हीं (मांसपेशियों) का ही होता है। शरीर के भाग के 100 भागों में 42-43 भागों में ये ही समाई हुई हैं। इससे भरा हुआ शरीर सुन्दर और सुडौल होता है। जब किसी रोग में (जैसे तपेदिक में) ये सूख जाती हैं तब शरीर कुरूप और भद्दा लगने लगता है।
मांसपेशियाँ – ये मांस के हजारों रेशों से मिलकर बनती हैं। ये कहीं पर मोटी होती हैं और कहीं पर पतली, किसी जगह पर लम्बी हैं तो किसी स्थान पर चपटी । यही मांसपेशियो की रचना (Anatomy of Muscles) है। हाथ और पैरों की मांसपेशियाँ बीच में से मोटी और सिरे पर से पतली होती हैं, किन्तु पेट और पसलियों की मांसपेशियाँ पतली होती हैं । आपको सम्भवत: यह जानकर आश्चर्य होगा कि हमारे शरीर में छोटी-बड़ी सब मिलाकर 519 मांसपेशियाँ होती हैं।
(1) पराधीन या ऐच्छिक मांसपेशियाँ (Voluntary Muscles)
(2) स्वाधीन या अनैच्छिक मांसपेशियाँ (Involuntary Muscles)
पराधीन मांसपेशियाँ – जो मांसपेशियाँ अस्थियों से लगी रहकर मानव के (हमारी) मर्जी अर्थात् इच्छा के मुताबिक कार्य करती हैं उन्हें पराधीन मांसपेशियाँ कहा जाता है। पराधीन पेशियाँ हमारे वश में हैं अर्थात् हमारे अधीन हैं। ये हमारी इच्छा के अनुसार काम करती हैं। हमारी इच्छा है कि हम चाहे लिखें या बैठ जायें अथवा खायें या पियें। इन पेशियों से काम लेना हमारे अपने हाथ में है क्योंकि यह हमारे अधीन हैं। इसीलिए यह पराधीन पेशियाँ कहलाती हैं।
स्वाधीन मांसपेशियाँ – जो मांसपेशियाँ हमारे शरीर के भीतरी यन्त्रों से लगी रहती हैं और अपनी इच्छा के अनुसार काम करती हैं उन्हें ‘स्वाधीन पेशियाँ’ कहते हैं। ये स्वाधीन मांसपेशियाँ अपना काम हमारी इच्छा (मर्जी) के बिना ही करती रहती हैं। यह हमारी मर्जी के सम्बन्ध में कुछ भी नहीं सुनती हैं। हमारा भोजन पचता रहता है, साँस चलती रहती है, दिल धड़कता ही रहता है। यदि हम इनको रोकना चाहें तो रोक नहीं सकते हैं ये अपने आप ही अपना कार्य करती रहती हैं। ये आमाशय (Stomach), अन्त्र (Intestines), अन्ननली (Food Pipe) और तिल्ली (spleen) इत्यादि में होती है।
मांसपेशियों के कार्य – इन मांसपेशियों के कारण ही हमारा शरीर सुडौल और भरा-पूरा दिखाई देता है। यदि ये न हों तो हमारा शरीर जीर्ण-शीर्ण एवं कंकाल मात्र दिखाई देगा । इनसे शरीर शक्तिशाली बनता है। इनसे शरीर को शक्ति मिलने के साथ-साथ गति (हरकत) भी मिलती है। चलना-फिरना, उठना-बैठना, खाना-पीना, बोलना आदि समस्त शारीरिक क्रियायें इनकी सहायता से होती हैं। इसके अतिरिक्त इनसे शरीर को बहुत कुछ गर्मी भी मिलती है।