आयुर्वेद में इसे ‘योषापस्मार’ के नाम से जाना जाता है। योषा शब्द स्त्रीवाचक है और अपस्मार मिर्गी का घोतक। यह रोग अविवाहित स्त्रियों को अधिक होता है। इस रोग में मिर्गी के समान दौरे पड़ते हैं।
हिस्टीरिया के कारण
हिस्टीरिया के प्रमुख कारणों में पर पुरुष से बलात्कार के कारण उत्पन्न खौफ, प्रेम में असफलता, काम वासना में अतृप्ति, प्रेमी से बिछुड़ना, शारीरिक मानसिक परिश्रम न कर आराम तलब जिंदगी गुजारना, अत्यंत भोग-विलास में जीवन व्यतीत करना, अश्लील साहित्य पढ़ना, उत्तेजक फिल्में देखना, श्वेत प्रदर से लंबे समय तक पीड़ित रहना, बांझपन, डिंबाशय व जरायु रोग, नाड़ियों की कमजोरी, आकस्मिक मानसिक आघात, मासिक धर्म का रुकना, कष्टपूर्ण मासिक धर्म, सास-बहू आदि परिवार के सदस्यों से तालमेल न बैठना, सामाजिक एवं पारिवारिक बंधनो में बांधना, चिंता, भय, शोक, मानसिक तनाव, अत्यधिक भावुक प्रकृति का होना, पति का वृद्ध, छोटा, बीमार होना या अन्य स्त्री से प्रेम का चक्कर, लम्बे समय तक पति से दूर रहना, संभोग करने का मौका न मिलना, जवानी बीत जाने पर भी विवाह न होना, असुरक्षा की भावना, बुद्धि की कमी, किसी गुप्त पाप को मन में दबाये रखना आदि होते हैं।
हिस्टीरिया के लक्षण
इस रोग के लक्षणों में रोगिणी को दौरा पड़ने से पूर्व आभास होने लगता है, लेकिन जब दौरा पड़ जाता है, तो उसे कुछ ज्ञान नहीं रहता। बेहोशी का दौरा 24 से 48 घंटों तक रह सकता है। मूर्च्छावस्था के दौरान ही झटके आते हैं, गले की मांसपेशियां जकड़ जाती हैं, मुट्ठी बंध जाती हैं, दांत भिंच जाते हैं, कंपकंपी होती है, श्वास लेने में तकलीफ होती है, सांस रूकती सी लगती है, पेट फूल जाता है, स्मृति का लोप हो जाता है, बहुत ज्यादा मात्रा में पेशाब होता है। इसके अलावा किसी किसी रोगी में हाथ-पैर पटकना, सांसे तेज चलना, ह्रदय की धड़कन अधिक बढ़ जाना, भयंकर सिर दर्द, बेचैनी, असंभव बातें बोलना, कभी रोना, कभी हंसना, कभी गाना, उलटी करना, आँखें नचाना, बाल और शरीर नोंचना आदि लक्षण भी देखने को मिलते हैं।
हिस्टीरिया में क्या खाएं
- गेहूं की रोटी, पुराना चावल, दलिया, मूंग की दाल, मसूर की दाल भोजन में खाएं।
- फलों में पपीता, अंजीर, खीरा, संतरा, मौसमी, अनार, बेल के फल का सेवन करें।
- आंवले का मुरब्बा सुबह-शाम के भोजन के साथ खाएं।
- गाय का दूध, नारियल का पानी, मट्ठा या छाछ पिएं।
- दूध में शहद मिलाकर 10-12 किशमिश के साथ सेवन करें।
- हिस्टीरिया में क्या न खाएं
- भारी, गरिष्ठ, बासी, तामसी भोजन न खाएं।
- ताली-भुनी, मिर्च-मसालेदार, चटपटी चीजें सेवन न करें।
- चाय, कॉफी, शराब, तम्बाकू, गुटखे से परहेज करें।
- गुड़, तेल, हरी-लाल मिर्च, खटाई, अचार न खाएं।
- मांस, मछली, अंडा आदि से परहेज करें।
हिस्टीरिया रोग निवारण में सहायक उपाय
हिस्टीरिया में क्या करें
- मानसिक कारणों का मनोवैज्ञानिक से विश्लेषण कराकर उपचार कराएं।
- सुबह घूमने जाएँ। नियमित हलका-फुलका व्यायाम करें।
- रोगिणी अविवाहित हो तो विवाह करवा दें।
- एक मोहल्ले से दूसरे या एक शहर से दूसरे शहर में स्थान परिवर्तन कराएं।
- रोगिणी से थोड़ा सख्त व्यवहार करें, लेकिन उसकी उपेछा न करें।
- पति-पत्नी में सुलह करवाएं।
- रोगिणी को दौरा पड़ने पर बदन के कपड़े ढीले कर दें। हवादार, साफ जगह में बिस्तर पर लिटाएं और सिर के नीचे तकिया लगा दें।
- बेहोशी रोगिणी के मुँह, आँखों पर ठंडे पानी के छीटें मारें।
- होश में लाने के लिए नाक के नथुनों में प्याज या लहसुन का रस या अमृतधारा या कपूररस की कुछ बूंदें टपकाएं।
- गर्भाशय संबंधी विकारों के कारण दौरे पड़ रहे हों, तो स्त्री रोग विशेषज्ञ से इलाज कराएं।
हिस्टीरिया में क्या न करें
- कब्ज या गैस बनने की शिकायत न होने दें।
- रोगिणी से अत्यधिक सहानुभूति न जतायें।
- अधिक मानसिक या शारीरिक परिश्रम तथा चिंता, भय, शोक न करें।
- मल-मूत्रादि के वेगों को न रोकें।
- एकांत निवास में रोगिणी को अकेला न छोड़ें।
- अश्लील साहित्य न पढ़ें और न ही ऐसी फ़िल्में देखें।
- घूम्रपान की आदत न पालें।