यह स्त्रियों में पाया जाने वाला एक ऐसा मानसिक रोग है जिसके प्रमुख
कारण स्त्रियों की यौन इच्छाओं की पूर्ति न होना, पति द्वारा अपनी स्त्री का परित्याग कर देना, युवा अवस्था में ही स्त्री का विधवा हो जाना या लम्बी उम्र तक शादी न होना आदि हैं । यों तो यह रोग कुछ अन्य कारणों से पुरुषों को भी हो सकता है परन्तु प्रायः स्त्रियों को ही होता है ।
पति के छोड़ देने या प्रियजन की मृत्यु आदि से उत्पन्न हिस्टीरियाइग्नेशिया ऐमेरा 200, 1M- यह सर्द प्रकृति की स्त्रियों की दवा है । इस दवा का उपयोग प्रायः हिस्टीरिया रोग में सफलतापूर्वक होता है परन्तु हिस्टीरिया के प्रमुख कारणों में प्रायः स्त्री को पति का साथ न मिलना या प्रियजन की मृत्यु आदि होते हैं । कभी-कभी लम्बी अवधि तक युवा स्त्रियों की शादी न होने से भी यह रोग उत्पन्न हो जाता है और ऐसी स्थिति में रोगिणी शोकाकुल रहने लगती है । इस दवा की विशेष क्रिया स्नायुमण्डल पर होती हैं । रोगिणी के पेट से एक गोला उठता है जो गले में फँसता हुआ महसूस होता हैं । रोगिणी थोड़ी देर में खुश तो कभी शोकमग्न हो जाती है। उसकी मानसिक अवस्था लगातार बदलती रहती है । रोगिणी को देखने पर ऐसा लगता है जैसे उस पर भूत-प्रेत का साया हो, परन्तु वास्तविकता यह है कि उसे हिस्टीरिया जैसे मानसिक रोग ने आ घेरा होता है । इस दवा की उच्चशक्ति देने से रोगिणी को इस रोग से मुक्ति मिल जाती है । रात में इस औषधि को देने से रोगिणी को बैचेनी बढ़ जाती है और नींद नहीं आती है, इसलिये इसकी दिन में ही देना उचित हैं ।
कोई भी बात मन में जकड़ी रहे या अन्य व्यक्ति के प्रेम के कारण उत्पन्न हिस्टीरिया- नैट्रम म्यूर 1M, 10M- इसकी रोगिणी का मन काबू में नहीं से प्रेम करने लगना या लड़कियाँ अपने नौकर आदि से, यह जानते हुये कि यह काम गलत है, प्रेम कर बैठती हैं तथा न मिलने पर उन्हें हिस्टोरिया हो जाता है । ऐसी अवस्था में इस दवा की कुछ मात्रायें देते रहने से उनकी मानसिकता बदल जाती है। यह सर्द एवं गर्म प्रकृति -दोनों के लिये उपयुक्त दवा है । इसकी रोगिणी को नमक खाने में अधिक पसंद होता है । रोगिणी दुबली-पतली व कमजोर, रक्तहीन होती है । परन्तु मैंने अपने अनुभव में पाया है कि यह दवा दुबली-पतली के अलावा मोटी स्त्रियों पर उतनी ही सफल सिद्धद्र होती है ।
नोट- नैट्रम म्यूर की उच्चशक्ति का प्रयोग गर्भवती महिलाओं पर नहीं करना चाहिये क्योंकि इस दवा की उच्वशक्ति से गर्भपात हो सकता है।
पेट में जिन्दा वस्तु या गोला घूमने का एहसास, रोगिणी क्रोधित हो नाचेगाये आदि- क्रोकस सैटाइवा-6x, 30- यह दवा केसर से बनती है तथा हिस्टीरिया रोग में बहुतायत से प्रयोग की जाती है । रोगिणी आनन्दित होकर कभी नाचती है तो कभी-कभी क्रोधित होकर दु:खी हो जाती है । पेट में कोई गोला या जिन्दा वस्तु के घूमने-फिरने का अहसास होता है और यह लक्षण इस दवा का खास लक्षण है । ऐसी स्थिति में इस दवा को कदापि नहीं भूलना चाहिये ।। 30 शक्ति में देने पर यदि लाभ होने लगे तो 200 शक्ति की दवा प्रति सप्ताह देनी चाहिये ।
पेट से गोला उठकर गले तक बढ़ने का अहसास व उसी स्थिति में दौरा पड़ना- एसाफिटिडा 1x, 30, 200- यह दवा हींग से बनती है । शक्तिकृत हींग में हिस्टीरिया रोग को ठीक करने का विशेष गुण है । इसके रोगी के पेट से एक गोला गले तक बढ़ता है व उसी स्थिति में उसे दौरे पड़ने लगते हैं। मुँह बन्द व दाँत जकड़ जाते हैं । ऐसी स्थिति में, प्रारम्भ में इस दवा की निम्नशक्ति बार-बार देनी चाहिये | धीरे-धीरे शक्ति बढ़ाई जा सकती हैं । दवा का प्रारम्भ 1x से करना अधिक उपयोगी सिद्ध होता है ।
बेहोशी, सम्पूर्ण शरीर कॉपना, हाथ-पैर अकड़ जाना- मॉस्कस टन 3, 6, 30- यह दवा मृग-नाभि की कस्तूरी है । चूंकि हिस्टोरिया की अवस्था में नाभि से ही गोला उठता हैं जो गले तक आता है और उसी स्थिति में हिस्टीरिया के दौरे शुरू हो जाते हैं । अतः ऐसी स्थिति में यह दवा श्रेष्ठ है । कभी-कभी रोगिणी त्चवा पर स्पर्श सहन नहीं कर सकती । डॉ० जेम्स का एक उदाहरण है- वे हिस्टीरिया रोग की चिकित्सा के लिये प्रसिद्ध थे। वे हिस्टीरिया से ग्रस्त महिलाओं को हर परिस्थिति में इग्नेशिया उच्चशक्ति व मॉस्कस निम्नशक्ति में देते थे और बीच-बीच में नैट्रम म्यूर उच्चशक्ति में दे दिया करते थे ।
वैसे मॉस्कस के लक्षणों में- ऐसी लड़कियाँ या पत्नियाँ जो ज्यादा लाड़ली रही हों, हिस्टीरिया के समय बेहोशी आये और सम्पूर्ण शरीर कॉपने लगे, मन में उत्तेजना रहे, हाथ-पैर अकड़े आदि प्रमुख हैं । डॉ० बर्ड का कहना है कि मॉस्कस मूल अर्क को पेट के उस भाग से, जहाँ से गोला प्रारंभ हो,उस भाग तक, जहाँ तक गोला उठने का अहसास हो- लगाना चाहिये। धीरे धीरे कुछ दिनों बाद केवल नाभि पर लगाने से उठने वाले गोले को यह दवा नाभि से आगे नहीं बढ़ने देती है । डॉ० बर्ड हिस्टोरिया रोग की चिकित्सा के लिये प्रसिद्ध थे ।