लक्षण तथा मुख्य-रोग | लक्षणों में कमी |
रंज से रोग, रुदनशीलता तथा चुपचाप एकान्त में दु:ख सहना; ठंडी आहें भरना – रुदनशीलता में इसकी पल्सेटिला तथा नैट्रम म्यूर से तुलना | गर्मी से रोग में कमी |
पुरुषों के लिये नक्स और स्त्रियों से लिये इग्नेशिया – मानसिक स्वभाव के सम्बन्ध में दोनों की तुलना | दर्द वाली जगह को दबाने से रोग में कमी |
मानसिक-लक्षणों का लगातार बदलना | ठोस वस्तु आसानी से निगल सकना, द्रव निगलने में कष्ट होना जो एक विचित्र-लक्षण है। |
लक्षणों का परस्पर विरोधी होना | |
हिस्टीरिया-रोग की महौषध-ग्लोबस हिस्टीरिकस | लक्षणों में वृद्धि |
ऐंठन, अकड़न | बाहरी हवा से रोग में वृद्धि |
सिर में कील धँस रहा-सा दर्द उठना और दर्द वाली तरफ लेटने से आराम | धूम्रपान से रोग में वृद्धि |
खाने पर भी पेट खाली महसूस होना | मानसिक आवेग से वृद्धि |
ज्वर में शीत-अवस्था में प्यास लगना | द्रव-वस्तु निगलने से कष्ट होना (विचित्र-लक्षण है) |
(1) रंज से रोग, रुदनशीलता तथा चुपचाप एकान्त में दु:ख सहना; ठंडी आहें भरना – रुदनशीलता में इसकी पल्सेटिला तथा नैट्रम म्यूर से तुलना – किसी शोक से या दु:ख से अगर मानसिक-रोग उत्पन्न हो जाय, तब यह सर्वोत्तम औषधि है। शोक तथा दु:ख में क्या फर्क है? किसी पति की पत्नी मर जाय, पत्नी का पति मर जाय, माता-पिता का बच्चा मर जाय, तब शोक होता है; किसी प्रेमी का प्रेमिका से विछोह हो जाय, प्रेमी से मिलना न हो सके, तब दु:ख होता है। शोक तथा दु:ख दोनों में रंज होता है, मन पर आघात पहुंचता है, और व्यक्ति एकान्त में बैठा शोक या दु:ख सहा करता है, सबसे अपने शोक या दु:ख की कहानी कहता नहीं फिरता, जी में घुटता है, बैठा-बैठा आंसू बहाया करता है, ठंडी आहें भरता है। इस प्रकार अपने रंज को अपने भीतर समेट कर अन्दर-अन्दर घुटते रहने और ठंडी आहें भरते रहने से रोगी को रात को नींद भी नहीं आती, छटपटाता है। घरों में रोज प्राय: ऐसे दृष्टांत पाये जाते हैं। लड़की है बड़ी समझदार, परन्तु न जाने क्यों उसका एक विवाहित व्यक्ति से प्रेम हो गया है। वह अपने मन को समझाती है, मन को कहती है – यह ठीक नहीं है, परन्तु मन नहीं मानता, दिन-रात उसी के प्रेम में डूबी रहती है। मां के सिवाय किसी से अपना दुखड़ा नहीं कहती। मां से कहती है: मां, मुझे क्या हो गया है, उस व्यक्ति को मैं अपने मन में से निकाल ही नहीं सकती। ऐसी रंजीदा मानसिक अवस्थाओं को यह औषधि शान्त कर देती है, रोगी दु:ख से छुटकारा पा जाता है, नींद भी आने लगती है। अगर रोग नया है तब तो बहुत जल्द मानसिक-स्थिरता आ जाती है, अगर पुराना हो गया है तो नैट्रम म्यूर रोग को ठिकाने लगा देता है। दु:ख जनित रोग अगर बहुत पुराना हो जाय, और रोगी अत्यन्त निर्बल हो जाय – तब ऐसिड फॉस लाभ करता है। अगर किसी रोगी का स्वभाव आहें भरना हो गया हो, तो उसके आधार में कोई नया या पुराना दु:ख जरूर छिपा होगा, और इनमें से किसी दवा से लाभ होगा।
रुदनशीलता में इग्नेशिया तथा पल्स की तुलना – ये दोनों औषधियां एक-समान दु:खी होती हैं, रुदनशील होती हैं. रंजीदा होती हैं, परन्तु इग्नेशिया तो अन्दर-अन्दर घुटती रहती है, पल्स में यह बात नहीं है। पल्स अपने दु:ख की कहानी सब को कहती फिरती है, और दूसरों की सहानुभूति पाने से उसका दु:ख घट जाता है।
रुदनशीलता में इग्नेशिया तथा नैट्रम म्यूर की तुलना – ये दोनों भी रुदनशील देवियां है। नैट्रम म्यूर अपने दु:ख के कारण दिन-रात रोया करती है, दु:ख को भुला नहीं सकती। स्वभाविक तौर पर लोग उसे दु:खी देख कर उसके साथ समवेदना, सहानुभूति प्रकट करने लगते हैं, परन्तु इस सहानुभूति को वह बर्दाश्त नहीं कर सकती, वह सहानुभूति पाकर कुद्ध हो उठती है, उसे सहानुभूति पाना बुरा लगता है। इग्नेशिया हाल के शोक, दु:ख में लाभकारी है, अगर रोग पुराना हो जाय, तो इसके स्थान में नैट्रम म्यूर और ऐसिड फॉस लाभकारी होते हैं। इग्नेशिया का क्रौनिक नैट्रम म्यूर है।
(2) पुरुषों के लिये नक्स और स्त्रियों से लिये इग्नेशिया – मानसिक स्वभाव के सम्बन्ध में दोनों की तुलना – हनीमैन का कथन है कि यद्यपि इन दोनों औषधियों में स्ट्रिकनिया है और दोनों की वानस्पतिक रचना एक सी है, तो भी इन दोनों के मानसिक स्वभाव में भेद है। डॉ० क्लार्क का कथन है कि यद्यपि इग्नेशिया के बीजों में नक्स (कुचला) के बीजों की अपेक्षा स्ट्रिकनिया की मात्रा ज्यादा होती है, स्ट्रिकनिया ज्यादा होने से नक्स की अपेक्षा इग्नेशिया के स्वभाव में तेजीं होनी चाहिये, तो भी इग्नेशिया की अपेक्षा नक्स का स्वभाव ज्यादा तेज होता है। इससे सिद्ध होता है कि औषधियों की रचना में क्या घटक-तत्त्व है – यह बात महत्व की नहीं है, महत्व की बात यह है कि औषधि का स्वस्थ-व्यक्ति पर ‘परीक्षण’ (Proving) से क्या प्रभाव पड़ता है, क्या लक्षण उत्पन्न होते हैं। स्वस्थ-व्यक्ति पर औषधि जो लक्षण उत्पन्न करती है; किसी भी रोग में वह औषधि उन लक्षणों को दूर करती हैं – यही होम्योपैथिक सिद्धान्त है।
लक्षणों के आधार पर यह देखा गया है कि स्नायु-प्रधान (Nervous) पुरुषों के रोगों के लिये नक्स तथा स्नायु प्रधान स्त्रियों के रोगों के लिये इग्नेशिया उपयुक्त है। परन्तु इन दोनों के मानसिक-लक्षण एक-दूसरे से भिन्न हैं। नक्स तेज मिजाज का है, बड़ा सावधान और ईर्ष्यालु प्रकृति का है, जोशीला है। उसे रुष्ट करना बहुत सहज है, और रुष्ट होते ही वह फौरन जवाब देता है, देर नहीं लगाता, बड़ा बुद्धिमान् होता है। इग्नेशिया भी बुद्धि में कम नहीं होती, बड़ी नाजुक मिजाज होती है, परन्तु नक्स से अधिक सहनशील होती है। छोटी-सी बात भी उसके जी को लग जाती है, परन्तु नक्स की तरह झट बदला लेने के स्थान में अपने दु:ख या अपमान पर चुपचाप बैठे सोचा करती है। वह एकान्त में जा बैठती है, रोती है, आहें भरती है, किसी से बोलती नहीं, और अपने वास्तविक या काल्पनिक दु:ख को अपने इष्ट मित्रों से भी छिपाये रखती है।
(3) मानसिक-लक्षणों का लगातार बदलना (Remedy of moods) – रोगी अभी हंस रहा है ही दूसरे क्षण रोने लगता है, तभी प्रसन्न अभी अप्रसन्न, अभी शान्त बैठा है कुछ देर बाद आग-बबूला हो उठता है, कहा नहीं जा सकता कि कब उसका मूड बदल जायेगा। लोग उसके पास जाते हुए घबराते हैं, समझ नहीं पाते कि उससे कैसे बात की जाय, क्योंकि उसकी मानसिक वृत्ति एक-सार नहीं रहती, हँसना-रोना, खुशी-रंज, शान्ति-क्रोध इनमें से कौन, कब उसे आ घेरेगा-यह कहा नहीं जा सकता। दूसरी कोई औषधि ऐसी नहीं है जिसमें इस प्रकार चित्त-वृत्ति का परिवर्तन होता रहे। ऐसी चित्त-वृति में यह औषधि लाभ करती है।
(4) लक्षणों का परस्पर विरोधी होना – इसमें विलक्षणता यह है कि इसमें परस्पर-विरोधी लक्षण पाये जाते हैं। जो लक्षण एक-दूसरे से मेल नहीं खाते, वे एक-दूसरे के साथ मिलते दीख पड़ते हैं। उदाहरणार्थ:
(i) सूजन में दबाने से आराम – चिकित्सक रोगी की सूजन को देखकर समझता है कि उसे छूएगा तो रोगी को दु:ख होगा, परन्तु वह आश्चर्य से देखता है कि सूजन को दबाने से रोगी को आराम आता है।
(ii) टांसिल में ठोस वस्तु के निगलने से आराम – गले की शोथ या टांसिल में रोगी कहता है कि जब वह ठोस वस्तु निगलता है तब उसे आराम मिलता है, जब पानी आदि द्रव वस्तु निगलता है तब दु:ख होता है। कितनी विरुद्ध बात है, परन्तु इसमें इग्नेशिया लाभ करता है। बैप्टीशिया में द्रव पीने से आराम और ठोस वस्तु खाने से दर्द होता है।
(iii) सिर-दर्द में दर्द वाली तरफ लेटने से आराम – रोगी को कनपटी में कील चुभने का-सा दर्द होता है और दर्द वाली तरफ लेटने से आराम मिलता है। कॉफ़िया और थूजा में भी सिर-दर्द में कील की-सी चुभन होती है।
(iv) अपच में गरिष्ठ पदार्थों से आराम – साधारणत: अपच के रोगी को सुपच पदार्थ खाने को दिये जाते हैं, परन्तु इस औषधि का रोगी जब अचानक कुछ अपच पदार्थ खा लेता है – कच्ची गोभी, कच्चा प्याज-तो उसका पेट ठीक हो जाता है। पेट एक तरह से हिस्टीरिया-ग्रस्त सा होता है।
(v) खांसने से खांसी का बढ़ना – प्राय: खांसने के बाद खांसी का वेग घट जाता है, परन्तु यह रोगी जब खांसता है तब खासता ही चला जाता है, खांसते-खांसते रोगी अकड़ जाता है। ऐसी अवस्था को यह औषधि दूर कर देती है।
(vi) शीतावस्था में ज्वर में प्यास – साधारण तौर पर ज्वर की जो शीतावस्था होती है उसमें सर्दी के कारण प्यास नहीं लगती। परन्तु इस औषधि के ज्वर में शीतावस्था में प्यास लगती है। ज्वर में यह इसका विचित्र लक्षण है।
(vii) खाने से पेट का खालीपन दूर न होना – खाने से पेट का खालीपन दूर हो जाना चाहिये, परन्तु इसमें खाने पर भी पेट खाली-का-खाली महसूस होता है।
(viii) कान में आवाजें आना, शोर-गुल से ठीक होना – जिन लोगों के कानों में आवाजें आया करती हैं उनमें अगर शोर-गुल से आवाजें आना बन्द हो जाय तो यह औषधि उपयुक्त है।
(ix) बवासीर में चलने-फिरने से आराम – बवासीर में चलने-फिरने से रगड़ लगती है और रोगी को कष्ट होना चाहिए, परन्तु इस औषधि में बवासीर की शिकायत में रोगी को चलने-फिरने से आराम महसूस होता है।
(x) दांत के दर्द में खाते समय आराम – दांत के दर्द में खाने से दर्द बढ़ता है, परन्तु इसमें रोगी जब खा रहा होता है, जब दांतों पर दबाव पड़ रहा होता है, तब उसे आराम लगता है, जब खा नहीं रहा होता तब दांतों में दर्द होता है।
(5) हिस्टीरिया-रोग की महौषध-ग्लोबस हिस्टीरिकस – डॉ० डनहम का कथन है कि कोई औषधि हिस्टीरिया के लक्षणों से इतनी अधिक नहीं मिलती जितनी यह औषधि मिलती है, इसीलिये हिस्टीरिया की यह महौषध है। डॉ० कैन्ट का कथन है कि हर हिस्टीरिया रोग को यह दूर नहीं करती, परन्तु ऐसी रोगिणों को यह ठीक कर देती है जो अत्यन्त बुद्धिमती हों, कोमल तथा मृदु स्वभाव की हों, नाजुक हों, परन्तु अत्यन्त भावुक हों, किन्हीं कारणों से अत्यन्त उत्तेजित हो जाने से ऐसा व्यवहार करती हो जिसे वे स्वयं न समझ सकें। वे ऐसे काम करती हैं जिन्हें कर लेने के बाद उन्हें स्वयं पश्चाताप होता है। जो शुद्ध हिस्टीरिया की रोगिणी होती हैं वे तो अंड-संड काम करके पछताने के स्थान पर खुश हुआ करती हैं। डॉ० क्लार्क का कथन है कि इग्नेशिया के विषय में दो भ्रम दूर कर लेने चाहिये – एक तो यह कि यह औषधि केवल हिस्टीरिया की औषधि है; दूसरा यह कि हिस्टीरिया में इसके सिवा दूसरी कोई औषधि नहीं है। इन सब बातों को ध्यान में रखकर इसका हिस्टीरिया में प्रयोग करना चाहिए।
रोगिणी के पेट से एक गोला गले में उठता अनुभव होता है, वह उसे निगलने की कोशिश करती है, परन्तु निलगने के बाद, वह गोला फिर ऊपर गले में उठता प्रतीत होता है। रोगिणी को यह गोला बहुत परेशान करता है। प्राय: यह गोला तब उठा करता है जब रोगिणी को किसी प्रकार का दु:ख होता है। पेट में अफारा और सांस लेने में कष्ट होने के साथ अगर यह गोला उठे, तो ऐसाफेटिडा औषधि है; अगर तेज सिर-दर्द या मूर्छा के साथ यह गोला उठे तो वेलेरियाना औषधि है; अगर किसी दु:ख की अन्दर-ही-अन्दर दबा देने के बाद उठे तो इग्नेशिया औषधि है।
(6) ऐंठन, अकड़न (Convulsions) – मानसिक-कारणों से ऐंठन, पड़ जाने पर, डर से शरीर ऐंठ जाने पर इससे लाभ होता है। बच्चों को मार पीट कर सुला देने पर, उन्हें डरा देने पर, उन्हें ऐंठन पड़ जाया करती है। किसी भी प्रबल उद्वेग से ऐसी हालत हो जाती है। इन सब मानसिक तथा उद्वेग के कारणों से ऐंठन हो तो इस से लाभ होता है।
(7) सिर में कील धँस रहा-सा दर्द उठना और दर्द वाली तरफ लेटने से आराम – सिर-दर्द के इस लक्षण पर हम पहले भी लिख आये हैं। कनपटी में ऐसा दर्द होता है मानो वहां कील घुस रहा है। यह लक्षण कॉफ़िया और थूजा में भी पाया जाता है। इग्नेशिया के रोगी को सिर-दर्द में दर्दवाली तरफ लेटने से आराम मिलता है।
(8) खाने पर भी पेट खाली महसूस होना – खाने से हर-एक का पेट भर गया महसूस होता है। इग्नेशिया के रोगी को पेट खाली महसूस हुआ करता है, और खाने के बाद भी यह खालीपन का अनुभव बना रहता है।
(9) ज्वर में शीत-अवस्था में प्यास लगना – ज्वर में इसका विचित्र लक्षण यह है कि रोगी को शीतावस्था में प्यास लगती है, उत्ताप की अवस्था में नहीं। प्राय: मलेरिया में ऐसे लक्षण दिखाई देते हैं।
इग्नेशिया औषधि के अन्य लक्षण
(i) कांच निकलना – इग्नेशिया औषधि में भी नक्स की तरह बार-बार टट्टी जाने की इच्छा होती है, हर बार मल पूरा नहीं निकलता, परन्तु इसमें मल के लिये जोर लगाने पर कांच निकल आती है, और कांच निकलने के डर से रोगी जोर लगाते हुए घबराता है।
(ii) हिचकी – खाने-पीने के बाद और तम्बाकू की बू से हिचकी आने पर इससे लाभ होता है।
(10) शक्ति तथा प्रकृति – 30, 200 (हनीमैन का कथन है कि इसे प्रात: काल देना चाहिए। सोने से पहले देने से रोगी बेचैन हो जाता है।)