लक्षण – पेट में भारीपन, पेट भरा-भरा-सा अनुभव होना, पेट में जलन, गले तक जलन का आना, खट्टी डकारें आना, पेट में हवा भरी रहना, कब्ज रहना अथवा बिना पचे भोजन का टट्टी में निकल जाना, मुँह के स्वाद में कड़वाहट, मुँह से बदबू आना, जीभ का मैली रहना, पेट की हवा के कारण हृदय पर दबाव और हृदय की धड़कन का बढ़ना, मन में खिन्नता तथा उदासी, मिजाज में चिड़चिड़ापन, छाती में जलन, सिर-दर्द तथा चक्कर आना, खाना-खाने के 2-3 घण्टे बाद इन सब लक्षणों का बढ़ जाना आदि । इस रोग के कारण बहुमूत्र, वात आदि अनेक जटिल बीमारियाँ उत्पन्न हो सकती हैं ।
कारण – धी अथवा तेल में पकाये गये पदार्थों का अधिक मात्रा में अथवा शराब आदि मादक-द्रव्यों का सेवन करना, खटाई तथा अचार आदि खट्टी वस्तुओं का सेवन, अत्यधिक मानसिक अथवा शारीरिक-परिश्रम, अस्वास्थ्यकर स्थान में रहना, ठण्डी हवा का लगना, कसे हुए वस्त्र पहनना, मन में चिन्ताएँ बनी रहना, शरीर में पर्याप्त मात्रा में रक्त का अभाव, अधिक समय तक अनेक प्रकार की औषधियों का सेवन करते रहना, अधिक मैथुन करना तथा किसी प्रकार का वातरोग अथवा स्नायु-रोग होना आदि कारणों से यह बीमारी होती है। प्राय: सोरा-धातु ग्रस्त मुनष्यों को यह बीमारी अधिक होती है। किसी प्रकार का चर्म-रोग हो जाने पर यह बीमारी कम हो जाती है । नयी बीमारी को ‘नया अजीर्ण’ तथा पुरानी बीमारी को ‘पुराना अजीर्ण’ कहा जाता है ।
चिकित्सा – इस रोग में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ हितकर हैं :-
नक्स-वोमिका 3x, 30 – यह पेट के रोगों की प्रसिद्ध औषध है । खाना खाने के एक-दो घण्टे बाद (तुरन्त बाद नहीं), पेट में दर्द तथा ऐसे भारीपन का अनुभव होने पर कि मानो पेट में पत्थर आ गिरा हो, कलेजे में जलन, पेट फूलना, खट्टी डकारें आना, मुँह का स्वाद खट्टा होना, भोजन के बाद आलस्य अथवा तन्द्रा एवं दो-तीन घण्टे तक मानसिक-परिश्रम न कर पाना, सिर में दर्द होने लगना, खट्टी डकारें आना, खाई हुई वस्तु अथवा पित्त की बारम्बार वमन (उल्टी), बार-बार मल-त्याग की इच्छा होने पर भी पाखाना न होना, सुबह के समय सिर में भारीपन अथवा सिर में चक्कर आना, चेहरे पर पीलापन, पेट में ऐसी हवा का भरना जो पेट के पर्दे को ऊपर की ओर धक्का देती हो, आदि लक्षणों में यह औषध विशेष लाभकारी है । तम्बाकू अथवा शराब के सेवन तथा अनेक प्रकार की गर्म दवाओं के सेवन के कारण उत्पन्न हुए अजीर्ण-रोग में इसकी 1x शक्ति अधिक हितकर सिद्ध होती है । इस औषध का रोगी-क्रोधी तथा चिड़चिड़े स्वभाव का, पतला-दुबला, घी-तैल द्वारा तैयार किये गये पदार्थों का शौकीन, परन्तु उन्हें पचा न सकने वाला एवं शीत-प्रकृति का होता है । ‘नक्स वोमिका’ के कार्य को चोटी तक पहुँचाने के लिए अन्त में ‘सल्फर’ का प्रयोग करना उचित रहता है ।
पल्सेटिला 3x, 30 – ‘नक्स-वोमिका’ की भाँति यह भी पेट के रोगों की एक प्रसिद्ध औषध है, परन्तु इसमें अन्तर यह है कि ‘नक्स’ का रोगी तो धी आदि से निर्मित गरिष्ठ पदार्थों को हजम कर लेता है, परन्तु ‘पल्स’ का रोगी गरिष्ठ पदार्थों को हजम नहीं कर पाता । अत: यदि गरिष्ठ पदार्थों के सेवन के कारण बदहजमी, वमन, पेट-दर्द, आदि की शिकायत हो तो ‘पल्स’ का प्रयोग करना हितकर रहता है । सिर में चक्कर आना, छाती में जलन, जीभ का रूखा तथा सूखा होना, मुँह के स्वाद का नमकीन, तीता अथवा खट्टा होना, मिचली, ठण्ड लगना अथवा आंव-युक्त दस्तों का जल्दी-जल्दी आना आदि लक्षणों में यह लाभकारी है । ‘नक्स’ का रोगी क्रोधी तथा चिड़चिड़े स्वभाव का होता है। ‘पल्स’ का रोगी शान्त तथा मृदु-स्वभाव का होता है, ‘नक्स’ का रोगी अपने काम में बाधा पड़ने पर नाराज होता है, परन्तु ‘पल्स’ का रोगी रो पड़ता है । ‘नक्स’ का रोगी प्राय: पतला-दुबला तथा ‘पल्स’ का रोगी प्राय: स्थूल-काय होता है । ‘नक्स’ का रोगी शीत-प्रकृति का तथा ‘पल्स’ का रोगी उष्णप्रकृति का होता है । ‘नक्स’ को गरम तथा ‘पल्स’ को ठण्डी हवा पसन्द होती है। इन अन्तरों को ध्यान में रखते हुए ही ‘नक्स’ और ‘पल्स’ में से किसी एक का चुनाव करना चाहिए। कोमल प्रकृति वाली तथा रजोधर्म में गड़बड़ी वाली स्त्रियों के लिए यह विशेष हितकर है ।
होमारस 3x, 6 – डॉ० कुशिंग के मतानुसार यह अजीर्ण-रोग की सर्वोत्तम औषध है । इसे केकड़े के पाचक-रस द्वारा बनाया जाता है, जो घोंघे आदि दुष्पाच्य-वस्तुओं को भी शीघ्र पचा लेता है ।
नट्रम-म्यूर 12x वि० 30 – आलू, मैदा आदि श्वेतसार वस्तुओं के अधिक मात्रा में सेवन करने के कारण होने वाले अजीर्ण में तथा भोजन के बाद कलेजे में धड़कन या जलन, मुँह के स्वाद में तीतापन, मुँह से पानी निकलना, सर्दी का भाव एवं नमक खाने की अधिक इच्छा आदि उपसर्गों में यह विशेष लाभकारी है। अधिक सम्भोग के फलस्वरूप उत्पन्न अजीर्ण के लक्षणों में हितकर है ।
कार्बो-वेज 3x, 30 – पाचन क्रिया का अत्यन्त धीमी गति से होना, भोजन का पचने से पहले ही सड़ने लगना, सामान्य-भोजन भी न पचना, पेट में हवा भर जाना, खट्टी डकारें आना, खाली डकारें आना, पेट के ऊपरी भाग का फूल जाना, डकारें आने तथा अधोवायु के निकल जाने के बाद आराम का अनुभव होना, पेट की गैस ऊपर चढ़ने के कारण हृदय में धड़कन होना, खाना खाने के आधा घण्टे के बाद तकलीफ का शुरू होना, पेट में गैस के कारण होने वाला अजीर्ण, पतले दस्त, सिर में भारीपन, कमजोरी, पुराने अजीर्ण तथा वृद्धों के अजीर्ण रोग में यह औषध विशेष लाभ करती है । कमजोरी में इसकी उच्च-शक्ति का प्रयोग किया जाता है ।
लाइकोपोडियम 6, 30, 200 – आधोवायु का निर्गमन, खाद्य-वस्तुओं के पाचन के समय अधिक तन्द्रा तथा नींद खुलने के बाद सुस्ती आ जाना, पेट में वायु एकत्र हो जाने के कारण पेट फूल जाना, पेट में गुड़गुड़ाहट, खट्टी डकारें आना अथवा बायीं ओर की आँत में कम्पन, कब्ज, कमजोरी अथवा पढ़ने-लिखने की अधिकता के कारण अपच, पेशियों की शक्ति कम हो जाने अथवा पाचन-रस की कमी के कारण होने वाला अजीर्ण, निवीर्य-रोगियों का अजीर्ण, सायं 4 से 8 बजे के बीच हवा का प्रकोप बढ़ना तथा उसके साथ ही सिर-दर्द, ज्वर आदि किसी कष्ट में वृद्धि तथा डकारें आना, परन्तु डकार आने पर भी आराम न मिलना आदि लक्षणों में लाभकारी है । ‘चायना’ के रोगी को खाने की इच्छा बिल्कुल नहीं होती, परन्तु भोजन करना आरम्भ कर देने पर भूख जग उठती है और वह पेट भर कर खाना खा लेता है । इसके विपरीत ‘लाइको’ के रोगी को भूख लगती है, परन्तु दो-चार कौर खा लेने पर उसे पेट भर गया सा लगता है । ‘नक्स’ और ‘लाइको’ में अन्तर यही है कि ‘नक्स’ में आंतों द्वारा मल को गुदा की ओर धकेलने की शक्ति कम होती है, अत: ‘नक्स’ के अजीर्ण-रोगी को एक ही बार शौच जाना पर्यात नहीं रहता, जबकि ‘लाइको’ के रोगी की गुदा में सिकुड़न होती है, अत: मल न निकलने के कारण कब्ज हो जाता है ।
चायना 3x, 30, 200 – अधिक दिनों तक मद्यपान करने के कारण उत्पन्न हुए पुराने अग्निमान्द्य में जब शोथ एवं यकृत्-प्रदाह आदि के लक्षण दिखाई दें, तब यह औषध विशेष लाभ करती है । मलेरिया के कारण उत्पन्न अजीर्ण में भी हितकर है । ‘चायना’ के रोगी को डकारें आने पर अथवा अधोवायु के नि:सृत होने पर भी राहत अनुभव नहीं होती। इसके रोगी को खाना हजम नहीं होता, वह जो कुछ खाता है, वह सड़ कर हवा बन जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि रोगी को खाने की इच्छा बिल्कुल नहीं होती, परन्तु खाना आरम्भ करने पर भूख लौट आती है । खटाई तथा फल खाने की बहुत इच्छा होती है । रोगी थोड़ा-थोड़ा और बार-बार ठण्डा पानी पीता है तथा दूध पीने से उसका पेट खराब हो जाता है ।
ऐनाकार्डियम 30, 200 – नर्वस डिस्पेप्सिया के लक्षणों में यह औषध लाभकारी है । इस औषध के रोगी के रोग-लक्षण खाना खाने से कम हो जाते हैं तथा खाना हजम हो जाने के बाद फिर प्रकट हो जाते हैं तथा उसी बेताबी में इतनी जल्दी-जल्दी खाना खाता है कि कभी-कभी उसका गला ऊँध जाता हैं ।
एण्टिम-कूड 3, 6 – अजीर्ण-रोग में जीभ पर दूध की भाँति सफेद तथा गाढ़ा मैला जमा हो तो यह औषध सर्वाधिक हितकर सिद्ध होती है । जीभ पर दूधिया रंग के मैल के साथ ही भूख का मर जाना, बुसी-बुसी डकारें आना, अपच, गर्मी के मौसम में अनियमित भोजन के कारण कुछ गाढ़े और कुछ पतले दस्तों का आना, गरिष्ठ पदाथों के सेवन के कारण हुई बदहजमी तथा दस्त एवं डकार में खाई हुई वस्तु की गन्ध आना आदि लक्षणों में इस औषध का प्रयोग करना चाहिए । चेहरे पर फुन्सियाँ, नाक के छिद्र तथा होंठों पर जख्म, जीभ का सादा तथा गहरे मैल से छिपा होना एवं खाने के बाद पेट फूलना आदि लक्षणों में बहुत लाभ करती है।
आर्जेण्टम-नाइट्रिकम 30 – अधिक मीठा खाने के कारण होने वाले पेट की शिकायतें , अपच, पेट में हवा भर जाना, खट्टी डकारें आना, हरे दस्त आने लगना, पेट में हवा होने के कारण दर्द, पेट का इस तरह से फूल जाना जैसे कि वह फट जायेगा, पेट में एक जगह से दर्द उठकर चारों ओर फैल जाना, दर्द का धीरे-धीरे उठना और धीरे-धीरे शान्त हो जाना, प्राय: आइस्क्रीम आदि मीठी तथा ठण्डी वस्तुओं के खाने से दर्द होना आदि लक्षणों में लाभकारी है । रक्त-हीनता आदि कारणों से बदहजमी तथा पाकाशय के दर्द के साथ अम्लरोग में भी हितकर है ।
सल्फर 30 – यह पेट की शिकायतों तथा पुराने अजीर्ण रोग की अत्युत्तम औषध है। पेट तथा जिगर का समीपवर्ती क्षेत्र तना-हुआ सा रहना, थोड़ा-सा खाना खाते ही पेट का भर व तन जाना, कभी कब्ज और कभी दस्त की शिकायत, बवासीर के मस्सों का उभर आना और खाद्य वस्तु, यहाँ तक कि दूध को भी न पचा पाना । इन सब लक्षणों के साथ ही मध्याहन 11-12 बजे के बीच पेट में ऐसे खालीपन का अनुभव होना, जैसे कि पेट के भीतर की ओर धंसा चला जा रहा हो । मध्याहन 11 बजे के लगभग भूख लगना और खाना खा लेने पर आराम के साथ ही पेट फूलने का अनुभव होना, खट्टी डकारें आना, भोजन के बाद तन्द्रा, बार-बार अजीर्ण होना, मुँह के किनारे तथा होठों पर जख्म अथवा सूजन होना आदि लक्षणों में लाभकारी है। पुराने अजीर्ण में प्रात:काल ‘सल्फर 30’ तथा सायंकाल ‘नक्स-वोमिका 30’ देने से बहुत लाभ होता है।
विशेष – डॉ० वार्टलेट के मतानुसार नक्स-वोमिका 1x, कार्बो-वेज 1x, तथा कैप्सीकम 1x – इन औषधियों को अलग-अलग लेने की अपेक्षा, इन तीनों को मिलाकर लेने से पाचन-रस की कमी के कारण अथवा पाचक-पेशियों की कमजोरी के कारण भोजन के न पचने से होने वाला अग्निमान्द्य दूर हो जाता है।
हाईड्रेस्टिस 3x – जीभ का लसदार तथा पीला होना, चेहरे पर मलिनता, पेट का पिचका रहना, छाती और पेट मिले हुए से प्रतीत होना, जैसे लक्षणों वाले अग्निमान्य में यह विशेष हितकर है ।
ब्रायोनिया 6 – भोजनोपरान्त पाकस्थली में भार का अनुभव होना, कब्ज, सूखा तथा जमा हुआ-सा कड़ा पाखाना, सिर में भारीपन, सिर में चक्कर आना, मुँह के स्वाद में तिक्तता, पित्त की वमन अथवा मिचली, पाकाशय में खोंचा मारने जैसा दर्द, गर्मी के दिनों में पतले दस्त आदि लक्षणों तथा विशेषत: ‘आर्सेनिक’ के अपव्यवहार के कारण उत्पन्न हुए अग्निमान्द्य में हितकर है। इस औषध के रोगी का मिजाज चिड़चिड़ा तथा क्रोधी होता है ।
एबिस-नाइग्रा 3x – खाना खाने के बाद पाकाशय में तीव्र दर्द, कब्ज तथा वृद्धों के अजीर्ण रोग में लाभकारी है ।
आर्सेनिक 3x, 6 – पाकस्थली में जलन का अधिक अनुभव, अधिक गरम पानी पीने पर जलन का घट जाना आदि लक्षणों में लाभकारी है । बर्फ खाने के कारण उत्पन्न हुए अजीर्ण में हितकर है ।
ऐनाकार्डियम 3 – भोजन करने के तुरन्त बाद ही पेट की सब तकलीफों का घट जाना, परन्तु थोड़े देर बाद ही दर्द उत्पन्न हो जाने के लक्षणों वाले अजीर्ण में लाभकारी है ।
नेट्रम-फॉस 3x, 12x वि० – खट्टी डकार तथा वमन के लक्षण में हितकर है । पेट में कृमि हों तो विशेष लाभकर है।
थूजा 6, 30 – अधिक मात्रा में चाय पीने के कारण उत्पन्न उपसर्ग, भूख न लगना, पेट में वायु होना, खाना खाते ही पेट में दर्द और प्यास । मांस, आलू एवं प्याज से अरुचि के लक्षणों में हितकर है ।
कैल्के-कार्ब 6, 12, 30 – कड़वी तथा खट्टी डकारें आने वाले पुराने अजीर्ण रोग-जिसमें कि शरीर कमजोर तथा दुबला होता जा रहा हो । खाँसी, अत्यधिक
ऋतू-स्राव, खट्टी डकारें आना तथा खट्टा वमन, भोजनोपरांत खाये हुए पदार्थ का अम्ल बन जाना आदि लक्षणों में लाभकारी है । ‘पल्स’ के सेवन के बाद यह अधिक लाभ करता है ।
हिपर-सल्फर 6, 12 – पुराना अजीर्ण-जब कि कोई भी वस्तु न पचती हो, खटाई तथा अचार खाने की इच्छा तथा पारे के अपव्यवहार के कारण उत्पन्न हुए अजीर्ण-रोग में विशेष हितकर है ।
प्लम्बम 6, 200 – सर्दी लगने के कारण उत्पन्न हुआ अग्निमान्द्य, जिसमें पेट में दबाव का अनुभव, कड़ी वस्तुएँ न खा पाना तथा पेट-दर्द आदि लक्षण दिखाई देते हों, में अत्यन्त लाभकारी है। मल कड़ा और उसके निकलने में कष्ट होता हो तो इस औषध को दिन में दो बार, कई मास तक सेवन करना चाहिए ।
कालिबाई 6 – ‘बियर’ नामक शराब के अत्यधिक पीने के कारण उत्पन्न हुए उपसर्ग, पानी अच्छा न लगना, खट्टी वस्तुएँ खाने की इच्छा, पीले रंग का पानी जैसा वमन, खाने के बाद पेट में भार का अनुभव तथा अन्य उपसर्गों का घट जाने में।
फास्फोरस 30 – पुराने-अजीर्ण रोग में खट्टी डकारें आना अथवा खट्टी वमन होना, अत्यधिक भूख, पेट फूलना, पेट में जलन का अनुभव, जो पानी पीने के बाद घट जाती हो, परन्तु उस पानी की भी वमन हो जाती हो तथा जीभ पर मैल चढ़ा हो – इन सब लक्षणों में हितकारी है ।
हाइड्रैस्टिस 1x, 30 – पाकस्थली में भारीपन का अनुभव, कब्ज, सिर-दर्द, खट्टी डकारें श्वास-कट एवं कलेजा धड़कना आदि लक्षणों में हितकर है ।
नक्स-मस्केटा 2x, 6 – चर्म-रोग के बैठ जाने के कारण उत्पन्न हुआ अजीर्ण रोग, पेट में मरोड़ तथा जलन, पेट में गर्मी तथा भारीपन होने के कारण श्वास-कष्ट, भोजनोपरान्त पेट में दर्द तथा वृद्धों के अजीर्ण रोग में लाभकारी है।
सिपिया 6 – पुराना अजीर्ण-रोग (विशेषकर जरायु-दोष के कारण ) मल-द्वार में भारीपन, मुँह का स्वाद खट्टा, अथवा तीता, शरीर मलिन तथा पीला एवं खटाई, अचार आदि खाने की इच्छा-इन लक्षणों में लाभकर हैं ।
इथूजा 6 – दूध न पच पाना, दूध पीने के बाद अजीर्ण तथा पेट में काटने जैसे दर्द के लक्षणों में ।
कारण एवं लक्षणानुसार औषध का निर्वाचन
एण्टिम-क्रूड – खट्टी अथवा अम्ल वस्तुओं के खाने के कारण उत्पन्न हुए अजीर्ण-रोग में हितकर है ।
पल्सेटिला 3, 6 – चर्बीयुक्त, घी-तैल में पका, पीठीयुक्त भोजन अथवा ठण्डे पेय-पदार्थों के अधिक सेवन के कारण अजीर्ण रोग में हितकर है।
नक्स-वोमिका 3x, 30 – शराब अथवा कॉफी का सेवन, अफीम खाने, चिंगड़ी मछली अथवा अण्डे की सफेदी वाले भाग को खाने तथा रात्रि-जागरण के कारण उत्पन्न हुए अजीर्ण-रोग में हितकर है।
कार्बो-वेज 6 – सड़ी मछली, मांस अथवा मक्खन सेवन करने के कारण उत्पन्न हुए अजीर्ण रोग में हितकर है।
सिपिया 6 – तरकारी खाने के कारण उत्पन्न हुए अजीर्ण रोग में हितकर है।
जिंजिबार 3x, 6 – तरबूज खाने अथवा दूषित पानी पीने के कारण उत्पन्न हुए अजीर्ण रोग में हितकर है ।
आर्सेनिक 6 – बर्फ का पानी, कुल्फी अथवा अधिक ठन्डे पानी का सेवन करने के कारण उत्पन्न हुए अजीर्ण में हितकर है ।
चायना 3 अथवा आर्सेनिक 6 – अधिक फल खाने कारण हुए अजीर्ण रोग में। यदि फल बिना पचे, अजीर्णावस्था में निकले तथा पेट में जलन का अनुभव हो तो ‘चायना’ विशेष लाभ करता है ।
फास्फोरस 6 अथवा नेट्रम-म्यूर 30 – नमक के अपव्यवहार के कारण उत्पन्न हुए अजीर्ण में हितकर है।
मर्कसोल 3x वि०, ऐक्टिया रेसिमोसा या थिया 30 – अधिक दिनों तक चाय पीने के कारण उत्पन्न हुए अजीर्ण में हितकर है।
बिस्मथ – रात्रि में निरन्तर अधिक कष्ट वाले आक्षेपयुक्त नये अजीर्ण में।
पल्स – भारी अथवा चर्बीयुक्त वस्तुएं खाने के बाद होने वाले आक्षेपयुक्त नये अजीर्ण में लाभकारी है ।
कोलोसिन्थ – खट्टे फल-मूल खाने के कारण उत्पन्न हुए नये अजीर्ण में।
थिया – चाय पीने के कारण हुए पुराने अजीर्ण में हितकर है।