इस रोग का मुख्य कारण फिल्टर से गुजरने वाला कीटाणु (वायरस) है, जो रोगी की नाक और मुँह के तरल में अधिक पाया जाता है । नजला-जुकाम ज्वर (100 से 103 डिग्री फारेनहाइट), पुट्ठों में दर्द, सिर दर्द, शारीरिक दुर्बलता, छाती में दर्द, सारे शरीर में दर्द, जीभ मैली, कभी तीव्र खाँसी, हड्डियाँ टूटना, कै और पित्तयुक्त दस्त, पाण्डु और गठिया इत्यादि लक्षण होते हैं। यह बीमारी बहुत तेजी से दूर-दूर तक फैल जाती है । इस रोग के साथ दूसरा कोई रोग सम्मिलित न हो जाये तो एक सप्ताह में आराम हो जाता है, किन्तु प्राय: इस रोग के परिणामस्वरूप ब्रोंकाइटिस और कभी-कभी ब्रोंकों न्यूमोनिया भी हो जाता है। रोगी व्यक्ति को स्वस्थ मनुष्यों से अलग रखें, क्योंकि यह छूत का रोग है जो संक्रमण द्वारा दूसरे स्वस्थ व्यक्तियों को हो सकता है।
इन्फ्लूएंजा की एलोपैथिक मेडिसिन
• यदि इन्फ्लूएंजा ज्वर के साथ न्यूमोनिया भी हो तो सल्फा ड्रग खिलाना लाभप्रद सिद्ध होता है अथवा पेनिसिलिन 5 लाख यूनिट का प्रत्येक 4-4 घण्टे के अन्तराल से वयस्क रोगी को इन्जेक्शन लगायें !
• डिस्प्रिन (रैकिट एण्ड कोलमैन) – 2 टिकिया चौथाई गिलास जल में डालकर और उसको भली प्रकार मिलाकर 4-4 घण्टे पर पिलायें ।
• कैफी स्प्रीन (बायर कं.) -1 से 2 टिकिया चौथाई गिलास जल में डालकर दिन में 3 बार दें । साथ ही रेडाक्सोन अर्थात् विटामिन सी (निर्माता : रोश) 500 मि.ग्रा. 1 से 2 टिकिया प्रतिदिन खिलायें ।
• ओम्नामायसिन (हैक्स्ट क.) – 1 या 2 वायल्स का इन्जेक्शन सप्ताह में 2 बार चर्म या माँस में लगायें ।
• कोसाविल (हैक्स्ट) – 1 टिकिया तथा सेलिन (ग्लैक्सो : कम्पनी) 1 या आधी-आधी टिकिया दिन में तीन बार खिलायें ।
• औट्रिविन (सिवागैगी कम्पनी) – नाक के प्रत्येक नथुने में 1 से 3 बूंद प्रतिदिन 2 से 4 बार डालें, साथ ही ‘ऐरोविट’ अर्थात् विटामिन ए (निर्माता : रोश) दो टिकिया प्रतिदिन एक सप्ताह तक निरन्तर खिलायें ।
• चेस्टोन कफ सीरप (सिपला कम्पनी) – बड़ों को 1 से 2 चाय के चम्मच भर तथा बच्चों को आधी से एक चाय के चम्मच भर प्रत्येक 4-4 घण्टे के अन्तराल से पिलायें । साथ में फेन्सोकोडीन 1-1 टिकिया दिन में तीन बार दें।
अभी तक इस रोग के वायरस (विषाणु) की कोई शत-प्रतिशत सफल औषधि नहीं खोजी जा सकी है। इसलिए इन्फ्लूएंजा रोगी के कष्टों को दूर करने के लिए कुछ अनुभूत योग लिखे जा रहे हैं –
• पेरासिटामोल 300 मि.ग्रा., सोडियम बेन्जोएट 6 मि.ग्रा., अमोनियम कार्बोनेट 15 मि.ग्रा. सभी को पीसकर 1-1 पुड़िया दिन में 3 बार गर्म जल से दें । हड्डियाँ टूटती प्रतीत होना, कमर दर्द (चाहे वह किसी रोग के कारण हो) तुरन्त कम हो जाता है ।
नोट – पेरासिटामोल के स्थान पर इस योग में एस्प्रीन भी मिलाई जा सकती है ।
• सिनारिल (थेमिस कम्पनी) – वयस्कों को 1 टिकिया या सीरप 5 से 10 मि. ली. प्रत्येक 4-6 घण्टे पर प्रयोग करायें । 6 वर्ष तक की आयु वालों को 1.25 से 2. 5 मि.ली. तक, 6 वर्ष से अधिक आयु वाले बच्चों को 2.5 से 5 मि.ली. प्रत्येक 4-6 घण्टे बाद प्रयोग करायें । ड्राप्स 1 से 6 मास के शिशुओं को 2 से 5 बूंद, 6 से 12 मास के शिशुओं को 5-से 10 बूंद तीन बार करके प्रतिदिन पिलायें ।
• काण्टैक सी.सी. (इस्काय लैब) – वयस्कों को 1 कैप्सूल दिन में 4 बार दें । इस दवा के मूल द्रव्यों के अतिसुग्राही रोगियों में इसका प्रयोग न करें ।
• चायमोल (वाल्टर बुशनेल) – वयस्कों को दो टिकिया प्रत्येक 6-6 घण्टे बाद खिलायें । गर्भावस्था तथा इस औषधि के अतिसुग्राही रोगियों में इसका प्रयोग न करें।
• पैरासोड (पास्च्यूर) – लिक्विड वयस्कों को 10 मि.ली. तथा बच्चों को 5 मि. ली. दिन में तीन बार पिलायें ।
• रेफागान (बायर कम्पनी) – वयस्कों को दो टिकिया तथा बच्चों को आधी से एक टिकिया तीन बार दें ।
सावधानी – आन्त्र व्रण वाले रोगियों में इसका प्रयोग कदापि न करायें ।
• टक्सीन (ग्रिफान कम्पनी) – एक टिकिया प्रत्येक 4-6 घण्टे पर खिलायें ।
• विटामिन सी तथा विटामिन ए इस रोग में बहुत लाभकारी है। दूसरी दवाओं के साथ विटामिन सी की ‘सेलिन’ (निर्माता : ग्लैक्सो) 100 मि.ग्रा., 1 टिकिया दिन में 3-4 बार खिलाते रहना चाहिए तथा इसके साथ ही विटामिन ए की टिकिया भी खिलाते रहना चाहिए । विटामिन ए नजला, जुकाम, खाँसी, गले में दर्द और इन्फ्लूएंजा में लाभकारी है ।
• क्लोरोमायसेटिन (पी. डी.) – का 1-1 कैप्सूल प्रत्येक 6-6 घण्टे पर (24 घण्टे में 4 बार) खिलाना भी लाभप्रद है ।