यह ज्वर एक प्रकार के कीटाणु व खटमलों (जो कुत्तों और चूहों में पाये जाते हैं) से पैदा हो जाता है। यह ज्वर आसाम व बंगाल प्रान्तों में अधिकता से होता है। इस रोग से ग्रसित रोगी बहुत ही दुबला-पतला और काला हो जाता है। सर्दी के मौसम में 20 वर्ष आयु वर्ग के युवाओं को यह ज्वर अधिक हुआ करता है । रोगी को घोर सर्दी और कंपन के साथ यह ज्वर चढ़ता है । इस ज्वर से जिगर एवं तिल्ली बहुत अधिक बढ़ जाते हैं । जिन रोगियों के नाक से खून आने लगे अथवा टखनों पर सूजन हो जाये, उनकी मृत्यु का भय हो जाता है । ज्वर के कारण रोगी का रक्त घट जाने से उनकी त्वचा काली हो जाती है और वजन गिरता जाता है । हाथ और माथा विशेष रूप से काले हो जाते हैं । ज्वर का दर्जा कम होने के कारण रोगी इसकी ओर ध्यान भी नहीं देता । तिल्ली तो विशेष रूप से अधिक बढ़ जाती है । प्लीहा पहले तो गूँधे आटे की भाँति नरम परन्तु बाद में बहुत कठोर हो जाती है। यह अनियमित अथवा नियमित प्रकार का ज्वर होता है । ज्वर प्राय: मलेरिया के समान दिन में दो बार आता है। रोगी को भूख तो लगती है परन्तु पाचन खराब हो जाता है ।
कालाजार का एलोपैथिक चिकित्सा
इन्जेक्शन टार्टर इमेटिक, यूरिया, स्टेबामीन, यूरिया स्टेबमीन एम्पूल में पीले चूर्ण के रूप में रहता है जिसे परिश्रुत जल में घोलते हैं। शिरागत इन्जेक्शन लगाया जाता है । प्रथम मात्रा 0.025 ग्राम दूसरी मात्रा 0.05 ग्राम, तीसरी मात्रा 0.1 ग्राम, चौथी मात्रा 0.15 ग्राम, पाँचवी मात्रा 0.2 ग्राम, छठी मात्रा 0.25 ग्राम है । बच्चों को 0.01 ग्राम और बड़ों को 0.04 ग्राम की मात्रा है । नियोस्टिबोसान (मासान्तर्गत) एण्टीमनी साल्ट दें (इसका इन्जेक्शन भी आता है। )
लिक्विड़ एक्सट्रैक्ट ऑफ शरपुंखा (बी. सी. कम्पनी) – 5 से 10 मि.ली. बराबर जल मिलाकर भोजनोपरान्त दिन में दो बार पिलायें ।
लिवोटोन (ईस्ट इण्डिया) – आवश्यकतानुसार 10 से 15 मि.ली. समान भाग जल । मिलाकर भोजनोपरान्त दिन में दो बार सेवन करायें।
टोनोलिवर (स्टेडमेड कम्पनी) – वयस्कों को आवश्यकतानुसार 10 से 15 मि.ली. समान भाग जल मिलाकर भोजन के बाद दो बार प्रतिदिन दें ।
सोडियम एंटीमोनी ग्लुकोनेट (एलबर्ट डेविड कम्पनी) – इसका 30 मि.ली. का बड़ा वायल आता है । आवश्यकतानुसार वयस्कों को प्रथम दिन 1 मि.ली. और उसके बाद दो मि.ली. का शिरा में प्रतिदिन इन्जेक्शन लगायें ।
स्टिबानेट (ग्लूकोनेट कम्पनी) – इसके भी 30 मि.ली. के वायल आते हैं। प्रथम दिन 1 मि.ली. और इसके बाद प्रत्येक तीसरे दिन 2 मि.ली. का शिरा में इन्जेक्शन लगायें। रोग दूर होते ही औषधि का और अथिक प्रयोग न करें ।
तीन-चार मास तक इस ज्वर की चिकित्सा करना आवश्यक है। रोगी को प्रोटीनयुक्त भोजन यथा – पनीर, दूध, सोयाबीन तथा विटामिन ए, बी, और सी से निर्मित औषधियाँ दें।