लक्षण तथा मुख्य-रोग | लक्षणों में कमी से रोग में वृद्धि |
सूई चुभता-सा दर्द जो चुपचाप लेटे रहने से बढ़े; खुले हिस्से की तरफ; दर्द का चले जाना; प्लुरिसी तथा शियाटिका में ब्रायोनिया से इसकी तुलना | गर्मी से रोग में कमी |
पीठ के दर्द के साथ बेहद कमजोरी और पसीना | दमे में घुटनों पर कोहनी टेक कर बैठने से आराम |
आंख की उपरली पलक की सूजन | |
दमे या किसी रोग का 2 से 4 बजे प्रात: बढ़ना, विशेषकर 3 बजे प्रात: | |
डर का पेट में धक्का-सा लगना | लक्षणों में वृद्धि |
स्पर्श सहन न कर सकना | 2 से 4 बजे (3 बजे) वृद्धि |
हाथ तथा पैर की अंगुलियों तक में धड़कन | ठंडी हवा, ठंडे झोंकों से वृद्धि |
हृदय की मन्द-गति के कारण शरीर में शोथ की प्रवृत्ति | दर्द वाली तरफ लेटने से |
पुराना जुकाम जिसमें स्राव बन्द होने पर सिर-दर्द हो जाता है, और स्राव बढ़ने पर सिर-दर्द हट जाता है (तपेदिक में काली कार्ब की उपयोगिता) | स्थिर रहने से वृद्धि |
(1) सूई चुभता-सा दर्द जो चुपचाप लेटे रहने से बढ़े; खुले हिस्से की तरफ; दर्द का चले जाना; प्लुरिसी तथा शियाटिका में ब्रायोनिया से इसकी तुलना – सर्दी में रोगी को शरीर के किसी हिस्से में भी दर्द हो जाता है। जिस हिस्से में दर्द होता है उसे अगर ढक लिया जाय, तो उस हिस्से में चला जाता है जो खुला होता है – यह इसका ‘विचित्र-लक्षण’ है। घूमता-फिरता दर्द जो जिस किसी भी दिशा में चल पड़ता है। ऐसा दर्द होता है जैसे सूई चुभ रही हो, चाकू से अंग कट रहा है।
प्लुरिसी का दर्द – प्लुरिसी में, निमोनिया में इस प्रकार का दर्द होता है। इस दर्द की ब्रायोनिया से तुलना की जा सकती है। प्लुरिसी तथा निमोनिया में छाती में सूई चुभता-सा दर्द होता है, परन्तु काली कार्ब का दर्द चुपचाप, स्थिर लेटे रहने से बढ़ता है, ब्रायोनिया का दर्द चुपचाप पड़े रहने से घटता है; ब्रायोनिया का दर्द दर्दवाले हिस्से की तरफ लेटने से घटना है, काली कार्ब का दर्द दर्दवाली तरफ लेटने या उस पर दबाव पड़ने से बढ़ता है; ब्रायोनिया का दर्द प्राय: गर्मी से बढ़ता है, काली कार्ब का दर्द सर्दी से बढ़ना है। प्लुरिसी या निमोनिया में सांस लेने पर ब्रायोनिया का दर्द बढ़ता है, सांस लेना अर्थात् हरकत करना; काली कार्ब के दर्द में हरकत हो या न हो, सांस न लेते हुए भी रोगी चिल्ला उठता है। इससे स्पष्ट है कि होम्योपैथी में रोग का नाम ही काफ़ी नहीं है, रोग पर प्रभाव करने वाली परिस्थिति, रोगी की ‘प्रकृति’ (Modality) पर विचार करना बहुत अधिक आवश्यक है। जिस प्लुरिसी और निमोनिया में ब्रायोनिया लाभ करेगा। उसमें काली कार्ब लाभ नहीं करेगा, और जिसमें काली कार्ब लाभ करेगा उसमें ब्रायोनिया लाभ नहीं करेगा क्योंकि दोनों की ‘प्रकृति’ (Modality) भिन्न-भिन्न है। इसके अतिरिक्त दर्द के क्षेत्र में इन दोनों में और भी भेद है। ब्रायोनिया का दर्द प्राय: फेफड़े, हृदय आदि शरीर के अंतरिक-अंगों की आवरण-झिल्ली (Serious membrane) में होता है; काली कार्ब का दर्द वहां भी हो सकता है, शरीर के अन्य किसी भाग में भी हो सकता है – यहां तक कि दांतों के या रीढ़ के भीतर के दर्द में भी लक्षण मिलने पर काली कार्ब उपयोगी है। काली कार्ब के प्रभाव का प्रिय-क्षेत्र दाईं छाती का निचला भाग है। यहां से सूई चुभने का-सा दर्द पीठ की तरफ फैल जाता है। अगर दाईं छाती के उपरले भाग से सुई चुभने का-सा दर्द शुरू होकर पीठ की तरफ फैल जाय तो आर्सेनिक उपयोगी है।
शियाटिका का दर्द – यह औषधि शियाटिका के दर्द में भी उपयुक्त है। शियाटिका के दर्द में इसका लक्षण है; कुल्हे से घुटने (Hip to Knee) तक जाने वाला दर्द, विशेषत: दाईं तरफ का दर्द। डॉ० क्लार्क ‘रुमेटिज़्म एन्ड शियाटिका’ में लिखते हैं कि उनकी एक 73 वर्षीया रोगिणी को इस प्रकार का दर्द था जिसे उन्होंने कोलोसिन्थ की कुछ मात्राओं से ठीक किया, परन्तु कुछ दिन बाद रोगिणी ने लिख भेजा कि डाक्टरों ने उसके रोग का निदान जरायु में कैसर का होना बतलाया है। लक्षण अब भी वही थे – कूल्हे से घुटने तक का दर्द, इसके साथ जरायु से काला स्राव। डॉ० क्लार्क ने उसे कैलि कार्ब की उच्चतम-शक्ति की एक मात्रा भेज दी जिससे शियाटिका का दर्द ही नहीं, जरायु का रोग भी जाता रहा। जिस लक्षण पर औषधि दी गई थी वह था – क्ल्हे से घुटने तक होने वाला दर्द।
(2) पीठ के दर्द के साथ बेहद कमजोरी और पसीना – डॉ० फैरिंगटन का कहना है कि पीठ का दर्द और उसके साथ बेहद कमजोरी और पसीना आ जाने का लक्षण इसके सिवाय अन्य किसी औषधि में नहीं है। ‘पीठ का दर्द’, ‘कमजोरी’, ‘पसीना’ – इन तीनों का मेल इसी में पाया जाता है। रोगी लगातार पीठ की कमजोरी की चर्चा करता है। इस से वह इतना परेशान रहता है कि रात में चलते-फिरते उसकी इच्छा होती है कि कहीं लेट कर आराम कर ले, पीठ उसका साथ नहीं देती। डॉ० फैरिंगटन लिखते हैं कि एक रोगी जब भोजन खा चुकता था तब उसे पीठ का दर्द शुरू हो जाता था। इस लक्षण पर-मुख्य तौर पर पीठ-दर्द के लक्षण पर-उसे काली कार्ब दिया गया और उसका अपचन का रोग दूर हो गया। डॉ० क्लार्क लिखते हैं कि एक स्त्री को पीठ में गठिये के दर्द पर काली कार्ब दिया गया और उसका योनि-द्वार का कैंसर ठीक हो गया। इस दृष्टि से ‘पीठ का दर्द’ के साथ ‘कमजोरी’ और ‘पसीना’ इस औषधि का व्यापक-लक्षण है जिसके आधार पर इसे देने से रोगी के अन्य रोग दूर हो जाते हैं। होम्योपैथी में किसी भी रोग में औषधि का निर्वाचन करते हुए ‘व्यापक-लक्षणों’ को प्रधानता दी जाती है। ‘व्यापक-लक्षण’ के आधार पर दवा दी जाय तो कोई भी रोग क्यों न हो, उसका कुछ भी नाम क्यों न हो, वह दूर हो जाता है।
(3) आंख की उपरली पलक की सूजन – इसका एक अद्भुत-लक्षण यह है कि किसी भी रोग में आंख की ऊपरी पलक तथा भौओं के बीच का हिस्सा थैले का-सा सूज जाता है। डॉ० बोनिंनघॉसन लिखते हैं कि हूपिंग-कफ में जब उसकी प्रसिद्ध-औषध ड्रॉसेरा से लाभ न हुआ, तब आंख के उपरली पलक की सूजन के लक्षण को देख कर काली कार्ब से लाभ हो गया। खांसी में भी इस लक्षण के होने पर इससे लाभ होता देखा गया है। एपिस में आंख के नीचे की पलक में शोथ होता है।
(4) दमे या किसी रोग का 2 से 4 बजे प्रात: बढ़ना, विशेषकर 3 बजे प्रात: – इस औषधि में रोगी की वृद्धि का समय प्रमुख लक्षण है। सब रोग प्रात: 3 से 4 बजे के बीच बढ़ जाते हैं। 2 बजे सूखी खांसी या पेट का दर्द सोने से जगा देता है; 3 बजे दमे का प्रकोप हो जाता है या हूपिंग कफ जोर मारने लगता है, या किसी और प्रकार का दर्द इस समय रोगी को नींद से उठा देता है; 3 से 4 बजे के बीच दस्त तंग करते हैं। काली कार्ब के लिये प्रात: काल का समय कष्ट का समय होता है, खासकर 3 बजे प्रात: काल का समय इस रोगी के लिय अत्यंत बुरा होता है। सब लक्षण 5 बजे प्रात:काल तक शान्त हो जाते हैं, रोगी प्रात: 5 बजे कष्टों के, शान्त होने पर सो पाता है। इस औषधि के दमे का रोग नम मौसम में बढ़ता है।
(5) डर का पेट में धक्का-सा लगना – इस औषधि का एक अद्भुत-लक्षण यह है कि रोगी को बेचैनी पेट में अनुभव होता है। उसे ऐसे लगता है जैसे डर का पेट पर धक्का लगता है। डॉ० कैन्ट लिखते हैं कि एक रोगिणी ने इस अनुभव को उनसे इस प्रकार व्यक्त किया: उसने कहा “डाक्टर न जाने क्या बात है, मुझे डर तो लगता है, परन्तु दूसरों को जैसा डर लगा करता है वह वैसा डर नहीं है। मुझे डर का धक्का पेट पर लगता है।” उसने कहा कि जब वह भयभीत होती है तो उसका अनुभव उसके पेट पर होता है। “जब मैं दरवाजा जोर से बन्द करती हूं तो उसके खटका-शब्द का असर ठीक पेट पर होता है। काली कार्ब का यह ‘अद्भुत-लक्षण’ (Pecular symptom) है। उसे जरा-सा छू दें तब भी असर पेट पर ही होता है।
(6) स्पर्श सहन न कर सकना – रोगी जरा-से स्पर्श को भी नहीं सह सकता। पैर के तलुओं को छूते ही सिहर उठता है, चौंक जाता है। हाथ से छूना दूर रहा, पैर के तलवे को चादर का स्पर्श भी सहन नही होता, स्पर्श से सारे शरीर में लहर दौड़ जाती है। जोर से दबायें तो कुछ नहीं होता, इससे रोगी चौंकता नहीं, परन्तु अनजाने जरा से भी स्पर्श से वह चौंक जाता है। अगर बिना बतलाये उसकी नाड़ी देखने के लिए उसे छू दिया जाय, तो लहरा जाता है – यह उसका व्यापक-लक्षण है, उसकी प्रकृति में स्पर्श के प्रति असहिष्णुता है। लैकेसिस में भी स्पर्श न सह सकना है, रोगी गले में कालर नहीं पहन सकता, गला घुटा-सा लगता है, परन्तु लैक गर्म और काली कार्ब शीत प्रकृति की है।
(7) हाथ तथा पैर की अंगुलियों तक में धड़कन – जब पेट खाली होता है तब पेट में धमनी की फुदकन, हृदय की धड़कन महसूस होती है। यह धड़कन सारे शरीर में अनुभव होती है, हाथ और पैर की अंगुलियों तक में। जब हृदय-प्रदेश में धड़कन की परेशानी महसूस नहीं होती तब भी सारे शरीर में, हर अंग में धड़कन महसूस होती है और रोगी इस धड़कन की वजह से सो नहीं सकता।
(8) हृदय की मन्द-गति के कारण शरीर में शोथ की प्रवृत्ति – इस औषधि में शोथ की प्रवृत्ति है। पावों में शोथ हो जाती है, अंगुलियां सूज जाती हैं, हाथों की पीठ में शोथ हो जाती है, शोथ को दबाने से गड्ढे पड़ जाते हैं। यह सब हृदय की मन्द-गति के कारण है। रुधिर के मन्द-संचार के कारण शोथ का हो जाना स्वाभाविक है। आँख के पपोटों के शोथ का वर्णन हम कर ही आये हैं। काली कार्ब का चेहरा रक्त के संचार की कमी के कारण मुरझाया रहता है, फीका रहता है, रोगी को ऊँचाई में चढ़ने में कष्ट होता है, समतल भूमि पर चलने पर भी सांस चढ़ जाता है। फेफड़ों की परीक्षा करने से कोई रोग नहीं दिखाई देता, परन्तु हृदय की मन्द-गति के कारण धीरे-धीरे रोगी क्षीण होता जाता है। इस प्रकार जो धीरे-धीरे, लगातार क्षीणता आती जाती है वह उचित समय पर इस औषधि के देने से रुक सकती है, परन्तु इसका आगमन इतना धीमा होता है कि जब रोगी असाध्य हो जाता है, तब चिकित्सक सोचने लगता है कि अगर उसे काली कार्ब दे दिया जाता तो रोगी बच जाता। शरीर में बढ़ती हुई शोथ की प्रवृत्ति को देखकर इस औषधि को ठीक समय पर स्मरण कर लेना उचित है।
(9) पुराना जुकाम जिसमें स्राव बन्द होने पर सिर-दर्द हो जाता है, और स्राव बढ़ने पर सिर-दर्द हट जाता है (तपेदिक में काली कार्ब की उपयोगिता) – जिन लोगों को पुराने जुकाम की शिकायत होती है उन्हें प्रात: नाक से स्राव शुरू होता है और नाक गाढ़े पीले म्यूकस से भर जाती है। प्रात:काल नाक में भरी सूखी पपड़ियां निकालने की कोशिश करता है, परन्तु वे नाक से निकलने के बजाय निगली जाती हैं। जहां से पपड़ियां छूटती हैं वहां से खून निकलने लगता है। रोगी का नाक गर्म कमरे में बन्द हो जाता है, खुली हवा में बहने लगता है। जब नाक से स्राव का बहना रुक जाता है तब सिर दर्द शुरू हो जाता है, और जब स्राव खुलकर बहने लगता है तब सिर-दर्द हट जाता है।
तपेदिक में काली कार्ब की उपयोगिता – डॉ० हनीमैन का कथन है कि तपेदिक के सब प्रकार के रोगों में यह उत्कृष्ट औषधि है, विशेषकर उन रोगियों में जिन्हें प्लुरिसी के बाद तपेदिक का रोग हो जाता है और छाती में सुई भेदने की-सी टीस उठा करती है। इसका थूक गोल-गोल होता है, 3 बजे प्रात: रोग बढ़ता है, पांव के तलवे स्पर्श नहीं सह सकते, गला बैठ जाता है, पलकों पर सूजन आ जाती है, छाती तो स्टैनम की तरह कमजोर होती ही है।
काली कार्ब औषधि के विषय में अन्य जानने योग्य बातें तथा लक्षण
(i) शारीरिक रचना; मोटापा तथा शीत-प्रधान प्रकृति – इस औषधि के व्यक्ति की शरीर की प्रवृत्ति मोटापे की तरफ होती है। मांसपेशियां ढीली-ढाली होती हैं। त्वचा दूध की-सी सफेद, रक्तहीन होती है। एनीमिया का शरीर होता है, और शरीर में शोथ की प्रवृत्ति होती है। एनीमिया के कारण वह ‘शीत-प्रधान’ होता है, हर समय ठंड लगती है। साधारण तौर पर चेहरा पीला होता है, परन्तु खांसने आदि के समय झूठी लाली मुँह पर झलकने लगती है। सर्दी से बचने के लिये दरवाजे-खिड़की बन्द किया करता है। वृद्ध व्यक्तियों के रोगों में उपयुक्त है।
(ii) मानसिक रचना; रोगी एकान्त से डरता है – रोगी बड़ा बहमी होता है, बेहद चिड़चिड़ा, परिवार के लोगों से भी लड़ता है। अकेला नहीं रह सकता, जब अकेला होता है तब उसे तरह-तरह के भय सताते हैं। भविष्य की चिन्ता करता है। भूत-प्रेत से डरता है। अगर अकेला रहना पड़े तो सो नहीं सकता, सोता है तो भयानक सपने देखता है। उसके दिल में बहम उठता है: ‘अगर कहीं मकान को आग लग गई, अगर यह हो गया या वह हो गया तो क्या होगा।
(iii) संभोग के बाद सब तकलीफों का बढ़ जाना – डॉ० कैन्ट लिखते हैं कि काली कार्ब के रोगी की शारीरिक तथा मानसिक दुर्बलता का तथा इसका प्रमाण कि वह क्षीण होता जाता रहा है यह है कि संभोग के बाद उसकी परेशानी के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। अगर मनुष्य स्वाभाविक-संभोग करे, तो उसका परिणाम बेहद कमजोरी, परेशानी नहीं होना चाहिए, परन्तु अगर संभोग के बाद लगातार आंखों की रोशनी कम होती दीखे, कंपकंपी आयें, स्नायविक शिथिलता उत्पन्न हो जाय, नींद न आयें, दो-तीन दिन तक व्यक्ति कंपन अनुभव करे, तो इस औषधि के लक्षण समझने चाहियें। ऐसी अवस्था पुरुष तथा स्त्री दोनों में हो सकती है।
(iv) हर समय जननांगों की तरफ ध्यान – जननांगां के मिथ्या-आचरण के कारण रोगी का ध्यान हर समय उनकी तरफ जाता रहता है। प्राय: चिकित्सक जननांगों की शिथिलता पर झट-से फॉसफोरस दे दिया करते हैं, परन्तु डॉ० कैन्ट कहते हैं कि नपुसंकता में या जननांगों की शिथिलता में इतना ही नहीं कि इस औषधि से कोई लाभ नहीं होगा, अपितु उसकी शिथिलता और अधिक बढ़ जायेगी। जो लोग हर समय थके-मांदे रहते हैं, बेहद कमजोर और बिस्तर में जा लेटना चाहते हैं, उन्हें फॉसफोरस से लाभ नहीं होगा, काली कार्ब से लाभ होगा।
(v) जरायु का रक्त-स्राव – स्त्रियों का यह मित्र है। जिन स्त्रियों को लगातार रक्त-स्राव होता रहता है, पीली, मोम-की सी शक्ल हो जाती है, या गर्भपात के बाद और सब प्रकार के शल्य-क्रिया के इलाज के बाद भी रक्त रिसता रहता है, या मासिक-धर्म के रज-स्राव के बाद जब काफी और देर तक रक्त-स्राव हो चुकता है उसके बाद भी अगले मासिक तक रक्त रिसता रहता है। और अगले मासिक में भी काफी रक्त-स्राव होता है – इस प्रकार के रिसते रहने वाले रक्त-स्राव में यह उपयोगी है। डॉ० फैरिंगटन लिखते हैं कि हनीमैन का कहना था कि जिन लड़कियों को मासिक-रक्तस्राव नहीं होता और नैट्रम म्यूर के लक्षण होने पर भी लाभ नहीं होता, उन्हें काली कार्ब से लाभ हो जाता है।
(vi) गर्भावस्था में वमन – गर्भावस्था में इपिकाक से वमन थोड़ी देर के लिए शांत होती है, उसका असली इलाज तो शरीर के स्वभाव की ‘औषधि’ ही है। इस प्रकार की स्थिर लाभ करने वाली दवायें: सल्फर, सीपिया, काली कार्ब तथा आर्सेनिक। अगर केवल पेट की खराबी से गर्भिणी को उल्टी आ रही है, तब तो इपिकाक काफी है, परन्तु अगर उसे पेट की खराबी से नहीं अपितु बिना किसी विशेष लक्षण के दिन-रात उल्टी आती है, जी मिचलाया करता है, तब सिमफोरिकारपस से लाभ होता है। इससे भी इपिकाक की तरह सामयिक ही लाभ होता है, परन्तु स्थिर लाभ के लिये गहराई में जाने वाली काली कार्ब, सल्फर, सीपिया, आर्सेनिक में से लक्षणानुसार किसी दवा का निर्वाचन करना होगा।
(vi) सन्तानोत्पत्ति के समय प्रजनन-संबंधी पीड़ा – सन्तानोत्पत्ति के समय प्रजनन-संबंधी-पीड़ाएं (Labour pains) नियमित रूप से होनी चाहियें। उनके नियमित न होने से गर्भवती को कष्ट होता है। इस दशा में काली कार्ब तथा अन्य औषधियां उपयोगी हैं जिनमें से कुछ निम्न हैं
प्रजजन-संबंधी पीड़ा को नियमित करने वाली मुख्य-मुख्य औषधियां
काली कार्ब – पीठ में ऐसा दर्द होता है मानो टूट जायेगी। जरायु कमजोर होता है, और पीड़ा हल्की होती है। पीड़ा पीठ तक सीमित रहती है और उत्पादन के केन्द्र-स्थल तक नहीं पहुंचती। ठंड लगती है। पीठ की कमजोरी इसका चरित्रगत लक्षण है।
जेलसीमियम – दर्द पीठ में आता है और जरायु की तरफ जाता प्रतीत होता है, परन्तु फिर झट से पीठ की तरफ चला जाता है। पीठ से जरायु तक जाकर फिर पीठ की तरफ लौट आना इसका विशिष्ट लक्षण है।
ऐक्टिया रेसिमोसा – कभी-कभी दर्द इतना तेज होता है कि उससे जरायु का संकोच होकर बच्चा निकल आने के बजाय जरायु का संकोच और रुक जाता है। जब जरायु का संकोच इस पीड़ा से रुक जाय, स्त्री पीड़ा से चिल्लाये और कहे कि दर्द जरायु पर केन्द्रित न होकर पेट के दोनों तरफ से हो रहा है, तब इस औषधि से लाभ होता है।
पल्सेटिला – जब जरायु का मुख खुला हो और यह प्रतीत हो कि आसानी से प्रसव हो जायेगा, परन्तु फिर भी जरायु शिथिल हो, क्रिया-रहित हो, प्रसव न हो रहा हो, तब यह औषधि 5 मिनट में जरायु में गति उत्पन्न कर प्रसव कर देगी।
(vii) माहवारी को खोल देती है – माहवारी के एक सप्ताह पहले तबीयत खराब होने लगती है, कमर में दर्द होने लगता है जो माहवारी के दिनों में भी बना रहता है। हनीमैन का कथन है कि माहवारी जो नैट्रम म्यूर से खुली जानी चाहिये उस से न खुले तो इस से खुल जाती है।
(ix) मुंह धोते समय सुबह नाक से खून आना।
(x) बार-बार जुकाम हो जाने को ठीक करती है।
(xi) खसरे के बाद की खांसी को ठीक करती है।
(xii) बार-बार पेट का दर्द जो पहले कौलोसिन्थ से ठीक हो जाय, फिर ठीक न हो।
(xiii) हनीमैन का कथन है कि फेफड़ों के जख्म इस एण्टीसीरिक दवा के बिना ठीक नहीं हो सकते।
(11) शक्ति तथा प्रकृति – यह दीर्घगामी तथा गूढ़-क्रिया करने वाली औषधि है। शक्ति 30; परन्तु इस औषधि को दोहराना बहुत सोच-समझ कर चाहिये।