[ पोटैशियम नाइट्रेट ] – फेफड़ा, मेरुदण्ड, हृत्पिण्ड, मसाना और खून पर इसकी प्रधान क्रिया होती है। कार्डियक-ऐज्मा, सहसा सारा शरीर फूल जाना।
दाहिनी नाक के भीतर रक्त-अबुर्द ( polypus ), अतिसार, रक्तमाशय ( खूनी पेचिश ), मूत्रकृच्छता, बिना चीनी का बहुमूत्र, दमा, नया वात इत्यादि कितनी ही बीमारियों में साधारणत: इसका व्यवहार होता है।
पेशाब की बीमारी – शरीर से ‘पोटाश-नाइट्रेट’ गुर्दे की राह से बहुत जल्द-जल्द पेशाब के साथ निकल जाता है, इससे मूत्रयंत्र और मूत्रपथ में उत्तेजना पैदा होती है, और उस उत्तेजना के कारण बहुत अधिक परिमाण में रक्तस्राव होता है। पेशाब में म्यूकस अर्थात् श्लेष्मा आदि ज्यादा मात्रा में रहने पर पेशाब का आक्षेपिक गुरुत्व 1030 से 1040 तक हो जाता है। सूजाक का प्रदाह मूत्रनली के पीछे की ओर चला जाने से मूत्राशय में भी प्रदाह हो जाय तो – इससे फायदा होता है। ऐल्बुमिनुरिया तथा मूत्रकृच्छता रोग में यह लाभदायक है।
आमाशय ( पेचिश ) – विशेष लक्षणों के लिये – मर्क्युरियस सोल फायदा करता है। आमाशय की पहली अवस्था में – एकोनाइट इत्यादि के प्रयोग से जब पेट का काटने-फाड़ने जैसा दर्द दूर नहीं होता, बहुत वेग, कूथन, प्यास और हाथ पैर ठण्डे रहते हैं, उस समय – कैलि नाइट्रिक से फायदा होगा। अतिसार में – मल पतला और खून-शुदा होता है। कब्ज में – कड़ा मल खूब वेग देने पर निकलता है।
दमा-खाँसी – जिस बीमारी में बहुत श्वासकष्ट हो, किन्तु बलगम सहज में निकल जाता हो, साथ ही कलेजे में सूई गड़ने जैसा दर्द या जलन-सी हो तथा आक्षेपिक खाँसी और गले में कोंकों आवाज होती हो, तो इन लक्षणों में कैलि नाइट्रिक का प्रयोग करना चाहिये।
हृत्पिण्ड की बीमारी – हृदय रोग की वजह से श्वासकष्ट, हाँफा करना, साथ ही समूचा शरीर जल्दी-जल्दी फूल उठना, गला जकड़ जाना, सवेरे कलेजे में दर्द के साथ सूखी खाँसी और बलगम के साथ खून निकलना।
ऋतुस्राव – स्राव का रंग देखने में स्याही की तरह काला होता है।
क्रियानाशक – कैम्फर।
क्रम – 3 से 6 शक्ति।