[ इसका दूसरा नाम है – पोटाश परमैंगनेट ] – यह दवा गला, नाक और स्वरयंत्र में बहुत अधिक उत्तेजना, डिफ्थीरिया, बाधक पीड़ा, साँप या अन्य किसी भी जहरीले जानवर के काटने पर तथा पीब, प्रसव के बाद का क्लेद ( lochia ) इत्यादि किसी भी स्राव में बहुत बदबू रहने पर और उस स्राव के रक्त के साथ मिलकर दूषित या सेप्टिक अवस्था को प्राप्त होने पर तथा एलोपैथिक इंजेक्शन में उपयोग होता है। प्रसव के बाद बहुत दिन तक रक्तस्राव हो और उक्त रक्त में बदबू रहे तो – इसकी निम्न शक्ति के भीतरी सेवन से बहुत फायदा होता है। डिफ्थीरिया में अगर मुंह में सड़ी गंध निकलती हो तो शुरू से ही इसका प्रयोग करना चाहिए।
नाक से खून निकलना, गले के भीतर सूजन और दर्द, खखारने पर गले से जो बलगम आदि निकलता है उसके साथ रक्त जाना, नाक के भीतर दर्द, जीभ में घाव, उपजिह्वा फूलना, साँस में बदबू इत्यादि रोगों की यह उत्कृष्ट दवा है।
कैलि परमैंगनीकम का प्रयोग – बाहर-भीतर दोनों तरह से होता है। बाहरी प्रयोग के लिए – पोटाश परमैंगन 1 ड्राम, लगभग एक सेर पानी में मिला लेना चाहिए। पोटाश परमैंगन देखने में ठीक मैजेंटा रंग के चूरे की तरह और पानी में डालने पर ठीक मैजेंटा रंग की तरह ही लाल रंग का हो जाता है। इस लोशन से कैंसर का सड़ा घाव, ओजिना ( नकड़ा ) या किसी भी तरह के स्राव की बदबू बहुत जल्द दूर हो जाती है और घाव साफ़ हो जाता है। प्रसव के बाद और प्रमेह रोग में भी कितने ही चिकित्सक इसकी पिचकारी दिलवाने की व्यवस्था करते हैं।
क्रम – भीतरी सेवन के लिए 2x शक्ति, पानी के साथ।