संतुलित, स्वच्छ और स्वादिष्ट भोजन शरीर के सामान्य विकास के लिए बहुत आवश्यक है। भोजन में पौष्टिक तत्वों की कमी से बहुत-सी बीमारियां हो जाती हैं। स्वास्थ्य कार्यकर्ता या आक्जीलरी नर्स में इन रोगों के लक्षण पहचानने की क्षमता होनी चाहिए। इससे वे समय पर सलाह देकर लोगों को भयानक बीमारियों से बचा सकते हैं। कुपोषण से उत्पन्न होने वाले विकारों का विवरण नीचे प्रस्तुत किया जा रहा है।
प्रोटीन और कैलोरी की कमी
यह बीमारी कम आयु के बच्चों में पाई जाती है। अगर 6 महीने के बच्चों को ऊपर से अन्य खाद्य पदार्थ न दिया जाए या उनकी आवश्यकताओं के अनुसार संतुलित आहार न मिलने से प्रोटीन और कैलोरी की कमी हो जाती हैं । पर्यात मात्रा में सन्तुलित आहार न मिले, तो उनके शरीर में प्रोटीन और कैलोरी की कमी हो जाती है। 6 महीने के बाद हर बच्चे को मां के दूध के अलावा ऊपर से कुछ खाने की जरूरत रहती है। बच्चा सारे परिवार के लिए बना खाना हजम नहीं कर सकता। अत: मां को अपने बच्चे के लिए सादा, कम मसाले वाला तथा पौष्टिक भोजन बनाना चाहिए। फलों का रस, खूब पकी सब्जी, ताजा दूध या खूब गला चावल शुरू में दिया जा सकता है। जब बच्चा 8-9 महीने का हो जाए, तो उसे अंडे की जर्दी भी दी जा सकती है।
अगर इस तरह का खाना नहीं दिया जाता, तो बच्चा नहीं बढ़ता। उसका डील-डौल और वजन घट जाता है। बाल कम हो जाते हैं। वे आसानी से झड़ने और हल्के रंग के होने लगते हैं। बच्चे के गाल सख्त तथा सूज जाते हैं। वे पानी भर जाने के कारण चमकने लगते हैं। यदि इस विषय में शुरू में ध्यान नहीं दिया जाता, तो सारा शरीर फूल जाता है।
प्रोटीन और कैलोरी की कमी से ही बच्चे की खाल चितकबरी एवं खुरदरी हो जाती है। ऊपर की खाल उतरने लगती है। बच्चे को दस्त होते रहते हैं। उसे भूख नहीं लगती। वह चिड़चिड़ा हो जाता है। अपने चारों तरफ चहल-पहल में रुचि नहीं लेता। धीरे-धीरे हालत बिगड़ जाती है। इसमें बच्चे की मृत्यु भी हो सकती है।
आक्जीलरी नर्स द्वारा माताओं को दूध छुड़ाने के सही तरीके समझाना बहुत जरूरी है। वस्तुत: शिशु को मां के दूध के अलावा ऊपर के भोजन की बहुत जरूरत रहती है। अनाज, दाल, फल, सब्जी, अंडा तथा दूध बच्चे की उम्र के अनुसार देना बहुत जरूरी होता है। राष्ट्रीय पोषण संस्थान, हैदराबाद द्वारा निकाली गई पुस्तिका ‘शिशु और पूर्व-विद्यालय बालक’ तथा ‘मां और बच्चा’ में कम खर्च से तैयार किए जाने वाले अनेक आहार के तरीके बताए गए हैं।
विटामिन ‘ए’ की कमी
बहुत से बच्चे छोटी उम्र में ही विटामिन ‘ए’ की कमी से अन्धे हो जाते हैं। इसके लक्षण शुरू में ही प्रकट होने लगते हैं। सर्वप्रथम रात को रोशनी में धुंधला दिखाई देता है। ऐसे में यह चेतावनी होती है कि अांख खराब हो रही है। फिर धीरे-धीरे आंख के अन्दर का सफेद भाग मटमैला हो जाता है, सूखा-सा लगता है और सिकुड़ने लगता है। तिकोने स्लेटी धब्बे पड़ जाते हैं। यदि विटामिन ‘ए’ की बहुत बड़ी खुराक उस समय दे दी जाए, तो अांख बच सकती है। छोटी उम्र में ही बच्चों के अंधे होने के कई कारण हैं। गर्भवती स्त्रियों को पर्यात मात्रा में विटामिन ‘ए’ नहीं मिल पाता। इसलिए जो बच्चे पैदा होते हैं, उनमें शुरू से ही इस विटामिन की कमी होती है। गर्भवती एवं दूध पिलाने वाली मां के भोजन में विटामिन ‘ए’ होना जरूरी है। यह पालक या अन्य हरे साग-सब्जियों में पर्यात मात्रा में पाया जाता है।
आरंभ में माता का गाढ़ा-पीला दूध विटामिन ‘ए’ से युक्त होता है। परंतु कुछ भ्रमों के कारण यह बच्चे को नहीं पिलाया जाता। इसे बच्चे को अवश्य पिलाना चाहिए। इनमें बहुत से पौष्टिक तत्व होते हैं। इससे बच्चे में शुरू से ही विटामिन ‘ए’ जमा हो जाता है। कुछ महिलाओं के दूध में शुरू से ही विटामिन ‘ए’ की कमी होती है और बहुत से बच्चे काफी दिनों तक मां का दूध ही पीते रहते हैं। इस तरह उनमें विटामिन ‘ए’ की कमी हो जाती है।
बहुत से परिवारों में बच्चों को बहुत दिनों तक हरे साग-सब्जी, दूध, अंडा तथा फल आदि नहीं दिए जाते। इस प्रकार उनमें शुरू से ही विटामिन ‘ए’ की कमी हो जाती है। अगर प्रारंभ में इन पर ध्यान नहीं दिया जाता, तो बच्चा अंधा हो सकता है। अत: बढ़ते हुए बच्चों, गर्भवती एवं दूध पिलाने वाली स्त्रियों को रोज के भोजन में हरी साग-सब्जी, दूध, अंडा तथा फल आदि जरूर मिलना चाहिए।
आयरन की कमी
बच्चों को बहुधा खून की कमी हो जाती है। बच्चा खून की कमी के कारण पीला पड़ जाता है। उसे प्राय: भूख नहीं लगती। वह हमेशा मिट्टी खाना चाहता है। बच्चे के नाखूनों की बनावट बिगड़ जाती है। वह खेलने पर जल्दी थक जाता है और उसकी सांस फूलने लगती है।
भोजन में आयरन की कमी के कारण खून की कमी हो जाती है। आयरन (लौह) तत्व हरी सब्जियों (पालक, सहिजन, हरा धनिया, फली), सूखे मेवों और रागी में पाया जाता है। दूध से आयरन बहुत कम मिलता है। जब 6 महीने से 2 साल तक बच्चा सिर्फ मां के दूध पर ही पाला जाता है, तो उसमें खून की कमी होने की ज्यादा संभावना रहती है। अत: बच्चे के 4-6 महीने के होते ही लौह युक्त भोज्य पदार्थ उसे अवश्य देना चाहिए। बहुत-सी चीजों में विटामिन ‘ए’ और आयरन की मात्रा खूब होती है। ऐसे पदार्थों में हरे साग-सब्जी भी हैं, जो दोनों तत्वों की कमी पूरी कर देते हैं।
गर्भवती स्त्रियों में भी खून की कमी पाई जाती है। इसका कारण यह है कि गर्भाशय में बच्चा, मां से आवश्यक आयरन ले लेता है। फलत: मां में खून की कमी हो जाती है। ऐसी स्त्रियां ज्यादातर कमजोर होती हैं। वे जल्दी थक जाती हैं। बच्चा होने के समय उन्हें अन्य गड़बड़ी भी हो सकती है। इन गड़बड़ियों से बचने के लिए मां के भोजन में हरे साग-सब्जी, रागी और सूखे मेवे की आवश्यक मात्रा अत्यंत जरूरी है।
भारत सरकार की एक योजना के अनुसार, हर गर्भवती स्त्री को अन्तिम तीन महीनों में आयरन और फोलिक एसिड की एक-एक गोली रोज बराबर दी जाती है। एम.सी.एच. सेंटरों द्वारा यह प्रोग्राम चलाया जाता है। इसका उद्देश्य गर्भवती स्त्रियों को खून की कमी से बचाना होता है।
विटामिन ‘बी’ कॉम्प्लेक्स की कमी
विटामिन ‘बी’ कॉम्प्लेक्स की कमी हर उम्र के लोगों में मिलती है। यदि भोजन में इन विटामिनों की कमी होती है, तो बेरी-बेरी, क्षीण मुख शोथ एवं जीभ की सूजन आदि रोगों के लक्षण दिखाई देने लगते हैं।बेरी-बेरी रोग पालिश किया हुआ चावल खाने से होता है। इसमें भूख नहीं लगती। हाथ-पैरों में शिथिलता आ जाती है। उनमें सनसनाहट या झनझनाहट होने लगती है। कुछ अवस्थाओं में शरीर सूज जाता है। क्षीण मुख शोथ होने पर रोगी के मुंह के कोने फट जाते हैं। मुंह में छाले भी निकल आते हैं। जीभ की सूजन अधिकतर गर्भवती स्त्रियों में पाई जाती है। इस रोग में जीभ लाल हो जाती है। उस पर छाले पड़ जाते हैं। गरम चीज खाने पर लगती है। कुछ अवस्थाओं में होंठ फट जाते हैं। उनमें घाव हो जाते हैं। इन अवस्थाओं का इलाज रोज विटामिन ‘बी’ कॉम्प्लेक्स देने से हो सकता है। इन विटामिनों के सेवन से ये लक्षण दूर किए जा सकते हैं। दालें, अनाज, मूंगफली, दूध तथा हरे सागों के प्रयोग से भी इन रोगों से मुक्ति मिल जाती है।
विटामिन ‘डी’ तथा कैल्शियम की कमी
बच्चों में रिकेट की बीमारी भी ज्यादा पाई जाती है। यह विटामिन ‘डी’ और कैल्शियम की कमी से होती है। हड़ियों की सुदृढ़ता, विकास तथा मजबूती के
लिए-दोनों तत्व बहुत आवश्यक हैं। इनके अभाव में घुटनों की हड्डी, पैर की हड्डी तथा पसलियां मुड़ जाती हैं। विटामिन ‘डी’ और कैल्शियम दूध, जिगर तथा अंडे में बहुत होता है। इसलिए शाकाहारियों के आहार में दूध होना बहुत जरूरी है।
इसके अलावा धूप से भी शरीर को विटामिन ‘डी’ मिल सकता है। जो बच्चे, अंधेरे या बिना रोशनी के मकान में रहते हैं, उन्हें यह बीमारी बहुत होती है। यदि बच्चों को खूब अच्छी धूप मिले, तो यह बीमारी नहीं होती। यदि बच्चों को कभी मामूली-सा बुखार आ जाता है या दस्त हो जाते हैं, तो उनका भोजन बंद कर दिया जाता है। भोजन बंद करने के बदले सही आहार और सफाई से खाना देना बहुत जरूरी है। आक्जीलरी नर्स को यह बात अवश्य समझानी चाहिए। ऐसे में किसी डॉक्टर की भी सलाह ली जा सकती है।