लीडम पैलस्टर के लक्षण तथा मुख्य-रोग
( ledum pal homeopathy uses in hindi )
शरीर के बड़े जोड़ों तथा मांस-पेशियों में दर्द को ‘वात-रोग’ (Rheumatism) और छोटे जोड़ों में दर्द को ‘गठिया’ (Gout) कहते हैं। इसमें जोड़ों में सूजन और कभी-कभी बुखार हो जाता है। यह कठिन रोग है।
(1) वात-रोगी या गठिये का रोगी (Rheumatism or Gout) – इसमें वात या गठिये का रोग नीचे के अंग से शुरू होता है और ऊपर फैलता है। कैलमिया में इससे उल्टा है। उसका वात-रोग ऊपर के अंग से चलता है और नीचे फैलता है। लीडम के वात-रोग में जोड़ सूज जाते हैं, गर्म महसूस होते हैं, परन्तु लाल नहीं होते। जोड़ों में गांठे पड़ जाती हैं। जिस अंग में वात-रोग हो वह पतला पड़ जाता है। इसका वात-दर्द तिरछा (Crosswise) चलता है, अर्थात् दायें कन्धे से दर्द चलेगा तो बायें कुल्हे के जोड़ में चला जायेगा या बायीं कोहनी में चला जायेगा, बायें कन्धे से चलेगा तो दायें कुल्हे के जोड़ में या दाई कोहनी में चला जायेगा। घुटनों तक सूजन आ जाती है, टखने सूज जाते हैं। पांव के तलवों पर बोझ पड़ने से चला नहीं जाता।
लीडम के वात-रोग की विशेषता यह है कि रोगी पांव खुले रखना चाहता है, कभी-कभी बर्फ-समान ठंडे पानी में पांव रखना चाहता है। साधारणतौर पर वात-दर्द में गर्मी से आराम मिलना चाहिये, परन्तु डॉ० कैन्ट लिखते हैं कि उन्होंने एक रुमेटिज्म के रोगी को टब में पांव रखकर बर्फ डालते देखा। यह अद्भुत-लक्षण लीडम का है, और उसे इस दवा से एकदम लाभ हो गया।
वात-रोग तथा गठिये के रोग की अन्य मुख्य-मुख्य औषधियां
लीडम – रोग नीचे से ऊपर फैलता है, रोगी को ठंड से आराम मिलता है, रात को, या बिस्तर की गर्मी से रोग बढ़ जाता है। .
कैलमिया – रोग ऊपर से नीचे को जाता है।
कॉलोफ़ाइलम – स्त्रियों की अंगुलियों के जोड़ों में दर्द, शाम को बढ़ जाता है।
ऐक्टिया रेसिमोसा – छोटे-छोटी जोड़ों के दर्द जो चलने-फिरने से बढ़ जायें।
मर्क्यूरियम – इसमें पसीना बहुत आता है, लीडम को पसीना नहीं आता; मर्क शीत-प्रधान है, लीडम ऊष्णता-प्रधान है।
ऐन्टिम क्रूड – अन्य औषधियों की तरह इसमें भी जोड़ों में सूजन है, परन्तु इसमें एड़ी में दर्द होता है।
साइलीशिया – यह रोगी शीत-प्रधान होता है और गर्मी पसन्द करता है।
आर्टिका युरेन्स – डॉ० बर्नेट कहते हैं कि गठिये में इसके मूल-अर्क की 5 बूंद गर्म पानी में चार-चार घंटे के बाद देने से यूरिक ऐसिड निकल कर गठिया ठीक हो जाता है।
(2) लीडम होम्योपैथी की ऐन्टी-टिटनेस औषधि है – हम हाइपेरिकम पर लिखते हुए लिख आये हैं कि अगर चोट लगने पर उसी समय लीडम नहीं दिया गया, तो टिटनेस हो सकता है, अगर उसी समय दे दिया जाय तो टिटनेस नहीं होगा। घोड़े को कील चुभ जाय, तो उसे भी यह दवा देने से टिटनेस नहीं होगा। स्नायु पर चोट का असर पहुंचते ही लीडम का क्षेत्र है, अगर चोट लगने के बाद दर्द स्नायु मार्ग से चढ़ने लगा, तब हाइपेरिकम का क्षेत्र है। कील लगने, फाँस चुभने पर अगर उससे कोई ‘स्नायु’ (Nerve) प्रभावित हो गई, तो टिटनेस हो सकता है, और उस समय लीडम ‘प्रतिरोधक’ (Preventive) का काम करता है। आर्निका हाइपेरिकम, स्टैफिसैग्रिया तथा अन्य चोट की औषधियों की तुलना नीचे दी जा रही है:
चोट लगने पर मुख्य–मुख्य औषधियां
लीडम – कील, सूई, फांस आदि से छिद कर स्नायुओं तक चोट पहुंच जाना (Punctured wounds), चूहे का काटा, ततैये का काटा।
आर्निका – मांसपेशियों पर कुचले जाने की-सी चोट (Bruised muscles), आर्निका जब अपना काम कर चुके तब लीडम देने से स्नायुओं पर जो चोट पहुंची है वह ठीक हो जाती है। चोट से त्वचा के नीला पड़ जाने पर आर्निका दी जाती है।
हाइपेरिकम – अंगुली आदि के स्नायु-तंतुओं को चोट (Nerve injury); स्नायु-तंतुओं की चोट के शुरू में लीडम, और चोट के बाद दर्द स्नायु-मार्ग से चल पड़ने पर हाइपेरिकम दी जाती है।
रूटा – अस्थियों के आवरण पर चोट पहुंचे तब दी जाती है।
स्टैफिसैग्रिया – ऑपरेशन आदि में सफाई के साथ होने वाले जख्मों को यह ठीक करती है।
सिम्फ़ाइटम – आँख की पुतली पर चोट लगने पर।
कलैन्डुला – यह गेंदे के पत्तों से बनता है। इसे होम्योपैथी का एण्टीसैप्टिक कहते हैं। घाव को सड़ने से रोकता है। घाव होने पर इसके लोशन से धो देने पर पीव नहीं पड़ती। 1 हिस्सा टिंचर 4-5 हिस्से पानी में मिला कर लोशन बन जाता है। इन सबका वर्णन आर्निका तथा हाइपेरिकम में भी दिया गया है।
(3) विस्की पीने की इच्छा को रोक देता है – यह औषधि विस्की पीने की उत्कट-इच्छा को रोक देती है। तम्बाकू पीने की इच्छा को कैलेडियम रोक देती है।
(4) शक्ति तथा प्रकृति – 3, 30, 200 (औषधि ‘गर्म’ – प्रकृति के लिये है।