इस रोग में रोगी के किसी अंग विशेष में घाव हो जाते हैं जो ठीक नहीं होते हैं। इन घावों से खून, मवाद आदि सदैव ही निकलता रहता है। धीरेधीरे यह घाव बढ़कर पूरे शरीर में फैल जाते हैं । इन घावों के फलस्वरूप रोगी के अंग धीरे-धीरे गल-गलकर गिरने लगते हैं । यह एक भयानक रोग है पर असाध्य नहीं है । दीर्घ उपचार और पथ्यापथ्य के पालन से यह रोग अवश्य ही दूर हो जाता है ।
बेलाडोना 3x- शरीर की त्वचा लाल पड़ने लगे, ज्वर हो, रोग की प्रारंभिक अवस्था हो तो इस दवा का प्रयोग लाभप्रद हैं ।
आर्सेनिक आयोड 3x- शरीर में गाँठ हो जायें और गाँठ के स्थान फूल जायें, हाथ-पैर की अंगुलियाँ टेढ़ी-मेढ़ी हो जायें और गल-गलकर गिरने लगें, काँटा चुभने जैसा दर्द हो तो यह दवा लाभप्रद है ।
अस्टिलेगो Q, 1x- लक्षणानुसार इस दवा को देने से कोढ़ में बहुत ही लाभ होता है ।
पैरिरा ब्रावा 6, 30- डॉ० ओलीवरा का कथन है कि उन्होंने इस दवा का सेवन कराकर अनेक रोगियों को ठीक किया है ।
लैकेसिस 6, 30- रोगग्रस्त स्थान सुन्न पड़ जायें और रोगी के घाव गहरे हों तो यह दवा लाभप्रद है ।
पाइपर मेथिस्टिकम Q, 6- डॉ० घोष का कहना है कि कुष्ठ रोग में पहले त्वचा के किसी अंश पर पपड़ी जमे, उसके बाद वह सतह निकल जाये, उसके बाद वहाँ एक दाग-सा बन जाये और उसके बाद घाव हो जाये तो इस दवा का प्रयोग करना चाहिये ।
जिनोकार्डिया ओडोरेटा Q- यह दवा चालमोगरा से बनती हैं । इसमें कुष्ठ रोग को दूर करने की अद्वितीय शक्ति है । इसकी 5-5 बूंद आधे कप पानी में मिलाकर प्रतिदिन तीन बार लेनी चाहिये । इसे घाव पर लगाना भी चाहिये ।
कैलोट्रोपिस जाइगैण्टिया Q, 30, 1x, 3x- यह दवा आक से बनती है। सामान्यतः इस दवा का प्रयोग मोटापा घटाने के लिये किया जाता है परन्तु कुष्ठ रोग एवं अन्य चर्म-रोगों में भी इससे लाभ होता है । कुष्ठ रोग में त्वचा बदरंग हो जाये, घाव सड़ने लगें तो लाभप्रद है । उपदंश के कारण होने वाले चर्म-रोग तथा पारे के अपव्यवहार के कारण होने वाले चर्म-रोगों में इससे लाभ होता है । मूल अर्क को घावों पर लगाया जाता है तथा 30, 1x, 3x, में से लक्षणानुसार उचित शक्ति की दवा का आंतरिक सेवन कराया जाता है ।
हाइड्रोकोटाइल एसियेटिका Q, 30, 3x- यह दवा ब्राह्मी से बनती है। इसकी त्वचा पर विशेष क्रिया होती है अतः कुष्ठ रोग में भी यह दवा लाभकर है । डॉ० वायली ने सबसे पहले इसका प्रयोग कुष्ठ रोग में किया था । किसी भी प्रकार का चर्म-रोग, जिसमें त्वचा का ऊपरी अंश फूलकर मोटा हो जाये, वहाँ यह दवा देनी चाहिये । जहाँ त्वचा फूलकर गिरने लगे वहाँ हाइड्रोकोटाइल दी जाती है और जहाँ त्वचा की संवेदनशीलता समाप्त होकर वह सुन्न हो जाये, वहाँ एनाकार्डियम दी जाती है- इस अंतर को याद रखना चाहिये । कुष्ठ में हाइड्रोकोटाइल को वेसलीन या ग्लिसरीन में मिलाकर लगाना चाहिये तथा 30 या 3x शक्ति का आन्तरिक सेवन कराना चाहिये।